RSS की बैठक और हिंदू नववर्ष का कनेक्शन…ऐसे ही नहीं बार-बार टल रहा है BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव!
पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा
BJP President Election: बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बदलने का वक्त आ चुका है, लेकिन चुनाव में देरी हो रही है. क्या कारण हैं, जो इस चुनाव को टाल रहे हैं? क्या ये देरी राजनीति से जुड़ी है या कुछ और कारण हैं, जो इस बड़े फैसले को टालने में भूमिका निभा रहे हैं? वैसे तो कहा जा रहा है कि BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से जगत प्रकाश नड्डा की विदाई वेला निकट है. उनका कार्यकाल पिछले साल फरवरी 2024 में ही पूरा हो गया था, लेकिन लोकसभा चुनाव और फिर राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बढ़ाया जाता रहा. BJP के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले 50% राज्य इकाइयों का संगठनात्मक चुनाव होना अनिवार्य है. इस प्रक्रिया में विलंब हुआ है. आइए, क्यों बार बार देरी हो रही है और क्या तर्क दिए जा रहे हैं विस्तार से समझते हैं.
प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव के बाद ही होता है राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव के बाद ही होता है. यह कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन दरअसल, पार्टी के अंदर इस प्रक्रिया को पूरा करना बेहद महत्वपूर्ण है. अगर आप राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव बिना प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव के करते हैं, तो यह संगठन में असमंजस पैदा कर सकता है.
अभी तक, बीजेपी के केवल 12 राज्यों में ही प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव हो पाया है, जबकि बाकी राज्यों में अभी चुनाव नहीं हुए हैं. आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि इन प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव के लिए कोई तय समयसीमा भी नहीं है. इसका मतलब है कि पार्टी चुनावों को जितना चाहे खींच सकती है.
लेकिन अगर जल्दी चुनाव कराए भी जाते हैं, तो इसमें भी समय लगता है. इन चुनावों में केंद्रीय पर्यवेक्षक भेजे जाते हैं, चुनाव की तारीख तय होती है और फिर मतदान होता है. इसके लिए लगभग 10-12 दिन लग सकते हैं. तो जब तक प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव पूरे नहीं होते, राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना मुश्किल है. यह सीधे तौर पर चुनाव प्रक्रिया को टालने का कारण बन रहा है.
RSS की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक
अब, यह मामला एक और दिलचस्प मोड़ पर आ जाता है. 21 से 23 मार्च तक बेंगलुरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक आयोजित होने वाली है. यह बैठक केवल संघ के कार्यकर्ताओं के लिए नहीं, बल्कि भाजपा के शीर्ष नेताओं के लिए भी महत्वपूर्ण है.
बीजेपी का नेतृत्व और RSS दोनों मिलकर ही पार्टी की दिशा और राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव तय करते हैं. इस बैठक में 1500 से ज्यादा प्रतिनिधि होंगे, और इस दौरान बहुत सारे राजनीतिक फैसले लिए जाएंगे. फिर से, यह पार्टी की अंदरूनी राजनीति का हिस्सा है, जहां अध्यक्ष के चुनाव से पहले सभी नेताओं के बीच परामर्श और निर्णय लिया जाता है.
आरएसएस के अधिकारी 17 मार्च से ही बेंगलुरू पहुंच जाएंगे और वे 24 मार्च के बाद ही वापस लौट सकेंगे. इसलिए यह संभावना जताई जा रही है कि 24 मार्च के बाद ही इस महत्वपूर्ण विषय पर बात की जाएगी और राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जा सकेगी.
चुनाव की सटीक तारीख
अब एक और वजह, जो इस चुनाव को हिंदू नववर्ष से जोड़ने की कोशिश कर रही है. भारतीय राजनीति में सांस्कृतिक प्रतीकों का खास महत्व है, और भाजपा इसे समझती है. हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा से होती है, जो इस साल 30 मार्च को है.
सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हिंदू नववर्ष के पहले महीने में ही करना चाहती है. महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों से जुड़ी एक भावना भी है, जो पार्टी के नेताओं को लगता है कि यह भारतीय संस्कृति और हिंदू अस्मिता को प्रकट करता है. भाजपा अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को इस ऐतिहासिक और धार्मिक संदर्भ में जोड़कर इसे पार्टी के लिए एक खास अवसर बनाना चाहती है.
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चुनाव अब अप्रैल में होगा?
अब यह सभी वजहें मिलकर एक ऐसी स्थिति बना रही हैं, जिससे यह साफ है कि नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव अब अप्रैल तक खिंच सकता है. प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव, आरएसएस की बैठक, और हिंदू नववर्ष के धार्मिक पहलू को जोड़कर भाजपा अब अप्रैल में ही अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव करने की योजना बना रही है.
तो अब आप समझ गए होंगे कि बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव क्यों टल रहा है. यह राजनीति, रणनीति और संस्कृति का मिश्रण है. प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव, आरएसएस की अहम बैठक और हिंदू नववर्ष के साथ चुनाव को जोड़ने का विचार यह सब संकेत करता है कि इस चुनाव को पूरी तरह से सही समय पर और सही तरीके से किया जाएगा.