भारत-अमेरिका की 34,500 करोड़ की डील से बढ़ेगी सेना की ताकत, सशस्त्र MQ-9B ड्रोन से कांपेगा दुश्मन
India-US Defense Deal: भारत और अमेरिका के बीच एक ऐतिहासिक डिफेंस डील मंगलवार को पूरी होने जा रही है. इस डील के तहत भारतीय सशस्त्र बलों के लिए MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन की खरीद होगी, जिसकी अनुमानित लागत 34,500 करोड़ रुपये है. यह सौदा सरकार-से-सरकार समझौते के तहत होगा और इसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना को 31 लंबी दूरी के सशस्त्र ड्रोन मिलेंगे. इन ड्रोन का इस्तेमाल भारतीय आर्मी, एयरफोर्स, और नेवी द्वारा किया जाएगा, जिससे भारत की रक्षा क्षमता में एक नया आयाम जुड़ेगा.
भारतीय नौसेना को दिए जाएंगे 15 ड्रोन
सूत्रों के मुताबिक, इस डील के तहत भारतीय नौसेना को 15 ड्रोन दिए जाएंगे, जबकि वायुसेना और थलसेना को 8-8 ड्रोन आवंटित किए जाएंगे. ये सभी ड्रोन सशस्त्र होंगे और लंबी दूरी तक निगरानी और आक्रमण की क्षमता से लैस होंगे. तैनाती के लिए इन ड्रोन को चार मुख्य स्थानों पर रखा जाएगा – चेन्नई के पास स्थित आईएनएस राजाली, गुजरात के पोरबंदर, उत्तर प्रदेश के सरसावा और गोरखपुर में.
दो अलग-अलग अनुबंधों पर होंगे हस्ताक्षर
इस डील के तहत आज दो प्रमुख अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए जाएंगे. पहला अनुबंध ड्रोन के अधिग्रहण से जुड़ा होगा, जबकि दूसरा अनुबंध ड्रोन के मेंटेनेंस, मरम्मत, और ओवरहाल की सुविधाओं के लिए होगा. इस सौदे को इस महीने की शुरुआत में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा स्वीकृति मिल चुकी थी, जिससे यह समझौता अंतिम चरण में पहुंच गया.
भारत की रणनीतिक योजना
भारतीय सेना ने ड्रोन की संख्या का निर्धारण व्यापक अध्ययन और रणनीतिक जरूरतों के आधार पर किया है. इस सौदे से भारतीय सशस्त्र बलों की निगरानी और हमलावर क्षमता में जबरदस्त वृद्धि होगी, जो खासकर देश की समुद्री सीमाओं की सुरक्षा और दुश्मन के ठिकानों पर हमले के मामलों में बेहद महत्वपूर्ण होगी.
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जनरल एटॉमिक्स की भागीदारी
MQ-9B ड्रोन के निर्माता, जनरल एटॉमिक्स भारत में ड्रोन के लिए एक वैश्विक मेंटेनेंस सेंटर स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. इसके अलावा, उन्होंने भारत फोर्ज के साथ साझेदारी की है, जिससे देश में UAV (Unmanned Aerial Vehicle) के कंपोनेंट्स का निर्माण किया जाएगा. इसके अतिरिक्त, जनरल एटॉमिक्स भारत के स्वदेशी मानव रहित लड़ाकू हवाई वाहन कार्यक्रम को भी परामर्श सहायता प्रदान करेगी. हालांकि, ड्रोन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के मुद्दे पर फिलहाल कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है, लेकिन भविष्य में इस दिशा में संभावनाएं बनी हुई हैं.
अमेरिकी प्रतिनिधियों की उपस्थिति
इस महत्वपूर्ण डिफेंस डील को अंतिम रूप देने के लिए अमेरिकी सैन्य और कॉर्पोरेट प्रतिनिधियों की एक टीम वर्तमान में भारत में है. इस हस्ताक्षर समारोह में भारतीय रक्षा मंत्रालय के कई वरिष्ठ अधिकारी, जैसे संयुक्त सचिव और नेवी सिस्टम के अधिग्रहण प्रबंधक, भाग लेंगे. इस सौदे पर कई सालों से चर्चा चल रही थी और हाल ही में रक्षा अधिग्रहण परिषद की बैठक में इसे मंजूरी मिल गई थी.
गौरतलब है कि अमेरिकी प्रस्ताव की समयसीमा 31 अक्टूबर तक थी, इसलिए इस सौदे को इस तारीख से पहले मंजूरी मिलना आवश्यक था. इस डील से भारत की रक्षा क्षमताओं को नई ऊंचाइयां मिलेंगी और भविष्य में अमेरिकी रक्षा उद्योग के साथ भारत के संबंधों में भी मजबूती आएगी.