45 साल और 5 सियासी हथियार…चुनाव-दर-चुनाव BJP ने विपक्ष को कैसे किया चित?
बीजेपी के दिग्गज नेता
BJP Foundation Day: 6 अप्रैल 1980 को एक नई सियासी ताकत का जन्म हुआ था, जिसका नाम है भारतीय जनता पार्टी. उस दिन जनसंघ के पुराने नेताओं ने जनता पार्टी से अलग होकर बीजेपी की नींव रखी थी. तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि ये पार्टी 45 साल में देश की सबसे बड़ी सियासी ताकत बन जाएगी. आज बीजेपी न सिर्फ केंद्र में लगातार तीसरी बार सत्ता में है, बल्कि आधे से ज्यादा राज्यों में भी अपनी हुकूमत चला रही है. 1984 में सिर्फ 2 सीटों से शुरू हुआ ये सफर 2019 में 303 सीटों तक पहुंचा और 2024 में भी 240 सीटों के साथ बीजेपी ने अपनी ताकत दिखाई. लेकिन सवाल ये है कि आखिर बीजेपी ने ऐसा क्या किया कि विपक्ष उसके सामने टिक नहीं पा रहा? आज हम आपको आसान भाषा में बताएंगे बीजेपी के उन पांच सियासी हथियारों के बारे में, जिन्होंने उसे शून्य से शिखर तक पहुंचाया और विपक्ष के लिए एक ऐसा चक्रव्यूह बनाया, जिसे तोड़ना मुश्किल हो गया है.
सोशल इंजीनियरिंग
बीजेपी को शुरू में लोग ‘ब्राह्मण-बनिया’ की पार्टी कहते थे. मतलब ये कि इसे सिर्फ ऊंची जातियों की पार्टी समझा जाता था. लेकिन बीजेपी ने इस छवि को तोड़ने के लिए कमाल की मेहनत की. उसने न सिर्फ सवर्णों को अपने साथ रखा, बल्कि दलितों, पिछड़ों (OBC) और दूसरी जातियों को भी जोड़ा. इसे कहते हैं सोशल इंजीनियरिंग, यानी समाज के अलग-अलग तबकों को एक साथ लाना.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इस हथियार का जबरदस्त इस्तेमाल किया. पार्टी ने हिंदुत्व को एक छतरी की तरह इस्तेमाल किया और इसके नीचे हर जाति के हिंदुओं को एकजुट कर दिया. नरेंद्र मोदी खुद OBC समुदाय से आते हैं और उनकी अगुवाई में पार्टी ने पिछड़े और दलित वोटरों को अपने साथ जोड़ा. आज बीजेपी के बड़े नेताओं में कई दलित और OBC चेहरे हैं, जैसे रामनाथ कोविंद (पूर्व राष्ट्रपति) और जगदीश प्रसाद मंडल जैसे नेता.
इसके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का भी बड़ा हाथ है. संघ ने गांव-गांव जाकर हिंदुत्व का संदेश फैलाया और बीजेपी को हर तबके तक पहुंचाया. नतीजा ये हुआ कि जहां विपक्ष बीजेपी को ‘दलित विरोधी’ कहकर बदनाम करने की कोशिश करता है, वहीं ये समुदाय बीजेपी के साथ मजबूती से खड़ा है. विपक्ष इस सोशल इंजीनियरिंग का जवाब नहीं ढूंढ पा रहा.
संगठन की ताकत- बूथ से लेकर दिल्ली तक पकड़
बीजेपी की दूसरी सबसे बड़ी ताकत है उसका संगठन. ये ऐसा ढांचा है जो जमीनी स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक फैला हुआ है. बीजेपी के पास लाखों कार्यकर्ता हैं जो हर गली-मोहल्ले में काम करते हैं. इसे समझें तो बीजेपी ने देश को 36 हिस्सों (राज्यों) में बांटा और हर जगह अपना संगठन खड़ा किया. इस संगठन के दो बड़े हिस्से हैं.
राष्ट्रीय कार्यकारिणी: ये बीजेपी की सबसे बड़ी बॉडी है, जो नीतियां बनाती है और चुनाव से लेकर सरकार बनाने तक के फैसले लेती है.
राष्ट्रीय परिषद: ये संगठन का दूसरा हिस्सा है, जो बूथ स्तर से लेकर ऊपर तक काम करता है. हर गांव, शहर, जिला और राज्य में बीजेपी की कमेटियां हैं.
बीजेपी का हर कार्यकर्ता बूथ स्तर पर वोटरों से जुड़ा रहता है. चुनाव के दौरान ये लोग घर-घर जाकर वोट मांगते हैं. RSS भी इसमें मदद करता है. संघ के स्वयंसेवक बीजेपी के लिए मुफ्त में काम करते हैं और संगठन को मजबूत करते हैं.
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 240 सीटें मिलीं, जो 2019 से कम थीं. विपक्ष ने इसे कमजोरी समझा, लेकिन उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने फिर से अपनी ताकत दिखाई. हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में उसने विपक्ष को धूल चटाई. इसका कारण है उसका संगठन, जो किसी दूसरी पार्टी के पास नहीं है.
हिंदुत्व और राष्ट्रवाद- सियासत की धार
बीजेपी की तीसरी ताकत है हिंदुत्व और राष्ट्रवाद. ये दो ऐसे मुद्दे हैं जिन्होंने बीजेपी को आम लोगों से जोड़ा. 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन ने बीजेपी को नई पहचान दी. अयोध्या में राम मंदिर बनने के बाद बीजेपी ने इसे अपनी सबसे बड़ी जीत बताया. इसके अलावा मथुरा और काशी जैसे मुद्दों को भी उसने अपने एजेंडा में रखा.
हिंदुत्व के जरिए बीजेपी ने अलग-अलग जातियों के हिंदुओं को एक साथ ला दिया. उसने गाय की रक्षा और धर्मांतरण के खिलाफ सख्त कानून बनाए, जिससे हिंदू वोटरों में उसकी पकड़ मजबूत हुई. दूसरी तरफ राष्ट्रवाद ने भी बीजेपी को ताकत दी. जनसंघ के जमाने से ही बीजेपी ‘एक देश, एक विधान, एक निशान’ की बात करती थी. 2019 में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाकर उसने इसे सच कर दिखाया.
पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक ने भी बीजेपी की राष्ट्रवादी छवि को चमकाया. इन मुद्दों पर विपक्ष के पास कोई जवाब नहीं है. जब बीजेपी राष्ट्रवाद की बात करती है, तो विपक्ष चुप रह जाता है या उसे ‘हिंदू विरोधी’ ठहराने की कोशिश करता है, जो उल्टा पड़ जाता है.
गठबंधन की सियासत
बीजेपी की चौथी ताकत है उसकी गठबंधन की कला. पार्टी ने अपने 45 साल के सफर में हर तरह की पार्टियों के साथ हाथ मिलाया. चाहे वो लेफ्ट हो, समाजवादी हों या फिर क्षेत्रीय दल. बीजेपी ने सबके साथ सियासी दोस्ती की. मिसाल के तौर पर देखें तो अटल बिहारी वाजपेयी का दौर- 1998 में वाजपेयी ने एनडीए बनाया और पंजाब से लेकर तमिलनाडु तक के दलों को जोड़ा. इसी गठबंधन की बदौलत वो तीन बार पीएम बने.
फिर अगर मोदी का दौर देखें तो नरेंद्र मोदी ने भी छोटे-छोटे दलों को साथ लिया. बिहार में नीतीश कुमार, यूपी में अपना दल और पूर्वोत्तर में कई छोटी पार्टियों के साथ बीजेपी ने गठबंधन किया.
बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी पार्टियों के साथ भी सरकार बनाई. उसने अपने वैचारिक मतभेदों को दरकिनार कर सत्ता हासिल की. विपक्ष भी गठबंधन बनाता है, लेकिन बीजेपी की तरह उसे कामयाबी नहीं मिलती. 2024 में इंडिया गठबंधन बना, लेकिन विधानसभा चुनावों में वो बिखर गया. बीजेपी की गठबंधन नीति ने उसे हमेशा आगे रखा.
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चक्रव्यूह का आखिरी हिस्सा
बीजेपी का पांचवां हथियार है विपक्ष की कमजोरी. कांग्रेस, सपा, आरजेडी जैसी पार्टियां आपस में लड़ती रहती हैं और बीजेपी इसका फायदा उठाती है. 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने कुछ एकजुटता दिखाई, लेकिन बाद में हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में वो फिर बिखर गया. दिल्ली में AAP और कांग्रेस का तालमेल न बनना भी बीजेपी के लिए फायदेमंद रहा.
बीजेपी हर चुनाव को गंभीरता से लेती है. चाहे लोकसभा हो, विधानसभा हो या नगर पालिका का चुनाव, वो पूरी ताकत लगाती है. इसके अलावा वो सियासी कहानी (नैरेटिव) बनाने में भी माहिर है. मिसाल के तौर पर, राम मंदिर और धारा 370 जैसे मुद्दों पर उसने जनता का ध्यान खींचा. विपक्ष न तो एकजुट हो पाता है और न ही बीजेपी के नैरेटिव का जवाब दे पाता है.
बीजेपी का अजेय चक्रव्यूह
45 साल में बीजेपी ने शून्य से शिखर तक का सफर तय किया. उसकी सोशल इंजीनियरिंग ने हर तबके को जोड़ा, संगठन ने जमीनी ताकत दी, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद ने भावनाएं जगाईं, गठबंधन ने उसे विस्तार दिया और विपक्ष की कमजोरी ने उसकी राह आसान की. आज पीएम नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी एक ऐसी ताकत बन चुकी है, जिसका चक्रव्यूह तोड़ना विपक्ष के लिए सपना ही रह गया है. तो क्या विपक्ष कभी इस चक्रव्यूह को तोड़ पाएगा? या बीजेपी का विजय रथ यूं ही चलता रहेगा? जवाब भविष्य में छुपा है, लेकिन अभी तो बीजेपी का डंका बज रहा है.