दक्षिण से उत्तर तक…परिसीमन के नाम पर संदेह क्यों? धीरे-धीरे लामबंद हो रहा है विपक्ष!

अब, यहां पंजाब का भी रुख बड़ा दिलचस्प है. पंजाब के सीएम भगवंत मान ने इस बैठक में हिस्सा लिया और कहा कि अगर परिसीमन हुआ, तो पंजाब की सीटें घट जाएंगी, क्योंकि उनकी वोटिंग प्रतिशत काफी कम हो जाएगा. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि बीजेपी उन राज्यों की सीटें बढ़ाएगी जहां वह राजनीतिक रूप से मजबूत है.
Delimitation Controversy

प्रतीकात्मक तस्वीर

Delimitation Controversy: चेन्नई में जो सर्वदलीय बैठक हुई, उससे एक बड़ी राजनीतिक बहस छिड़ गई है. जी हां,परिसीमन को लेकर खूब बवाल हो रहा है. अगर आसान भाषा में कहा जाए, तो इसका मतलब है लोकसभा और विधानसभा की सीटों का फिर से बंटवारा करना. हर राज्य में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ाई या घटाई जा सकती है, और यह पूरी तरह से उस राज्य की जनसंख्या पर निर्भर करता है.

लेकिन परिसीमन के इस खेल में अब राजनीति का तड़का लग चुका है. दक्षिण भारत के कुछ राज्य इस प्रक्रिया के खिलाफ हैं, क्योंकि उनका कहना है कि अगर यह जनसंख्या के आधार पर हुआ, तो उनकी लोकसभा सीटें घट जाएंगी. तमिलनाडु, कर्नाटक, और केरल जैसे राज्य पहले से ही जनसंख्या नियंत्रण की नीतियों को सफलतापूर्वक लागू कर चुके हैं, लेकिन अब परिसीमन की प्रक्रिया उनके लिए एक सुनामी जैसा हो सकती है.

क्या है परिसीमन?

साधारण भाषा में समझें तो परिसीमन का मतलब है कि चुनावी सीटों को फिर से बंटवारा करना. इस प्रक्रिया में, हर राज्य की सीटों की संख्या उसकी जनसंख्या के हिसाब से तय की जाती है. अगर किसी राज्य में जनसंख्या बढ़ती है, तो वहां सीटें बढ़ सकती हैं, और अगर जनसंख्या कम होती है, तो सीटें घट भी सकती हैं.

उदाहरण के तौर पर, अगर एक राज्य में बहुत ज़्यादा लोग रहते हैं और वहीं दूसरी ओर जनसंख्या घट रही है, तो बंटवारे के हिसाब से कम जनसंख्या वाले राज्यों को कम सीटें मिल सकती हैं. ये सिर्फ सीटों का खेल नहीं है, ये एक राज्य की राजनीतिक ताकत पर भी असर डाल सकता है.

भारत में परिसीमन की प्रक्रिया 1950-51 में शुरू हुई थी, जब राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग की मदद से पहले परिसीमन का काम किया. 1952 में 1951 की जनगणना के आधार पर पहली बार परिसीमन हुआ, और लोकसभा सीटों का निर्धारण किया गया. इसके बाद, 1963 में 1961 की जनगणना के आधार पर दूसरा परिसीमन हुआ, फिर 1976 में 1971 की जनगणना के आधार पर तीसरा परिसीमन हुआ, जिससे लोकसभा सीटों की संख्या बढ़कर 543 हो गई.

आखिरी परिसीमन 2002 में हुआ था, जो 2001 की जनगणना पर आधारित था. इसके बाद से अब तक कोई नया परिसीमन नहीं हुआ है, और वर्तमान में सीटों की संख्या 543 ही बनी हुई है.

दक्षिण भारत में बवाल क्यों ?

अब बात करते हैं उन राज्यों की जो इस परिसीमन से खौफज़दा हैं. तमिलनाडु, कर्नाटक, और केरल जैसे राज्य इसका विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इन राज्यों ने जनसंख्या पर काबू पाया है. अब अगर परिसीमन हुआ और राज्यों की जनसंख्या के हिसाब से सीटें तय की गईं, तो उन्हें सामान्य से कम सीटें मिल सकती हैं.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने तो कहा, “हम परिसीमन के खिलाफ नहीं हैं, हम निष्पक्ष परिसीमन के पक्ष में हैं.” यानी, स्टालिन का कहना है कि ये बदलाव सभी के लिए समान होना चाहिए, न कि किसी खास राज्य या दल के हित में. स्टालिन ने तो यहां तक कह दिया कि अगर जरूरत पड़ी तो कानूनी कदम भी उठाए जाएंगे.

वहीं, कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने ये कहा कि वो किसी हालत में अपनी सीटें कम नहीं होने देंगे. उन्होंने यह भी दावा किया कि कर्नाटक जैसे राज्य जो आर्थिक रूप से प्रगतिशील हैं और जनसंख्या नियंत्रण में सही दिशा में चल रहे हैं, उन्हें नुकसान नहीं होना चाहिए.

पंजाब को किस बात का डर?

अब, यहां पंजाब का भी रुख बड़ा दिलचस्प है. पंजाब के सीएम भगवंत मान ने इस बैठक में हिस्सा लिया और कहा कि अगर परिसीमन हुआ, तो पंजाब की सीटें घट जाएंगी, क्योंकि उनकी वोटिंग प्रतिशत काफी कम हो जाएगा. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि बीजेपी उन राज्यों की सीटें बढ़ाएगी जहां वह राजनीतिक रूप से मजबूत है.

क्या है बीजेपी का प्लान?

विपक्षी दलों का कहना है कि बीजेपी तो बस अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए उन राज्यों में सीटें बढ़ाएगी, जहां उसे राजनीतिक फायदा मिलेगा. मतलब, उन राज्यों में सीटें बढ़ने वाली हैं जहां बीजेपी का वर्चस्व है. यही कारण है कि दक्षिण भारत के राज्य बीजेपी की इस रणनीति से खासे परेशान हैं. हालांकि, बीजेपी का कहना है कि यह एक सामयिक प्रक्रिया है, जिसे समय पर पूरा करना जरूरी है.

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परिसीमन का राजनीतिक असर?

अब ये सोचिए, अगर परिसीमन के बाद कुछ राज्यों में सीटें घटती हैं तो इसका असर उन राज्यों की राजनीतिक ताकत पर पड़ेगा. यह 2029 के चुनावों के लिए यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है, क्योंकि सीटों के बदलाव से किसी राज्य की पार्टी को फायदा हो सकता है और किसी को नुकसान.

बात यह है कि परिसीमन एक ऐसा मुद्दा है जो जनसंख्या के हिसाब से लोकसभा सीटों का बंटवारा करता है, लेकिन जब राजनीति की बात आती है, तो सब कुछ सियासी गणित का हिस्सा बन जाता है. दक्षिण भारत के राज्य इसके खिलाफ हैं क्योंकि उन्हें डर है कि इससे उनकी लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी. दक्षिण में विपक्ष मजबूत भी है, और कहीं न कहीं इसलिए केंद्र से इस मुद्दे पर टकराव भी हो रहा है.

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