“सीट नहीं, हक की लड़ाई…”, कांग्रेस के ‘आठवीं पंक्ति’ के खेल से इंडी गठबंधन में बगावत की सुगबुगाहट!

अखिलेश यादव और अन्य नेताओं के लिए सीट आवंटन में यह बदलाव एक कड़ा संदेश देता है कि कांग्रेस अपनी सत्ता की भूख में अपने सहयोगियों को नजरअंदाज कर सकती है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस की इस "महारानी" मानसिकता के चलते अन्य दलों के बीच गठबंधन की गांठ ढीली तो नहीं हो जाएगी.
Opposition Seat Dissatisfaction

लोकसभा की तस्वीर

Opposition Seat Dissatisfaction: संसद के शीतकालीन सत्र में लोकसभा के प्रश्नकाल के दौरान सीट आवंटन को लेकर जो हंगामा हुआ, उसे देखकर ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं संसद के गलियारों में भी ‘सीट’ को लेकर बड़े स्तर पर राजनीतिक ‘बैक-स्टेज ड्रामा’ चल रहा है. सबसे पहले तेलुगू देशम पार्टी (TDP) के वरिष्ठ सांसद मगुंटा श्रीनिवासुलु रेड्डी ने अपनी सीट को लेकर नाराजगी जताई. पांच बार सांसद बनने के बावजूद उन्हें आठवीं पंक्ति में सीट मिली, जबकि पिछले सत्र में उन्हें दूसरी पंक्ति में सम्मानित स्थान मिला था.

जहां ज्यादा फोकस करते हैं कैमरे, वहीं चाहिए सीट

अब सवाल ये उठता है कि एक सांसद के लिए सीट का चुनाव क्यों इतना महत्वपूर्ण होता है? दरअसल, सांसदों के लिए सीट सिर्फ एक स्थान नहीं होती, बल्कि यह उनकी राजनीतिक स्थिति, उनके प्रभाव और उनके निर्वाचन क्षेत्र में उनकी ‘इमेज’ का प्रतीक होती है. इसके अलावा, कैमरे अक्सर जहां ज्यादा फोकस करते हैं, वही क्षेत्र सांसदों के लिए ज्यादा मायने रखता है, क्योंकि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में इस दिखावे के जरिए अपनी स्थिति को मजबूत करते हैं.

स्पीकर ओम बिड़ला ने इस मामले में श्रीनिवासुलु से कहा कि वे अपनी शिकायतें बाद के लिए टाल दें. यानी, संसद के अंदर ये मुद्दे समय रहते सुलझाने की बजाय सार्वजनिक रूप से नहीं उठाए जा सकते. बिड़ला ने कहा कि इस परंपरा का पालन किया जाना चाहिए, लेकिन सांसदों की नाराजगी को लेकर यह सवाल खड़ा होता है कि क्या इस “परंपरा” में उनकी चिंता और प्रतिष्ठा की कोई जगह है?

आखिरकार, यह न केवल TDP के वरिष्ठ सांसदों की नाराजगी थी, बल्कि कांग्रेस के भीतर भी सीट आवंटन को लेकर गुस्सा था. इस मुद्दे ने कांग्रेस के भीतर एक नई खींचतान पैदा कर दी, जो पहले से ही इंडीया गठबंधन के भीतर उभर रही समस्याओं को और बढ़ावा दे रही है.

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कांग्रेस के भीतर भी खींचतान

कांग्रेस के अंदर कई नेता इस नई व्यवस्था से खुश नहीं थे. उदाहरण के लिए, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर को तीसरी पंक्ति में और मनीष तिवारी को चौथी पंक्ति में सीट दी गई है. यह बदलाव कांग्रेस के उन नेताओं के लिए हैरान कर देने वाला था, जिनका पार्टी के भीतर लंबा अनुभव और बड़ा प्रभाव है.

इतना ही नहीं, सीट आवंटन में कांग्रेस के सहयोगी दलों की स्थिति भी गंभीर सवालों के घेरे में है. उदाहरण के तौर पर, समाजवादी पार्टी (SP) के नेता अखिलेश यादव और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सुदीप बंद्योपाध्याय की सीटें भी बदल दी गईं, जो पहले कांग्रेस के साथ सहयोगी पंक्तियों में बैठते थे. अब अखिलेश यादव को छठे ब्लॉक में सीट दी गई, जहां कांग्रेस के नेता उनसे दूर बैठते हैं. ऐसे में विपक्षी दलों के बीच यह नाराजगी एक संभावित राजनीतिक बवंडर की ओर इशारा करती है.

कांग्रेस के भीतर कुछ नेताओं का कहना है कि पार्टी ने अपनी सहयोगी पार्टियों के लिए केवल कुछ सीटें छोड़ दी हैं और बाकी सीटें अपने पास रखी हैं, जिससे गठबंधन में असंतोष फैलने की संभावना बन गई है. एक सहयोगी पार्टी के नेता ने यह भी टिप्पणी की, “कांग्रेस चाहती है कि सभी छोटी पार्टियां उनके साथ मिलकर काम करें, लेकिन सत्ता का बंटवारा नहीं करना चाहती.”

कांग्रेस की राय से बांटी गई सीटें!

बात करें स्पीकर के कार्यालय की, तो वहां से यह जानकारी मिली कि सीट आवंटन में कांग्रेस की राय को अहम माना गया था. यह कहना कोई बड़ी बात नहीं है कि जब सीट आवंटन की जिम्मेदारी कांग्रेस के हाथों में हो, तो पार्टी की सोच और प्रभाव को ध्यान में रखते हुए ही निर्णय लिया जाएगा.

कांग्रेस के कुछ नेताओं का यह भी कहना था कि नई सीट व्यवस्था से उनके प्रदर्शन पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा, लेकिन यह तर्क ज्यादा प्रभावी नहीं दिखता, क्योंकि जो सांसद लंबे समय से संसद का हिस्सा रहे हैं, उनके लिए यह बदलाव बिना किसी कारण के सम्मान में कटौती जैसा प्रतीत हो रहा है.

यही नहीं, कुछ सांसदों ने यह भी कहा कि संसद में आपकी सीट केवल एक जगह नहीं होती, बल्कि यह आपके अनुभव, प्रतिष्ठा और इज्जत का प्रतीक होती है. इसलिए जब इन पहलुओं को नजरअंदाज किया जाता है, तो इसका असर सिर्फ आपकी राजनीति पर नहीं, बल्कि आपके व्यक्तिगत आत्म-सम्मान पर भी पड़ता है.

कांग्रेस की ‘महारानी’ मानसिकता पर उठे सवाल

टीडीपी और अन्य पार्टी नेताओं ने भी यह स्पष्ट किया है कि वे केंद्रीय संसदीय मामलों के मंत्रालय और स्पीकर से अपनी सीटों में बदलाव की मांग कर रहे हैं. टीडीपी के सांसदों ने खासकर वाईएसआर कांग्रेस के साथ बैठने के बारे में अपनी असहमति जताई है. अखिलेश यादव और अन्य नेताओं के लिए सीट आवंटन में यह बदलाव एक कड़ा संदेश देता है कि कांग्रेस अपनी सत्ता की भूख में अपने सहयोगियों को नजरअंदाज कर सकती है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस की इस “महारानी” मानसिकता के चलते अन्य दलों के बीच गठबंधन की गांठ ढीली तो नहीं हो जाएगी. अब देखना यह है कि यह सीटों का झगड़ा क्या कोई ठोस समाधान पाता है, या फिर यह संसद के अंदर और बाहर की राजनीति के लिए सिर्फ एक और पॉलिटिकल ड्रामा बनकर रह जाएगा!

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