योगी राज के मुक़ाबले नीतीश राज में ज़्यादा लोग खुश! हैप्पीनेस इंडेक्स में बिहार से पिछड़ा यूपी, हिमाचल और पंजाब बने अव्वल

भारत ने हैप्पीनेस रिपोर्ट 2025 में 118वां स्थान हासिल किया है, जो कि पिछले साल के मुकाबले 8 पायदान ऊपर है. सुनकर अच्छा लगता है, है ना? लेकिन अगर हम गहराई से देखें, तो यह सुधार शायद उतना खुश करने वाला नहीं है जितना लगता है. सच कहें तो भारत की स्थिति अब भी यूक्रेन और फिलिस्तीन जैसे युद्धग्रस्त देशों से भी पीछे है.
प्रतीकात्मक तस्वीर

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Happiness Index 2025: अगर आप ये सोच रहे हैं कि विकास और खुशहाली का ज़िम्मा सिर्फ बुलेट ट्रेन और स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट्स पर ही टिका है, तो आपको शायद इस बार हैप्पीनेस इंडेक्स के आंकड़े देख कर एक हलका झटका लग सकता है! जी हां, यूपी से लेकर बिहार तक और हिमाचल से लेकर पंजाब तक, हाल के आंकड़े बता रहे हैं कि पंजाब और बिहार में लोग ज्यादा खुश हैं, जबकि यूपी इस मामले में पीछे रह गया है.

यूपी के मुकाबले बिहार में ज्यादा लोग खुश

हैपीनेस इंडेक्स के मुताबिक, बिहार में यूपी से ज्यादा खुशियां बरस रही हैं, और ये सच भी हो सकता है. इस बार बिहार 33वें नंबर पर आया है. तो क्या बिहार में ‘सुशासन बाबू’ का जादू काम कर रहा है? ये वही बिहार है, जो कभी भ्रष्टाचार, ग़रीबी, और अपराध के लिए जाना जाता था. लेकिन अब यहां की जनता शायद महसूस करती है कि सरकार की योजनाओं ने उनके जीवन स्तर में कुछ बदलाव किए हैं.

वहीं, उत्तर प्रदेश की बात करें तो योगी सरकार ने भी नये क़ानून बनाए. योगी जी की कार्यशैली को लेकर कई बार तारीफ हुई है. लेकिन ‘खुशहाली’ के मामले में इस बार यूपी बिहार से पिछड़ा नजर आ रहा है. हैप्पीनेस इंडेक्स में यूपी का नंबर 35वां है.

हिमाचल पंजाब के लोग सबसे ज्यादा खुश

अब, बात करें हिमाचल प्रदेश और पंजाब की. इन राज्यों में खुशहाली का स्तर तो सबसे ऊपर है. लेकिन यह खुशियां शायद पहाड़ों और खेतों तक ही सीमित रही हैं. पंजाब में कृषि क्षेत्र का बड़ा योगदान है, और हिमाचल में पर्यटन के चलते आर्थिक हालात थोड़े बेहतर हैं. हालांकि, ये दोनों राज्य भी समस्याओं से घिरे हैं, जैसे बेरोज़गारी और मंहगाई, जो कहीं न कहीं खुशियों को प्रभावित करती हैं. फिर भी, इन राज्यों में लोगों की संतुष्टि और जीवन स्तर के मामले में एक अच्छा संतुलन देखने को मिला है. पंजाब में तो सालों से लगभग किसान आंदोलन ही कर रहे हैं, इसके बावजूद पंजाब के लोग खुश हैं. इस रैंकिंग में हिमाचल नंबर 1 पर है, वहीं पंजाब नंबर 3 पर है. वहीं अगर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की बात करें तो इस रैंकिंग में दोनों राज्य 34 और 26वें नंबर पर है. अब अगर देश से निकलकर दुनिया की बात करें तो भारत की रैंकिंग में सुधार हुआ है.

भारत की रैंकिंग में सुधार

भारत ने हैप्पीनेस रिपोर्ट 2025 में 118वां स्थान हासिल किया है, जो कि पिछले साल के मुकाबले 8 पायदान ऊपर है. सुनकर अच्छा लगता है, है ना? लेकिन अगर हम गहराई से देखें, तो यह सुधार शायद उतना खुश करने वाला नहीं है जितना लगता है. सच कहें तो भारत की स्थिति अब भी यूक्रेन और फिलिस्तीन जैसे युद्धग्रस्त देशों से भी पीछे है. हैरानी की बात है कि जो देश संघर्षों से घिरे हुए हैं, वहां के लोग भारतीयों से ज्यादा खुश महसूस कर रहे हैं. क्या यह संकेत नहीं है कि खुशहाली के लिए सिर्फ विकास और आर्थिक स्थिति ही जरूरी नहीं, बल्कि अन्य सामाजिक और मानसिक पहलू भी महत्वपूर्ण होते हैं?

पैसे से खुशियां नहीं खरीद सकते!

रिपोर्ट में खुशहाली का पैमाना तय करने के लिए जीवन की गुणवत्ता को देखा गया है—जैसे पैसा, स्वास्थ्य, और स्वतंत्रता. लेकिन क्या इन आंकड़ों से खुशहाली का पूरा चित्र उभरता है? अगर ऐसा होता, तो क्या फिनलैंड, जो लगातार आठवें साल सबसे खुशहाल देश बना है, उसमें कोई खास फर्क आता? खैर, ये एक दिलचस्प सवाल है! रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सामाजिक समर्थन और परिवार का आकार जैसे कारक भी खुशहाली में अहम भूमिका निभाते हैं. तो क्या हमारी आध्यात्मिक संतुष्टि, सामाजिक जुड़ाव, और दूसरों पर विश्वास हमें खुशहाल बनाने के ज्यादा महत्वपूर्ण कारण नहीं हो सकते?

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आखिरकार, ‘खुश’ रहने का राज क्या है?

खुशहाली का राज सिर्फ अच्छी सड़कें, सरकारी योजनाएं, या विकास नहीं होते—यह हर व्यक्ति के जीवन में उस बदलाव को महसूस करने पर निर्भर करता है जो उसकी ज़िंदगी को बेहतर बना सके. और शायद यही कारण है कि बिहार में, जो कभी ‘लालू-राज’ के लिए जाना जाता था, आज खुशियां पहले से ज्यादा दिख रही हैं.

तो क्या बिहार ने यूपी को खुशियों के मामले में मात दे दी? शायद हां, शायद नहीं, लेकिन यह तो तय है कि बिहार ने अपने विकास को उस स्तर पर पहुंचाया है, जहां लोग अब सच में महसूस कर रहे हैं कि कुछ बदला है.

खैर, अब देखते हैं कि अगले साल यूपी क्या कर दिखाता है. क्या वहां की मुस्कान फिर से वापस आएगी या फिर नीतीश जी की हंसी से और ज़्यादा पीछे छूट जाएगी.

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