क्यों गांधी को जहर देने से पहले रोने लगे थे बतख मियां? कहानी चंपारण की
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महात्मा गांधी और बतख मियां
Mahatma Gandhi Punyatithi: नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या कर दी. गांधीजी प्रार्थना सभा में थे, जब गोडसे ने उन पर तीन गोलियां चलाईं. बापू की हत्या का मुकदमा 22 जून 1948 को दिल्ली में शुरू हुआ. जांच में पता चला कि यह हत्या पहले से ही एक साजिश के तहत की गई थी. 10 फरवरी 1949 को जज ने गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा सुनाई. बाकी आरोपियों- गोपाल गोडसे, विष्णु करकरे, मदनलाल पहवा, शंकर किस्तैया और दत्तात्रेय परचुरे को उम्रकैद की सजा मिली. खैर ये कहानी तो आपको मालूम ही है. आज बापू की एक अलग कहानी विस्तार से बताएंगे.
दरअसल, महात्मा गांधी के बारे में हमें जितना मालूम है, वह उनकी विशाल भूमिका और प्रभाव के बारे में है. मगर क्या आपने कभी सुनी है वो दिलचस्प कहानी जब गांधी की जान एक आम आदमी ने बचाई थी, जिसका नाम था बतख़ मियां? अब आप सोच रहे होंगे, “बतख़ मियां? यह कौन है?” तो चलिए, यह दिलचस्प क़िस्सा विस्तार से बताते हैं.
चंपारण में अंग्रेज़ों की साज़िश
यह बात 1917 की है, जब गांधी चंपारण में नील के खेतों में काम कर रहे किसानों के लिए संघर्ष कर रहे थे. किसानों की हालत इतनी दयनीय थी कि उन्हें गुलामों जैसा जीवन जीने को मजबूर किया जा रहा था. गांधी ने उनकी मदद के लिए कदम उठाए, और यह सच्चाई ब्रिटिश सरकार के लिए किसी आपातकाल से कम नहीं थी.
आप सोच रहे होंगे, गांधी का आंदोलन इतना बड़ा था तो विरोध भी उसी स्तर का होना चाहिए था. सही सोचा आपने! ब्रिटिश सरकार और उनके पिट्ठू गांधी को खत्म करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे. और वह असली क़िस्सा यहीं से शुरू होता है!
इरविन की चाल और बतख़ मियां की दुविधा
चंपारण में एक नील मिल के मालिक इरविन ने गांधी के आंदोलन को खत्म करने के लिए एक शातिर साजिश रची. वह जानता था कि अगर गांधी की जान ली जाए, तो आंदोलन खत्म हो जाएगा. इस काम को करने के लिए उसने चुना… बतख़ मियां को!
बतख़ मियां कौन थे?
एक साधारण किसान बतख़ मियां अपने परिवार को पालने के लिए बहुत मेहनत करते थे. उनकी कोई बड़ी महत्वाकांक्षा नहीं थी. लेकिन जब इरविन ने उन्हें जहर के साथ एक ट्रे दी और कहा कि ‘यह गांधी को दो, उनका काम तमाम करो” तो बतख़ मियां की दुनिया उलट-पुलट हो गई.
पहले तो उन्होंने मना किया, पर परिवार की परेशानियों और दबाव के चलते वह यह खतरनाक काम करने के लिए मजबूर हो गए. लेकिन जब वह ट्रे लेकर गांधी के पास पहुंचे, तो गांधी की एक नज़र ने सब बदल दिया.
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जब फट पड़ा बतख मियां का दिल
गांधी के सामने खड़ा बतख़ मियां, यह सोचकर अंदर से कांप रहे थे कि वह एक भयानक अपराध करने जा रहे हैं. जैसे ही गांधी ने उन्हें देखा, उनकी नज़रें मिलीं, और… सब बदल गया. गांधी ने पूछा तुम्हारे अंदर कोई उलझन है. और फिर क्या था? बतख़ मियां का दिल फट पड़ा.
उन्होंने गांधी के सामने अपनी पूरी कहानी रख दी. यह सच था, गांधी को मारने के लिए जहर मिलाकर खाना दिया गया था, और वह सिर्फ एक छोटी सी साजिश का हिस्सा थे. गांधी ने बड़ी शांति से कहा, “तुमने जो किया, वह सही किया. तुम एक अच्छे इंसान हो.”
बतख़ मियां का संघर्ष
गांधी की नज़र और शब्दों ने बतख़ मियां को अंदर से बदल दिया. उन्होंने अपनी जिंदगी में पहली बार महसूस किया कि उनका काम गलत नहीं था. इस घटना के बाद, गांधी ने साजिश का पर्दाफाश किया, और बता दिया कि कुछ लोग किस हद तक जा सकते हैं, बस अपने छोटे से फायदे के लिए.
बतख़ मियां का क्या हुआ?
वैसे तो बतख मियां का नाम इतिहास में ज्यादा जगह नहीं है, लेकिन उनकी बहादुरी ने गांधी की जान बचाई. वे गिरफ्तार हुए, जेल में गए, और उनकी ज़मीनें नीलाम कर दी गईं. लेकिन गांधी ने कभी उन्हें नहीं भुलाया.
कई साल बाद, 1957 में जब भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद चंपारण में एक जनसभा को संबोधित करने गए, तो उन्होंने एक शख्स को देखा. उस शख्स की नज़र कुछ खास थी. जी हां, वह बतख़ मियां ही थे! राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें पहचान लिया और मंच पर बुलाया.
प्रसाद जी ने उस क़िस्से को सबके सामने सुनाया, और यह भी बताया कि कैसे बतख़ मियां ने गांधी की जान बचाई. बाद में राष्ट्रपति भवन ने बिहार सरकार से पत्र लिखा और बतख़ मियां के परिवार को कुछ ज़मीन दिलाने की कोशिश की, हालांकि वह ज़मीन कभी नहीं मिली.
क्या होता अगर बतख़ मियां नहीं होते?
अब आप सोचिए, अगर बतख़ मियां ने उस ट्रे में रखा जहर गांधी को दे दिया होता, तो भारतीय इतिहास की धारा क्या होती? क्या गांधी का आंदोलन सफल हो पाता? शायद नहीं. गांधी की जान बचाने वाले इस साधारण किसान की बहादुरी ने देश के इतिहास को बदल दिया.
छोटी सी भूमिका, बड़ा प्रभाव
यह क़िस्सा हमें यह सिखाता है कि कभी-कभी इतिहास में सबसे बड़ी भूमिका वो लोग निभाते हैं, जिन्हें हम आम समझते हैं. बतख़ मियां की यह छोटी सी भूमिका, गांधी की जान बचाकर, एक बड़े बदलाव का हिस्सा बन गई. यह बताता है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी साधारण क्यों न हो, एक बड़ी भूमिका निभा सकता है.
तो अगली बार जब आप गांधी का नाम लें, तो यह याद रखिएगा कि उस रास्ते में एक साधारण किसान ने भी अपनी जान जोखिम में डाली थी, ताकि इतिहास में एक नया मोड़ आ सके.