ईद की नमाज को लेकर मेरठ पुलिस पर क्यों भड़क गए जयंत चौधरी? एक्स पोस्ट के जरिए साधा निशाना
जयंत चौधरी
Jayant Chaudhary On Eid Namaz: ईद की तैयारी के बीच मेरठ पुलिस का एक आदेश चर्चा का विषय बन गया है. यह आदेश ईद की नमाज को सड़कों पर अदा करने की इजाजत नहीं देता और इसके उल्लंघन पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी गई है. अब इस मामले ने एक नया राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है. केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक दल RLD के नेता जयंत चौधरी ने इस आदेश का विरोध किया है.
जयंत ने पोस्ट में क्या लिखा?
जयंत चौधरी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट शेयर किया है. उन्होंने मेरठ पुलिस के आदेश की तुलना जॉर्ज ऑरवेल के उपन्यास 1984 से की. अपने पोस्ट में जयंत ने लिखा, “Policing Towards Orwellian 1984!” इस उपन्यास के मुताबिक, एक तानाशाही व्यवस्था जिसमें नागरिकों की हर गतिविधि पर निगरानी रखी जाती है और उनके बुनियादी अधिकारों को दबाया जाता है.
मेरठ पुलिस का आदेश
मेरठ पुलिस ने यह निर्णय लिया है कि ईद की नमाज सिर्फ तय स्थानों जैसे मस्जिदों और फैज ए आम इंटर कॉलेज में अदा की जाएगी. इसके साथ ही, ईदगाह के आसपास की सड़कों पर नमाज पढ़ने की अनुमति नहीं होगी. सिटी एसपी आयुष विक्रम सिंह का कहना कि यह निर्णय सुरक्षा कारणों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है. पुलिस ने यह चेतावनी भी दी कि आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी, जिसमें उनके पासपोर्ट तक रद्द किए जा सकते हैं.
जयंत चौधरी की ऑरवेलियन आलोचना
जयंत चौधरी ने इस आदेश पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया में जॉर्ज ऑरवेल के उपन्यास का उल्लेख किया. इसमें भयानक तानाशाही सरकार का वर्णन किया गया है. चौधरी का कहना था कि यह आदेश एक तरह से नागरिक स्वतंत्रताओं का हनन करता है, और यह एक ऐसी सरकार की ओर इशारा करता है जो अपनी जनता पर पूरी तरह से नियंत्रण रखना चाहती है.
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सुरक्षा के नाम पर सख्ती!
सुरक्षा के लिहाज से मेरठ पुलिस ने पीएसी, आरएफ और अर्धसैनिक बलों की तैनाती की घोषणा की है. इसके अलावा, ड्रोन के माध्यम से भी निगरानी रखी जाएगी, ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी को पहले से रोका जा सके. पुलिस ने यह भी कहा कि अगर कोई व्यक्ति शांति को भंग करने की कोशिश करेगा, तो उसके खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे, जिसमें उसका पासपोर्ट रद्द करना भी शामिल होगा.
जयंत चौधरी का बयान और मेरठ पुलिस का यह कदम दोनों ही लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल उठाते हैं. क्या यह कदम सुरक्षा के नाम पर आवश्यक था, या यह एक ऐसी ताकतवर सरकार की ओर इशारा करता है जो अपनी जनता को कड़ी निगरानी में रखना चाहती है? इन सवालों का जवाब अब समय और इस फैसले पर आने वाले प्रभावों से ही मिलेगा. यह कहानी न केवल मेरठ, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश और देशभर में एक गहरी बहस को जन्म दे सकती है.