पार्टी के भीतर गुटबाजी, AAP से डील पर भी संकट…फिर CEC की बैठक बुलाने के पीछे क्या है कांग्रेस की रणनीति?

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला सहित एक गुट कथित तौर पर हुड्डा की सत्ता को मजबूत करने से नाखुश है. किरण चौधरी (जो इस गुट का हिस्सा थीं) ने अपनी बेटी को लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिए जाने के बाद पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया.
Haryana Election

हरियाणा कांग्रेस में खींचतान ( प्रतीकात्मक तस्वीर)

Haryana Election: कांग्रेस पार्टी हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस रही है. पार्टी अपने उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप दे रही है और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा न करने का फैसला किया है. पार्टी ने इसके बजाय संयुक्त नेतृत्व मॉडल को चुना है. कांग्रेस ने संभावित गठबंधन के बारे में आम आदमी पार्टी के साथ बातचीत फिर से शुरू कर दी है. हालांकि दोनों ने पहले 2024 के आम चुनाव एक साथ लड़े थे, लेकिन शुरुआती संकेतों से पता चलता है कि वे विधानसभा चुनावों में अपने-अपने रास्ते पर चलेंगे. दरअसल, कांग्रेस के कुछ नेताओं ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन का विरोध किया है.

आम चुनावों में अपने मजबूत प्रदर्शन के बाद आश्वस्त कांग्रेस का मानना ​​है कि राज्य चुनावों में उसके पास अच्छा मौका है. लेकिन पार्टी के सामने इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती उम्मीदवारों के नाम को लेकर खींचतान है. इसके मद्देनजर पार्टी आलाकमान ने फिर से हरियाणा चुनाव को लेकर सीईसी की बैठक बुलाने का फैसला किया है. सीईसी की बैठक शुक्रवार शाम 5 बजे बुलाई गई है.

सूत्रों के मुताबिक, आम आदमी पार्टी से गठबंधन की बात और सांसदों को टिकट नहीं दिए जाने को लेकर पार्टी के भीतर बवाल जारी है. कांग्रेस आलाकमान ने यह फैसला सीटों को लेकर मची खींचतान को सुलझाने के लिए गठित एक उप समिति की मैराथन बैठक के बाद लिया है. ऐसे में कांग्रेस की पहली लिस्ट जारी होने में अब और अधिक समय लग सकता है. इससे पहले भी सीईसी की बैठक हुई थी, हालांकि, इस में उम्मीदवारों को लेकर कोई समाधान नहीं निकला. अब कांग्रेस नेतृत्व फिर से सीईसी की बैठक बुला रही है. हरियाणा कांग्रेस में बड़ी संख्या में सीटों पर खींचतान मची हुई है. सूत्रों के मुताबिक, राज्य की करीब 30 सीटों को लेकर कांग्रेस के भीतर खींचतान जारी है.

गुटबाजी रोकने के लिए कोई सीएम चेहरा नहीं

सोमवार को सीईसी की बैठक के बाद कांग्रेस नेता अजय सिंह यादव ने घोषणा की कि पार्टी आगामी हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार पेश नहीं करेगी. मुख्यमंत्री पद पर अंतिम निर्णय चुनावों के बाद हाईकमान द्वारा किया जाएगा. आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि भाजपा को हराना इंडी ब्लॉक के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर प्रस्ताव को गति मिली तो पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) संदीप पाठक कांग्रेस के साथ बातचीत करेंगे. संजय सिंह ने कहा, “अंतिम निर्णय अरविंद केजरीवाल लेंगे.” आप के हरियाणा प्रमुख सुशील गुप्ता ने अपनी निजी राय व्यक्त की कि पार्टी को चार से पांच सीटों पर संतुष्ट नहीं होना चाहिए, लेकिन अंतिम निर्णय दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल पर छोड़ दिया. रिपोर्ट्स से यह भी संकेत मिलता है कि आप के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा कांग्रेस नेतृत्व के साथ बैक-चैनल बातचीत में शामिल हैं.

हुड्डा और शैलजा के बीच सबकुछ ठीक नहीं!

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला सहित एक गुट कथित तौर पर हुड्डा की सत्ता को मजबूत करने से नाखुश है. किरण चौधरी (जो इस गुट का हिस्सा थीं) ने अपनी बेटी को लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिए जाने के बाद पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया. मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं करने के फैसले को गुटबाजी को रोकने और व्यापक मतदाताओं को आकर्षित करने के कदम के रूप में देखा जा रहा है. इस रणनीति का उद्देश्य जाट बनाम गैर-जाट मुकाबले से बचना है. हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस को जाट हितों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है. भाजपा ने पिछले चुनावों में जाट बनाम गैर-जाट की गतिशीलता का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है. कांग्रेस जाट, दलित और मुसलमानों के गठबंधन पर ध्यान केंद्रित कर रही है. दलित, जो आबादी का 20% हिस्सा हैं, महत्वपूर्ण हैं. दलित चेहरे के रूप में कुमारी शैलजा की भूमिका और सीएम उम्मीदवार की घोषणा न होने से दलित समुदाय के भीतर उम्मीद बनी हुई है.

सीएसडीएस के एक पोस्ट-पोल स्टडी के अनुसार, 2024 के लोकसभा चुनावों में 64% जाट और 68% दलितों ने इंडिया ब्लॉक को वोट दिया. कांग्रेस को उम्मीद है कि यह फैसला दलित वोटों के बहुमत को बनाए रखने में मदद करेगा.

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कांग्रेस-आप गठबंधन से किसका फायदा?

कांग्रेस-आप गठबंधन ने आम चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया. पांच सीटें जीतीं और 48% वोट शेयर हासिल किया. हालांकि आप ने कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ा और हार गई, लेकिन उसने चार विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की. आप के अकेले चुनाव लड़ने से विपक्षी वोट बंट सकते हैं और संभावित रूप से भाजपा को लाभ हो सकता है. कांग्रेस का लक्ष्य 2019 के परिदृश्य को दोहराने से बचना है. हरियाणा में बनिया समुदाय, जिसकी आबादी 4% है, अरोड़ा/पंजाबी/खत्री (7%) और सिख (5%) महत्वपूर्ण जनसांख्यिकी हैं. दिल्ली और पंजाब में इन समूहों के बीच आप का प्रभाव है और हरियाणा में भी उसे कुछ समर्थन मिलने की उम्मीद है.

माना जाता है कि आप का शहरी इलाकों में काफी प्रभाव है, खासकर दिल्ली और पंजाब की सीमा से लगे इलाकों में, जहां कांग्रेस की कमजोर सीटें हैं. इस रणनीति से कांग्रेस को अपनी स्थिति मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी.

AAP के साथ संभावित गठबंधन का विरोध

कांग्रेस नेता कैप्टन अजय सिंह यादव ने हरियाणा चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस-AAP गठबंधन की बातचीत के बारे में पूछे जाने पर कहा, “आम आदमी पार्टी का हरियाणा में कोई आधार नहीं है और मुझे लगता है कि हम उन्हें क्यों जगह दें? लेकिन अगर कोई मजबूरी है, तो यह हाईकमान पर निर्भर करता है कि वह अन्य राज्यों में भी उनके साथ समझौता करना चाहता है या नहीं. मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और सोनिया गांधी ही तय करेंगे कि हमें गठबंधन बनाने की जरूरत है या नहीं. जहां तक ​​मेरी निजी राय है, कांग्रेस को हरियाणा में गठबंधन की जरूरत नहीं है. कांग्रेस की लोकप्रियता अपने चरम पर है.

इससे पहले, रोहतक के सांसद और वरिष्ठ कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि प्रक्रिया चल रही है और पार्टी की प्रणाली एक समय में एक कदम आगे बढ़ती है. पार्टी अपने उम्मीदवारों की घोषणा कब करेगी, इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “हमें विश्वास है कि पार्टी नामों की समीक्षा करने के बाद सबसे मजबूत उम्मीदवारों को मैदान में उतारेगी.” दीपेंद्र हुड्डा ने कहा, “कांग्रेस का गठबंधन हरियाणा के लोगों के साथ है. उन्होंने हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनाने का मन बना लिया है. खट्टर और वरिष्ठ भाजपा नेतृत्व यह जानते हैं.”

कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “मुझे टिप्पणी करने की जरूरत नहीं है, पार्टी के भीतर एक प्रक्रिया है, पार्टी के अध्यक्ष स्क्रीनिंग कमेटी और विशेष समिति अपना काम कर रहे हैं. हमें जो भी कहना था, हमने उनसे कह दिया. इससे आगे बोलना पार्टी के अनुशासन के खिलाफ होगा.” हालांकि, कांग्रेस नेता कुछ भी कहे लेकिन उम्मीदवारों के नामों की घोषणा में देरी से सवाल तो उठता ही है कि आखिर पेंच कहां फंसा है.

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