चंपई की जगह रामदास, कोल्हान में डैमेज कंट्रोल की कोशिश…क्या अब बेहतर विकल्प की तलाश में हैं हेमंत सोरेन?

झारखंड मुक्ति मोर्चा चंपई सोरेन के जाने से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए रामदास सोरेन को वहां से चेहरा बनाकर प्रयास कर रही है. रामदास सोरेन के माध्यम से हेमंत सोरेन आदिवासियों को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि केवल झामुमो ही उनका सम्मान कर सकती है और उनके कल्याण के लिए काम कर सकती है. पार्टी की रणनीति क्षेत्र में चंपई की तरह रामदास का कद बढ़ाने की है.
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चंपई और हेमंत सोरेन

Jharkhand Politics: कोल्हान टाइगर के नाम से मशहूर चंपई सोरेन के झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) से सभी संबंध तोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद सरायकेला विधानसभा कोल्हान की सबसे हॉट सीट बन गई है. पूर्व मुख्यमंत्री चंपई और मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बीच टकराव की स्थिति बन रही है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि झारखंड कैबिनेट में शामिल होने के बावजूद चंपई लगातार पार्टी और सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे. लेकिन उन्हें न तो कारण बताओ नोटिस दिया गया और न ही बाहर का रास्ता दिखाया गया. यह हेमंत की बड़ी रणनीति का हिस्सा था. हेमंत को यह पता था कि चंपई खुद को पीड़ित साबित करने की कोशिश में हैं. लेकिन झामुमो और हेमंत ने चंपई को यह मौका नहीं दिया.

क्या है हेमंत सोरेन की रणनीति?

चंपई सोरेन के इस्तीफा देने के बाद हेमंत ने रामदास सोरेन को अपनी सरकार में मंत्री बनाया है. रामदास भी संथाल आदिवासी समुदाय से आते हैं, जिससे चंपई भी आते हैं. चंपई सोरेन के भाजपा में शामिल होने के बाद झामुमो को कोल्हान में आदिवासी समुदाय के बीच एक बड़े नेता की तलाश थी और रामदास के रूप में हेमंत को उम्मीद है कि चंपई की जगह कोई और नेता मिल जाएगा. हेमंत ने रामदास को इसलिए चुना, क्योंकि उनकी छवि संघर्षशील आदिवासी नेता की रही है, साथ ही आदिवासी वोट बैंक पर उनकी अच्छी पकड़ भी है. चंपई के जाने के बाद रामदास सोरेन को पार्टी में शामिल करना हेमंत सोरेन की कोल्हान में डैमेज कंट्रोल की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. रामदास घाटशिला से विधायक हैं जो कोल्हान प्रमंडल के पूर्वी सिंहभूम इलाके में आता है.

विधानसभा चुनाव के लिहाज से अहम हैं कोल्हान की सीटें

गौरतलब है कि कोल्हान प्रमंडल में 14 सीटें ऐसी हैं जो आगामी विधानसभा चुनाव के लिहाज से अहम हैं, जहां चंपई के जाने के बाद हेमंत सोरेन के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. लेकिन अब झामुमो वहां से रामदास सोरेन को चेहरा बनाकर चंपई के जाने का डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश कर रही है. रामदास सोरेन के जरिए हेमंत सोरेन आदिवासियों को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि सिर्फ झामुमो ही उनका सम्मान कर सकती है और उनके कल्याण के लिए काम कर सकती है. पार्टी की रणनीति क्षेत्र में चंपई की तरह रामदास का कद भी ऊंचा करने की है.

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भाजपा और चंपई के लिए इसका क्या मतलब है?

चंपई सोरेन को सरायकेला सीट से छह बार विधानसभा जाने का मौका मिला है. भाजपा नेताओं का मानना ​​है कि चंपई के आने से उन्हें काफी फायदा होगा और पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव जीतेगी. चंपई कोल्हान क्षेत्र से आते हैं, जिसमें 14 विधानसभा सीटें शामिल हैं, जिनमें चंपई का निर्वाचन क्षेत्र सरायकेला भी है. 2019 के चुनाव में भाजपा कोल्हान बेल्ट में अपना खाता खोलने में विफल रही थी. इस क्षेत्र में जेएमएम ने 11 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस ने 2 सीटें जीती थीं. वहीं एक सीट पर निर्दलीय ने जीत दर्ज की थी. चंपई झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर सरायकेला से जीते थे. चंपई सोरेन ने भाजपा के गणेश महली को 15 हजार 667 वोटों से हराया था.

JMM में मंथन का दौर शुरू

अब चंपई के चले जाने के बाद सीएम हेमंत सोरेन इस सीट पर मंथन कर रहे हैं और सूत्रों के मुताबिक वह एक मजबूत उम्मीदवार उतारने जा रहे हैं जो चंपई सोरेन को कड़ी टक्कर दे सके. सूत्रों की मानें तो जिस तरह से भाजपा ने सरायकेला विधानसभा से पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए चंपई को भाजपा में शामिल कराया है, उसी तरह झामुमो भी मजबूत उम्मीदवार की तलाश कर सरायकेला विधानसभा सीट अपनी झोली में रखना चाहता है.

चंपई अकेले ऐसे नेता नहीं हैं जिन पर भाजपा की नजर है. झारखंड मुक्ति मोर्चा के और भी बड़े नेता जल्द ही भाजपा में शामिल हो सकते हैं. फिलहाल तो हेमंत यह मान कर चल रहे हैं कि चंपई का झामुमो से कोई लेना-देना नहीं है. उन्हें यह भी लगता है कि जेल से बाहर आने के बाद लोगों की सारी सहानुभूति उनके पास है और ऐसे में चंपई का बाहर आना उन्हें मिल रही सहानुभूति में कोई बड़ी बाधा नहीं बनेगा. हालांकि राजनीति में कुछ भी संयोग पर नहीं छोड़ा जा सकता और इसलिए चंपई सोरेन को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि वे जमीन से जुड़े नेता हैं और उनकी छवि पूरी तरह बेदाग रही है.

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