संगठन, मुद्दे और बीजेपी से ‘जंग’…क्या दो दिन में निकलेगा जीत का मंत्र? 6 दशक बाद गुजरात में कांग्रेस का अधिवेशन
राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे
Congress National Adhiveshan: 8 अप्रैल 2025 को गुजरात के अहमदाबाद में कुछ बड़ा होने वाला है. देश की सबसे पुरानी पार्टी, इंडियन नेशनल कांग्रेस अपने दो दिन के राष्ट्रीय अधिवेशन के साथ एक नई शुरुआत करने जा रही है. इसका नाम है ‘न्यायपथ: संकल्प, समर्पण, संघर्ष’. पार्टी के बड़े नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी इसकी कमान संभाल रहे हैं. सवाल ये है कि क्या ये दो दिन कांग्रेस को फिर से उठाने और बीजेपी से टक्कर लेने का रास्ता दिखा पाएंगे? आइए विस्तार से समझते हैं.
ये अधिवेशन है क्या?
कांग्रेस हर कुछ साल में अपने नेताओं को इकट्ठा करती है ताकि आगे की रणनीति बनाई जा सके. इसे प्लेनरी सेशन या पूर्ण अधिवेशन कहते हैं. इस बार ये 86वां अधिवेशन है और खास बात ये कि 64 साल बाद गुजरात में हो रहा है. पिछली बार 1961 में भावनगर में हुआ था. इस बार अहमदाबाद में दो दिन—8 और 9 अप्रैल 2025—तक कांग्रेस के बड़े नेता मिलकर देश की सियासत, पार्टी की कमजोरियों और भविष्य के प्लान पर मंथन करेंगे.
पहला दिन (8 अप्रैल): सरदार वल्लभभाई पटेल स्मारक में कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की बैठक होगी. इसमें 262 बड़े नेता शामिल होंगे. मल्लिकार्जुन खड़गे इसकी अगुवाई करेंगे.
दूसरा दिन (9 अप्रैल): साबरमती रिवरफ्रंट पर बड़ी सभा होगी. इसमें CWC के अलावा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और कई सीनियर नेता आएंगे.
गुजरात में क्यों,क्या है खास?
गुजरात कोई आम जगह नहीं है. ये महात्मा गांधी और सरदार पटेल की जन्मभूमि है. दोनों कांग्रेस के हीरो रहे हैं. लेकिन पिछले 30 साल से गुजरात में बीजेपी का दबदबा है. कांग्रेस यहां चुनाव नहीं जीत पाई. फिर भी पार्टी ने गुजरात को चुना. क्यों? क्योंकि ये एक सांकेतिक संदेश है. कांग्रेस कहना चाहती है, “हम अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं और बीजेपी को उसके गढ़ में चुनौती देंगे.” साथ ही, गुजरात नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है. यहां से शुरूआत करके कांग्रेस शायद “मोदी मॉडल” को टक्कर देने का इरादा दिखाना चाहती है.
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा, “गुजरात वो धरती है जहां से गांधी और पटेल ने रास्ता दिखाया. आज लोग बीजेपी से परेशान हैं, चाहे वो मध्यम वर्ग हो, दलित, आदिवासी या अल्पसंख्यक. हमें उम्मीद है कि गुजरात हमें फिर से राह दिखाएगा.”
ऊंट किस करवट बैठेगा?
2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अच्छा कमबैक किया था. 2019 में 52 सीटें थीं, जो 2024 में दोगुनी हो गईं. पार्टी में जोश आया, लेकिन इसके बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में हार ने सारा उत्साह ठंडा कर दिया. गुजरात में तो कांग्रेस 30 साल से सत्ता से बाहर है. बीजेपी की मशीनरी इतनी मजबूत है कि कांग्रेस को हर बार मात मिलती है. ऐसे में ये अधिवेशन कांग्रेस के लिए ‘करो या मरो’ जैसा है.
राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने पहले ही कह दिया है, “2025 संगठन का साल होगा.” मतलब, पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करना पहली प्राथमिकता है. लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सिर्फ बातें हैं या सचमुच कुछ बदलेगा?
आइये जानते हैं कि इस मंथन में क्या-क्या होगा ?
संगठन को चुस्त-दुरुस्त करना
कांग्रेस ने माना कि बिना मजबूत संगठन के बीजेपी से लड़ाई मुश्किल है. पार्टी का कहना है कि वो अपने जिला अध्यक्षों को ज्यादा ताकत देगी, उनकी जिम्मेदारी बढ़ाएगी और शायद चुनाव में उम्मीदवार चुनने का हक भी देगी. बिहार में हाल ही में संगठन को ठीक करने की कोशिश कामयाब रही. वहां नए लोग लाए गए और जिला स्तर पर बदलाव दिखा. अब यही फॉर्मूला पूरे देश में आजमाने की तैयारी है.
लेकिन एक पेंच है, ज्यादातर बड़े पदों पर पुराने नेता ही काबिज हैं. नए चेहरों को मौका कम मिला. क्या कांग्रेस सचमुच बदलाव लाएगी या ये सिर्फ दिखावा होगा?
मुद्दों पर साफ रुख
कांग्रेस इस अधिवेशन में अपने सियासी एजेंडे को साफ करेगी. कुछ बड़े मुद्दे जो चर्चा में होंगे:
महंगाई: आम आदमी की जेब पर बोझ बढ़ रहा है. कांग्रेस इस पर सरकार को घेरेगी.
सामाजिक न्याय: राहुल गांधी जातिगत जनगणना और 50% आरक्षण की सीमा बढ़ाने की वकालत करते रहे हैं.
संविधान की रक्षा: कांग्रेस का दावा है कि बीजेपी संविधान को कमजोर कर रही है.
ये मुद्दे तय करेंगे कि कांग्रेस जनता के सामने क्या लेकर जाएगी. पार्टी चाहती है कि लोग उसे बीजेपी के विकल्प के तौर पर देखें.
बीजेपी से लड़ने की रणनीति
बीजेपी से सीधा मुकाबला जहां होता है, जैसे गुजरात, राजस्थान या मध्य प्रदेश—वहां कांग्रेस कमजोर पड़ती है. इस अधिवेशन में बीजेपी को टक्कर देने का प्लान बनेगा. कांग्रेस हर मुद्दे पर विरोध करने के बजाय जनता से जुड़े सवाल उठाने की कोशिश करेगी. मिसाल के तौर पर, बेरोजगारी पर बिहार में शुरू हुई पदयात्रा को देश भर में फैलाने का प्लान बन सकता है.
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सोशल इंजीनियरिंग का नया फॉर्मूला
कांग्रेस का पुराना वोटबैंक था—दलित, मुस्लिम, ब्राह्मण और कुछ सवर्ण जातियां. लेकिन अब सियासत बदल गई है. राहुल गांधी अब दलित, OBC, आदिवासी और अल्पसंख्यकों को जोड़ने पर फोकस कर रहे हैं. पार्टी संविधान और आरक्षण को बड़ा मुद्दा बनाकर इन तबकों को ये भरोसा देना चाहती है कि हम ही तुम्हारे हक की लड़ाई लड़ सकते हैं. ये नई सोशल इंजीनियरिंग बीजेपी के वोटबैंक में सेंध लगा सकती है, अगर सही से लागू हुई तो!
आने वाले चुनावों की तैयारी
2025 में बिहार और 2026 में पश्चिम बंगाल, असम, केरल जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं. कांग्रेस यहां अपनी रणनीति फाइनल करेगी. हर राज्य में बीजेपी या क्षेत्रीय पार्टियों से लड़ने का अलग प्लान बनेगा.
प्रियंका को मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी
मीडिया और कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, इस अधिवेशन में प्रियंका गांधी की भूमिका को और मजबूत करने पर विचार हो रहा है. वो अभी पार्टी की महासचिव हैं और हाल ही में वायनाड से सांसद भी बनी हैं. अब पार्टी उन्हें संगठन में या सियासी रणनीति में कोई अहम पद दे सकती है, जैसे कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) में खास जिम्मेदारी या फिर चुनावी रणनीति की कमान.
क्यों उठी ये बात?
प्रियंका की ताकत बढ़ाने की चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि वो जनता से जुड़ने और मुद्दों को उठाने में माहिर मानी जाती हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में उनकी रणनीति ने कांग्रेस को फायदा पहुंचाया था. साथ ही, वायनाड में उनकी भारी जीत (4 लाख से ज्यादा वोटों का अंतर) ने उनकी लोकप्रियता को साबित किया है. पार्टी चाहती है कि इस जोश का फायदा पूरे देश में उठाया जाए.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पहले कहा था कि प्रियंका के संसद में आने से पार्टी को “नई ऊर्जा और शक्ति” मिली है. अहमदाबाद में होने वाली CWC बैठक में उनकी मौजूदगी और सक्रियता को देखते हुए कई नेता मानते हैं कि ये मौका उनके रोल को बढ़ाने का सही समय हो सकता है.
क्या हैं चुनौतियां?
सब कुछ इतना आसान नहीं है. कांग्रेस के सामने कई बड़ी मुश्किलें हैं. गुजरात में 30 साल से हार रही है. हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में ताजा हार ने हौसला तोड़ा है. बीजेपी का संगठन और पैसा कांग्रेस से कहीं आगे है. उसकी मशीनरी को टक्कर देना बड़ा चैलेंज है.वहीं कांग्रेस में बदलाव की बात तो होती है, लेकिन नए चेहरों को मौका कम मिलता है.
क्या पुराने ढर्रे से बाहर निकल पाएगी कांग्रेस?
ये अधिवेशन कांग्रेस के लिए एक मौका है, खुद को फिर से खड़ा करने का, जनता का भरोसा जीतने का. अगर संगठन को सचमुच मजबूत किया गया, मुद्दों पर साफ रुख रखा गया और बीजेपी से लड़ने का स्मार्ट प्लान बना, तो ये दो दिन कांग्रेस की किस्मत बदल सकते हैं. लेकिन अगर ये सिर्फ बड़ी-बड़ी बातों तक सीमित रहा, तो ये एक और मौका गंवाने जैसा होगा.
गुजरात की धरती से शुरूआत सांकेतिक तौर पर बड़ी है. ये वही जगह है जहां से गांधी ने आजादी की लड़ाई शुरू की थी. क्या कांग्रेस यहां से अपनी सियासी आजादी की लड़ाई शुरू कर पाएगी? जवाब आने वाले महीनों में मिलेगा, जब संगठन का असली टेस्ट होगा और चुनावी नतीजे सामने आएंगे.