बादल फटा, तबाही ही तबाही…फिर भी धराली गांव के बुजुर्गों को खरोंच तक नहीं आई!
धराली में तबाही!
Dharali Tragedy: उत्तरकाशी का धराली गांव अब एक भयावह त्रासदी की चपेट में है. खीरगंगा नदी के उफान और बादल फटने की घटना ने इस छोटे से गांव को मलबे और दलदल के हवाले कर दिया. यह कहानी है उस त्रासदी की, जिसमें प्रकृति ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया, लेकिन एक चमत्कार ने गांव के बुजुर्गों की जान बचा ली.
धराली में क्या हुआ ?
5 अगस्त को धराली में खीरगंगा नदी अचानक उफान पर आ गई. बादल फटने से नदी का पानी मलबे और पत्थरों के साथ गांव में घुस गया. सुंदर घाटियां, पर्यटकों के ठहरने की जगहें और छोटे-छोटे घर पलक झपकते ही मलबे में दब गए. सड़कें गायब, घर तबाह और चारों तरफ 30 से 50 फीट ऊंचा मलबा. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस हादसे में अब तक 6 लोगों की मौत हो चुकी है, और डर है कि 150 लोग अभी भी मलबे के नीचे दबे हो सकते हैं.
इस त्रासदी ने न सिर्फ स्थानीय लोगों को, बल्कि पर्यटकों और कारोबारियों को भी अपनी चपेट में लिया. कभी हंसी-ठहाकों और सैलानियों की चहल-पहल से गुलजार रहने वाला गांव का बाजार अब खामोश और वीरान है. लेकिन इस सारी तबाही के बीच एक कहानी ऐसी है, जो दिल को सुकून देती है.
जब आस्था बनी जीवन रक्षक
इस भयानक मंजर में एक कहानी ऐसी भी थी, जिसने हर किसी को हैरान कर दिया. जब खीरगंगा नदी का मलबा गांव को निगल रहा था, उस वक्त गांव के बुजुर्ग पूरी तरह से सुरक्षित थे. यह किसी चमत्कार से कम नहीं था.
दरअसल, गांव के सभी बुजुर्ग उस रात गांव से थोड़ी दूर अपने पूर्वजों के मंदिर में एक सामूहिक पूजा के लिए गए हुए थे. यह उनकी सालों पुरानी परंपरा है. उन्हें क्या पता था कि यही परंपरा उनकी जान बचा लेगी. जब मलबा गांव में घुसा, तो वे सब सुरक्षित स्थान पर थे. उन्हें खरोंच तक नहीं आई. अफसोस की बात ये रही कि गांव के जवान और बच्चे इस खतरे से बेखबर थे और वे सब इस भयानक त्रासदी की चपेट में आ गए.
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रेस्क्यू ऑपरेशन जारी
त्रासदी की खबर मिलते ही उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार हरकत में आ गई. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद रेस्क्यू ऑपरेशन पर नजर रखी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पीड़ितों को हर संभव मदद का भरोसा दिया. सेना, एनडीआरएफ, आईटीबीपी, और एसडीआरएफ की टीमें तुरंत मौके पर पहुंचीं. लेकिन रास्ता इतना आसान नहीं था.
धराली में रेस्क्यू ऑपरेशन दोहरी चुनौती से जूझ रहा है. एक तरफ खीरगंगा का तेज बहाव, दूसरी तरफ मलबे से बना दलदल. रेस्क्यू टीमें कई किलोमीटर पैदल चलकर पहाड़ी रास्तों से धराली पहुंचीं. गीली मिट्टी में चलना मुश्किल था, इसलिए टिन की चादरें बिछाकर रास्ता बनाया गया. भटवाड़ी के हेलीपैड से हेलीकॉप्टरों के जरिए राहत सामग्री और बचाव उपकरण पहुंचाए गए. आगरा से स्पेशल पारा फोर्स की टीमें देहरादून से एयरलिफ्ट होकर धराली पहुंचीं.
अब तक 400 लोगों को सुरक्षित निकाला जा चुका है, जिसमें सेना के 11 लापता जवान भी शामिल हैं. लेकिन बार-बार फट रहे ग्लेशियर और खराब मौसम ने रेस्क्यू को और मुश्किल बना दिया. गुरुवार की सुबह मौसम ने थोड़ा साथ दिया, जिसके बाद रेस्क्यू फिर से शुरू हुआ.