जम्मू कश्मीर में 51 सीटों पर चुनाव लड़ेगी फारूक अब्दुल्ला की पार्टी, जानें कांग्रेस के ‘हाथ’ क्या लगा
Jammu Kashmir Election: कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के लिए सीट बंटवारे की घोषणा कर दी है. नेशनल कॉन्फ्रेंस 51 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, वहीं कांग्रेस 32 पर मुकाबला करने पर सहमत हुई है. 90 में से पांच सीटों पर फ्रेंडली फाइट होगी. 85 में से कांग्रेस 32 सीटों पर लड़ेगी. 51 सीटों पर नेशनल कॉन्फ्रेंस लड़ेगी. दो सीट सहयोगी के लिए छोड़ी गई. जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के अध्यक्ष तारिक कर्रा ने कहा कि एक सीट पर सीपीआई और एक सीट जेकेएनपीपी को दी गई है.
तीन चरणों में होगी वोटिंग
जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में वोटिंग होनी है. पहले चरण के लिए 18 सितंबर, दूसरे चरण के लिए 25 सितंबर और आखिरी चरण में 1 अक्टूबर को वोटिंग होनी है. 4 अक्टूबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे. पहले चणर में जम्मू-कश्मीर की 24, दूसरे चरण में 26 और आखिरी चरण में 40 सीटों पर वोटिंग होगी. अगस्त 2019 में धारा 370 को खत्म किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. केंद्र शासित प्रदेश के लोग अपनी सरकार चुनेंगे.
कांग्रेस और NC का गठबंधन
बता दें कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के लिए फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन किया है, जबकि महबूबा मुफ्ती की पीडीपी ने गठबंधन को अपना समर्थन देने की घोषणा की है. जम्मू में जनाधार रखने वाली बीजेपी इस क्षेत्र में अकेले चुनाव लड़ रही है. शनिवार को एक कांग्रेस नेता और एक पूर्व पुलिस अधिकारी अपने दर्जनों समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए. जम्मू-कश्मीर भाजपा अध्यक्ष रविंदर रैना ने पार्टी मुख्यालय में दो अलग-अलग समारोहों में नए लोगों का स्वागत किया. उन्होंने कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन को बीजेपी की बढ़ती लोकप्रियता का नतीजा बताया.
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नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस में बेचैनी: रविंदर रैना
पूर्व एसएसपी मोहन लाल का पार्टी में स्वागत करते हुए रविंदर रैना ने कहा कि पूर्व मंत्री चौधरी जुल्फिकार अली और पूर्व एमएलसी मुर्तजा खान जैसे प्रमुख लोगों के भाजपा में लगातार शामिल होने से कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस में बेचैनी है. उन्होंने कहा, “फारूक अब्दुल्ला और कांग्रेस नेतृत्व ने बार-बार कहा है कि वे अपने दम पर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, लेकिन उन्हें अचानक एक साथ आने के लिए क्या मजबूर होना पड़ा. वे भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता से डरे हुए हैं और हार का सामना कर रहे हैं.”