कभी हां कभी ना…अब दो सीटों से क्यों चुनाव लड़ रहे हैं उमर अब्दुल्ला, मन में किस बात का डर?
Jammu Kashmir Election: जम्मू-कश्मीर में चुनाव लड़ने के प्रति उमर के कभी हां, कभी ना वाले रवैये ने पहले ही केंद्र शासित प्रदेश में काफी हलचल मचा दी है. अब उन्होंने बडगाम और गांदरबल से चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है. उनके हालिया फैसले को राजनीतिक पंडितों ने ‘खतरा’ बताया है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख उमर अब्दुल्ला या तो बहुत अनिर्णायक हैं या फिर वे कोई चतुर राजनीतिक खेल खेल रहे हैं या फिर दोनों ही बातें हैं. लेकिन क्या उमर की रणनीति 18 सितंबर को केंद्र शासित प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मतदाताओं को प्रभावित कर पाएगा? यह तो समय ही बताएगा कि क्षेत्र के लोगों की मौजूदा भावना अब्दुल्ला या एनसी के लिए क्या है? इस परिदृश्य को बेहतर बनाने के लिए वह क्या कर सकते हैं?
रिपोर्टों के अनुसार, उमर ने गांदरबल से खुद को मैदान में उतारने का फैसला किया है. यह सीट पहले उनके पिता और दादा के पास थी, साथ ही उन्होंने बडगाम निर्वाचन क्षेत्र से भी चुनाव लड़ने का फैसला किया है. लेकिन समय और लोगों की भावना दोनों ही जम्मू-कश्मीर में बदल गए हैं और इस अनुभवी राजनेता के लिए यह सफर आसान नहीं होने वाला है.
गांदरबल में घर वापसी
हालांकि, उमर अब्दुल्ला उस क्षेत्र में लौट आए, जो लंबे समय से उनके परिवार का घर था. उन्होंने खुद 2008 से 2014 तक एनसी-कांग्रेस गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था. हालांकि, 2014 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने बीरवाह निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की और गांदरबल को छोड़ दिया, जिससे उनकी जगह इश्फाक जब्बार को सीट से चुनाव लड़ने का मौका मिला.
कश्मीर की राजनीति में गहरी दिलचस्पी रखने वालों को पता होगा कि गांदरबल अब्दुल्ला और उनके परिवार के लिए एक खास जगह रखता है. इस विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व पहले संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला करते थे, जो उमर के दादा थे. तत्कालीन नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला थे. हालांकि, यह उमर के लिए भाग्यशाली गढ़ नहीं रहा है. 2002 में निर्वाचन क्षेत्र से अपने पहले चुनाव में वह पीडीपी के उम्मीदवार से हार गए थे. हालांकि यह एक छोटा सा झटका था और उमर 2008 में इस क्षेत्र के लोगों की सेवा करने के लिए वापस आए थे.
हालांकि, यह 16 साल के लंबे अंतराल के बाद उमर की घर वापसी है. उनका कहना है कि यह एक बार फिर निर्वाचन क्षेत्र के लोगों की सेवा करने की उम्मीद है जो उन्हें गांदरबल वापस ले आई है. उमर ने एक भावनात्मक अपील भी की है कि मतदाता उन्हें दूसरा मौका दें. क्या मतदाता नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ जाएंगे?
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गांदरबल सीट पर 24 उम्मीदवार
विश्लेषकों का कहना है कि मध्य कश्मीर के इस क्षेत्र में उमर और उनकी डूबती पार्टी के लिए सबसे कठिन लड़ाई होने जा रही है. गांदरबल सीट के लिए 24 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया है, लेकिन उमर उनमें से कम से कम चार से सावधान रहेंगे. ऐसी अफवाह है कि उग्र मौलवी सरजन बरकती के गांदरबल और बीरवाह निर्वाचन क्षेत्र के लिए नामांकन पत्रों की जांच की जा रही है. हालांकि जैनपोरा सीट के लिए उनके कागजात खारिज कर दिए गए थे, लेकिन बरकती के परिवार को यकीन है कि गांदरबल के लिए उनका नामांकन हो जाएगा.
हालांकि, बरकती के मैदान में होने से उमर की संभावनाओं को आगामी चुनावों में ज्यादा नुकसान नहीं होगा, लेकिन उन्हें बशीर अहमद मीर (PDP) और इश्फाक जब्बार (जो उनकी जेएंडके यूनाइटेड मूवमेंट पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं) के रूप में कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है. मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए एक बड़ी समस्या रहे हैं क्योंकि नेता लगातार उनके उम्मीदवारों को चुनौती देते रहे हैं. पड़ोसी कंगन विधानसभा क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले मीर को नेशनल कॉन्फ्रेंस के गुज्जर नेता मियां अल्ताफ अहमद के लिए गंभीर समस्याएं खड़ी करने के लिए जाना जाता है.
बीरवाह की बजाय बडगाम क्यों?
पार्टी सूत्रों के अनुसार, उन्होंने बीरवाह की बजाय बडगाम को सावधानी से चुना है, क्योंकि लोकसभा चुनावों में उमर ने बडगाम से लगातार बढ़त बनाए रखी थी, जबकि बीरवाह से वे बुरी तरह पिछड़ गए थे. अब्दुल्ला के अपने पारिवारिक क्षेत्र गांदरबल के साथ बडगाम को चुनने के पीछे एक और संभावित कारण बताया जा रहा है. इस क्षेत्र का जनसांख्यिकीय मिश्रण उनके लिए क्षेत्र के शिया और सुन्नी दोनों मतदाताओं को आकर्षित करना आसान बना सकता है. बडगाम में सीट के लिए दावा करने के लिए एनसी इसी पर निर्भर है. इस बार जम्मू-कश्मीर किस तरफ मतदान करेगा, इसका अनुमान लगाना अभी हमारे लिए जल्दबाजी होगी, लेकिन उमर अब्दुल्ला कड़ी मेहनत कर रहे हैं. अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या वे समझदारी से लड़ रहे हैं? राजनीतिक मैदान में उतरने का फैसला उनके और पार्टी दोनों के लिए अच्छा है, साथ ही गांदरबल के अपने जाने-पहचाने क्षेत्र में लौटने का उनका फैसला भी अच्छा है. लेकिन रुझानों और हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव की हार को देखते हुए, बडगाम में संभावित राजनीतिक आत्महत्या हो सकती है.