महिलाओं को ममता से उम्मीद, क्या ‘दीदी के बोलो’ से भी CM तक नहीं पहुंच रही आवाज़?

महिलाओं को अपनी सारी समस्याएं सीएम तक पहुंचाने में मदद करने के उद्देश्य से 'दीदी के बोलो' नामक पोर्टल शुरू किया गया था. हालांकि, दुख की बात है कि महिलाओं की आवाज दीदी तक नहीं पहुंच पा रही है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी

Kolkata Doctor Murder Case: कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में एक जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की भयावह घटना ने पूरे देश के डॉक्टरों को नाराज कर दिया है. मामला सीबीआई के हाथ में है. वहीं पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी अपने राज्य में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रहने के लिए लगातार विपक्षी पार्टियों के निशाने पर हैं. बीजेपी नेता इस मुद्दे पर ममता बनर्जी के इस्तीफे की मांग भी कर रहे हैं और उन पर स्थिति को संभालने में विफल रहने का आरोप लगा रहे हैं. वे ममता पर महिला मुख्यमंत्री होने के बावजूद अपने राज्य में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की कई अन्य घटनाओं पर नरम रुख अपनाने का भी आरोप लगा रहे हैं.

‘दीदी को बोलो’ से भी नहीं सुन रही हैं ममता!

पिछले कुछ सालों से पश्चिम बंगाल को छोड़कर देश के किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की मुखिया कोई महिला नहीं रही है. पश्चिम बंगाल के लोगों, खासकर महिलाओं को ममता बनर्जी के सीएम बनने से बहुत उम्मीदें थीं, क्योंकि वह यह सुनिश्चित करने के लिए भी जानी जाती हैं कि उनके मतदाता, खासकर महिलाएं, अपनी नाराजगी सीधे उनसे कहें. महिलाओं को अपनी सारी समस्याएं सीएम तक पहुंचाने में मदद करने के उद्देश्य से ‘दीदी के बोलो’ नामक पोर्टल शुरू किया गया था. हालांकि, दुख की बात है कि महिलाओं की आवाज दीदी तक नहीं पहुंच पा रही है. राजनीति को समझने वाले लोगों की मानें तो पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों की संख्या से पता चलता है कि एक महिला होने के नाते मुख्यमंत्री ममता महिलाओं की उम्मीदों पर खरा उतरने में विफल रही हैं.

पश्चिम बंगाल में बलात्कार के मामलों का लगातार राजनीतिकरण हुआ है. राज्य में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कई मामले सामने आए हैं. कहीं न कहीं सीएम ममता बनर्जी इन मामलों में उचित कार्रवाई करने में विफल रही और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में लगी रही.

ममता से राज्य की महिलाओं को उम्मीद

अगर स्थिति की गंभीरता को देखा जाए तो एकमात्र महिला मुख्यमंत्री होने के नाते सीएम ममता को अपने राज्य की महिलाओं की सुरक्षा के मामले में आगे आकर उनके लिए एक उदाहरण स्थापित करने की आवश्यकता है. ऐसी भयावह घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए ‘दीदी’ को इस अपराध में शामिल अपराधियों को कड़ी सजा सुनिश्चित करनी चाहिए और पुलिस में सुधार लाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भविष्य में ऐसी चूक न हो.

सीएम ममता को यह भी याद रखना चाहिए कि वह 2021 में महिला मतदाताओं के समर्थन से सत्ता में आई थीं. दीदी ने महिला मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए उनके लिए शिक्षा, सशक्तिकरण आर्थिक पुनर्वास आदि में 250 से अधिक कल्याणकारी योजनाएं भी शुरू कीं. वह यह सुनिश्चित करने के लिए ‘सहेली सभा’ आयोजित करने के लिए भी जानी जाती हैं कि उनके राज्य की सभी महिलाओं को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिले. यहां तक ​​कि उनकी पार्टी, टीएमसी के पास भी स्थानीय निकायों में बड़ी संख्या में महिला प्रतिनिधि हैं.

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राजनीतिक बयानबाजी और दोषारोपण के खेल में फंसी ममता!

राजनीतिक पंडितों के मुताबिक, अब तक उनकी सरकार महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रही है और बलात्कार, हत्या और महिलाओं के खिलाफ अपराध के कई मामलों में आरोपियों को दंडित करने के बजाय, वह राजनीतिक बयानबाजी और दोषारोपण के खेल में लगी रही हैं. अपराध की घटनाओं पर उनकी प्रतिक्रिया हमेशा दोष को टालने और अपनी सरकार की विफलताओं, खासकर पुलिस की निष्क्रियता को कमतर आंकने की रही है. चाहे जो भी कहा और किया जाए. उनकी छोटी-मोटी बातें और लगभग हर मौके पर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर दोष मढ़ना उन्हें सीएम के रूप में जिम्मेदारी से मुक्त नहीं कर सकता. अब समय आ गया है कि वह अपने प्रशासन की कमियों को स्वीकार करें और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कदम उठाएं.

 

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