26 साल बाद बंसीलाल के परिवार में नया सियासी ड्रामा, भाई से भाई की लड़ाई के बाद अब भाई से बहन की भिड़ंत

भिवानी जिले की तोशाम सीट, बंसीलाल के राजनीतिक साम्राज्य का एक अभिन्न हिस्सा रही है. 1967 से अब तक, इस सीट पर कुल 14 बार बंसीलाल या उनके परिवार के किसी सदस्य ने जीत दर्ज की है. बंसीलाल ने 7 बार यहां से चुनाव लड़ा और छह बार जीत हासिल की.
इस बार सियासी अखाड़ा बंसीलाल के परिवार में ही सज चुका है, और मैदान में हैं उनकी पोती श्रुति चौधरी और पोते अनिरुद्ध चौधरी.

इस बार सियासी अखाड़ा बंसीलाल के परिवार में ही सज चुका है, और मैदान में हैं उनकी पोती श्रुति चौधरी और पोते अनिरुद्ध चौधरी.

Shruti Choudhary vs Anirudh Choudhary: हरियाणा की राजनीति में ‘लाल’ परिवारों की छाप गहरी और लंबे समय तक असरदार रही है. ये तीनों प्रमुख ‘लाल’ नेता—बंसीलाल, देवीलाल, और भजनलाल ने अपने समय में हरियाणा की राजनीतिक दिशा और धार को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आज, इसी राजनीतिक विरासत की लड़ाई एक नए मोड़ पर आ गई है. इस बार सियासी अखाड़ा बंसीलाल के परिवार में ही सज चुका है, और मैदान में हैं उनकी पोती श्रुति चौधरी और पोते अनिरुद्ध चौधरी.

भिवानी की तोशाम सीट

भिवानी जिले की तोशाम सीट, बंसीलाल के राजनीतिक साम्राज्य का एक अभिन्न हिस्सा रही है. 1967 से अब तक, इस सीट पर कुल 14 बार बंसीलाल या उनके परिवार के किसी सदस्य ने जीत दर्ज की है. बंसीलाल ने 7 बार यहां से चुनाव लड़ा और छह बार जीत हासिल की. यह सीट बंसीलाल के लिए एक राजनीति की मक्का बन गई थी, जहां से उन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया. अब इसी सीट पर बंसीलाल की पोती और पोते के बीच मुकाबला हो रहा है, जो सियासी दृष्टि से बेहद दिलचस्प और रोमांचक है.

परिवार की अगली पीढ़ी की जंग

बंसीलाल के छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह की बेटी श्रुति चौधरी ने हाल ही में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामा है. उनकी मां, किरण चौधरी ने कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से चार बार जीत हासिल की थी और अब बीजेपी की राज्यसभा सांसद हैं. श्रुति के पास राजनीति का अनुभव है, लेकिन अब उन्हें बीजेपी के रंग में ढलना पड़ा है. 2009 में लोकसभा चुनाव जीतने वाली श्रुति को 2014 और 2019 में हार का सामना करना पड़ा था. 2024 के चुनाव में उन्हें कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया, जिससे वह बीजेपी की ओर रुख कर गईं.

बंसीलाल के बड़े बेटे रणबीर महेंद्र के बेटे अनिरुद्ध चौधरी, पहली बार विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं. अनिरुद्ध पेशेवर क्रिकेट प्रशासक भी रहे हैं. इनका जाट समुदाय में एक मजबूत आधार बताया जाता है. उनका पारिवारिक नाम और जाट समुदाय की पहचान उन्हें सियासी मुकाबले में एक बड़ा फायदा दे सकती है.

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26 साल पहले परिवार में ही सियासी नाटक

यह चुनाव बंसीलाल के दो बेटों (सुरेंद्र सिंह और रणबीर महेंद्र) के बीच 1998 की चुनावी जंग की यादों को ताजा करता है. उस समय, सुरेंद्र सिंह ने हरियाणा विकास पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी, जबकि रणबीर महेंद्र कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे. यह संघर्ष आज की सियासी लड़ाई में भी प्रतिध्वनित हो रहा है, जहां बंसीलाल के पोते और पोती एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं. अब, भिवानी की तोशाम सीट पर बंसीलाल का राजनीतिक वंशज आमने-सामने है. श्रुति चौधरी और अनिरुद्ध चौधरी के बीच का यह मुकाबला केवल परिवार की राजनीति का संघर्ष नहीं है, बल्कि हरियाणा की राजनीतिक परंपराओं, सामाजिक धरोहरों, और बदलते समीकरणों का भी प्रतीक है. यह चुनाव हरियाणा की राजनीति के पन्नों में एक नई कहानी जोड़ने वाला है, जो आने वाले वर्षों तक चर्चा में रहेगा.

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