मस्जिदों और मंदिरों के बीच ‘धर्मयुद्ध’, देश के धार्मिक विवादों का वो ‘राज’ जो आप नहीं जानते!
Religious Disputes: भारत में धार्मिक स्थल, हमेशा से ही एक संवेदनशील और विवादास्पद मुद्दा रहा है. खासतौर पर मस्जिदों और मंदिरों के बारे में ऐतिहासिक दावों और विवादों के कारण यह विषय अक्सर अदालतों में पहुंचता है और पूरे देश में राजनीतिक और सामाजिक चर्चाओं का कारण बनता है. इन विवादों की जड़ें इतिहास में गहरी हैं, और इनमें से कई विवाद वर्तमान में भी अदालतों में विचाराधीन हैं. आइये आज भारत में मौजूद विवादित मस्जिदों की सूची, और अदालतों में चल रहे मामलों के बारे में विस्तार से जानते हैं…
क्या कहता है कानून?
भारत में 1991 में ‘पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम’ (Places of Worship (Special Provisions) Act) पारित किया गया था, जिसे मुख्य रूप से धार्मिक स्थलों के विवादों को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया था. इस कानून का उद्देश्य यह था कि 15 अगस्त 1947 तक बने हुए सभी धार्मिक स्थलों की स्थिति को अपरिवर्तित रखा जाए. इसका मतलब है कि किसी भी धार्मिक स्थल, चाहे वह मंदिर हो, मस्जिद हो, या चर्च हो, उसकी स्थिति को बदला नहीं जा सकता. हालांकि, ये कानून किसी भी धार्मिक स्थल के चरित्र की जानकारी से नहीं रोकता है.
इसके बावजूद, भारत में कई ऐसे स्थल हैं, जिनके बारे में विभिन्न धार्मिक समूह दावा करते हैं कि वे उनके पूर्वजों के पूजा स्थल थे और इन स्थलों का मूल रूप में अस्तित्व अब बदला हुआ है. इन विवादों के बीच, अदालतों में दायर की गई याचिकाएं और विभिन्न संगठनों के दावे इन मामलों को और भी जटिल बना देते हैं.
संभल का विवाद?
संभल स्थित जामा मस्जिद को लेकर तनाव जारी है. यहां मुगल शासक बाबर के समय में बनी जामा मस्जिद पर इस बात को लेकर विवाद है कि यहां पहले ‘हरि हर मंदिर’ था, जहां पर मस्जिद का निर्माण कराया गया था. इसको लेकर हिंदू पक्ष की तरफ से एक वकील ने कोर्ट सर्वे की मांग के साथ स्थानीय कोर्ट में याचिका दायर की थी.
बाद में कोर्ट ने सर्वे का आदेश जारी किया था, जिसको लेकर इलाके में तनाव पैदा हो गया था. अब इस मामले में ASI ने जो सर्वे किया उस आधार पर विभिन्न संशोधनों और हस्तक्षेपों को लेकर हलफनामा पेश किया है. इसके मुताबिक, जामा मस्जिद को 1920 में संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था. ये मामला फिलहाल अदालत में है.
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अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर भी बवाल
विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर दरगाह को महादेव मंदिर घोषित करने को लेकर जमकर बवाल छिड़ा हुआ है. न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश में भी इस विवाद से पारा उबाल पर है. इस विवाद की शुरुआत हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की एक याचिका से हुई, जहां उन्होंने अजमेर दरगाह को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित करने की मांग की. इसको लेकर अजमेर की अदालत ने 27 नवंबर को इस याचिका के आधार पर दरगाह के सर्वेक्षण को मंजूरी दी. इसके बाद से इस मुद्दे को लेकर जमकर सियासत जारी है.
ताजमहल को लेकर दावे
ताजमहल को लेकर विवाद की शुरुआत इतिहासकार पीएन ओक की किताब ‘ट्रू स्टोरी आफ ताज’ से शुरू हुआ था. इस किताब में ताजमहल के शिव मंदिर होने से संबंधित कई दावे किए थे. कुछ इतिहासकारों का दावा है कि ताजमहल में मुख्य मकबरे व चमेली फर्श के नीचे 22 कमरे बने हैं, जिन्हें बंद कर दिया गया है.
इतिहासकारों का मानना है कि चमेली फर्श पर यमुना किनारे की तरफ बेसमेंट में नीचे जाने के लिए दो जगह सीढ़ियां बनी हुई हैं. इनके ऊपर लोहे का जाल लगाकर बंद कर दिया गया है. करीब 45 साल पहले तक सीढ़ियों से नीचे जाने का रास्ता खुला था. इन्हीं 22 कमरों को खोलने के लिए याचिका दायर की गई थी.
काशी विश्वनाथ के आसपास ज्ञानवापी मस्जिद विवाद
भारत में सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थल विवादों में से एक वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का है. यह मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित है, और हिंदू संगठनों का दावा है कि यह मस्जिद हिंदू मंदिर के ऊपर बनाई गई थी. इस मस्जिद का इतिहास बहुत पुराना है, और यह मस्जिद मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने बनवाई थी. हिंदू संगठनों ने अदालत में याचिकाएं दायर की हैं और दावा किया है कि यह मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई थी.
2019 में अदालत में दायर की गई याचिका में यह दावा किया गया कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर छिपी हुई हिंदू धार्मिक मूर्तियां और मंदिर के अवशेष मौजूद हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने भी इस स्थल की जांच के बाद रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें यह पाया गया कि ज्ञानवापी मस्जिद के आसपास हिंदू मंदिर के अवशेष हैं. इस रिपोर्ट ने विवाद को और भी बढ़ा दिया और मस्जिद को लेकर नए दावे सामने आए. यह मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है, और इसका राजनीतिक असर भी बहुत गहरा है.
मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद का विवाद
मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद भी एक महत्वपूर्ण विवादित स्थल है. यह मस्जिद 1670 में मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने बनवाई थी. इसे कृष्ण की जन्मभूमि पर बनाए गए एक हिंदू मंदिर को ध्वस्त करके बनाया गया था, ऐसा हिंदू संगठनों का आरोप है. हिंदू संगठनों का दावा है कि शाही ईदगाह मस्जिद उस स्थल पर बनी है, जहां पहले कृष्ण का मंदिर हुआ करता था.
यह विवाद कई बार अदालतों में दायर किया गया है, और मथुरा में इस मस्जिद के संबंध में करीब 12 याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं. इन याचिकाओं में दावा किया गया है कि यह मस्जिद भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर बनाई गई थी और इसलिए इसे हटाया जाना चाहिए. यह विवाद भी अभी अदालत में चल रहा है, और इस पर कई राजनीतिक और सामाजिक बयानों के कारण तनाव बढ़ा हुआ है.
बदायूं की शाही इमाम मस्जिद
बदायूं की शाही इमाम मस्जिद का विवाद भी महत्वपूर्ण है. यह मस्जिद लगभग 800 साल पुरानी है और इसे शम्शुद्दीन इल्तुतमिश ने 1223 में बनवाया था. हिंदू संगठन दावा करते हैं कि यह मस्जिद एक प्राचीन शिव मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई थी. इस मस्जिद पर अब अदालत में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें हिंदू संगठन इस स्थल के मालिकाना हक के लिए दावा कर रहे हैं.
यह मस्जिद न केवल धार्मिक विवाद का कारण है, बल्कि इसके ऐतिहासिक महत्व को लेकर भी मतभेद हैं. हिंदू संगठन इसे अवैध निर्माण मानते हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे एक धार्मिक स्थल मानता है.
कुतुब मीनार को लेकर विवाद
दिल्ली में स्थित कुतुब मीनार का विवाद भी काफी चर्चा में रहा है. कुतुब मीनार दिल्ली का सबसे बड़ा और पुराना स्मारक है. इसे 1192 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था. इतिहासकारों के अनुसार, कुतुब मीनार का निर्माण हिंदू और जैन मंदिरों के मलबे पर किया गया था. इन मंदिरों को ध्वस्त करके ही कुतुब मीनार की संरचना तैयार की गई थी.
कई हिंदू संगठनों ने अदालत में याचिका दायर की है और दावा किया है कि कुतुब मीनार को बनाने में प्रयुक्त सामग्री हिंदू मंदिरों के मलबे से ली गई थी, और इस स्थल का ऐतिहासिक महत्व हिंदू धर्म से जुड़ा हुआ है. हालांकि, दिल्ली की अदालत ने इससे संबंधित याचिका को खारिज कर दिया था. लेकिन इस स्थल पर विवाद अब भी जारी है, और कुतुब मीनार के ऐतिहासिक और धार्मिक संदर्भ को लेकर बहस लगातार जारी रहती है.
धार की भोजशाला और टीली वाली मस्जिद का विवाद
मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला और लखनऊ की टीली वाली मस्जिद भी विवादित स्थल हैं. भोजशाला को लेकर हिंदू संगठनों का दावा है कि यहां पर हिंदू देवी सरस्वती का मंदिर था, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे मस्जिद के रूप में मानता है. 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने यह व्यवस्था की थी कि हिंदू यहां मंगलवार को पूजा कर सकें और मुस्लिम शुक्रवार को नमाज अदा कर सकें.
लखनऊ की टीली वाली मस्जिद को लेकर भी विवाद हुआ है. इसे लक्ष्मण टीला कहा जाता है और हिंदू संगठनों का दावा है कि यह स्थल एक प्राचीन मंदिर के ऊपर बनाई गई थी. इस मस्जिद पर भी कई बार अदालतों में याचिकाएं दायर की गई हैं, लेकिन अभी तक इसका कोई स्थायी हल नहीं निकल पाया है.
विवादों का सामाजिक और राजनीतिक असर
भारत में धार्मिक स्थल विवाद केवल इतिहास और कानून से जुड़े हुए नहीं हैं, बल्कि इनका सामाजिक और राजनीतिक असर भी गहरा है. इन विवादों के कारण विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच तनाव बढ़ता है, और ये मुद्दे कभी-कभी साम्प्रदायिक हिंसा का कारण भी बन जाते हैं. अदालतों में इन मामलों की सुनवाई जारी रहती है, लेकिन इनका हल निकालना आसान नहीं है, क्योंकि इनमें धार्मिक भावनाएं, ऐतिहासिक दावे और कानूनी पहलू सभी जुड़े हुए होते हैं.
इसलिए, इन विवादों को हल करने के लिए एक तटस्थ और संवेदनशील दृष्टिकोण की आवश्यकता है. सभी पक्षों को एक साथ बैठकर चर्चा करनी चाहिए और एक ऐसा समाधान ढूंढना चाहिए, जो समाज के सभी वर्गों के लिए स्वीकार्य हो. जब तक हम इन विवादों को शांतिपूर्ण और समझदारी से सुलझाने का प्रयास नहीं करेंगे, तब तक ये समस्याएं बनी रहेंगी, और समाज में ध्रुवीकरण बढ़ता रहेगा.