सोनिया ने कर दिया था इनकार, लाइन में थे ये 5 बड़े नेता…फिर भी कैसे PM की रेस जीत गए मनमोहन
मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी
Manmohan Singh: साल 2004 में जब अटल बिहारी वाजपेई की सरकार को हार का सामना करना पड़ा और यूपीए की सरकार बनी. तो ये तय माना जा रहा था कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगी. लेकिन जैसे ही चुनाव परिणाम सामने आए, सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया, और इसके बाद भारतीय राजनीति का एक नया अध्याय शुरू हुआ. यह कहानी उन पांच नेताओं की है, जो प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में थे, लेकिन अंत में यह जिम्मेदारी मनमोहन सिंह को सौंपी गई.
2004 का राजनीतिक घटनाक्रम
18 मई 2004 को जब यूपीए की सरकार बनने की संभावना जताई जा रही थी, तो कांग्रेस के भीतर और बाहर यह चर्चा जोरों पर थी कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा. सोनिया गांधी के पीएम पद से इनकार करने के बाद, राजनीति की दुनिया में हलचल मच गई. यूपीए में शामिल गठबंधन दलों के नेताओं को यह खबर मिली कि अब प्रधानमंत्री बनने का अवसर किसी और को मिलेगा, लेकिन कौन?
रामविलास पासवान ने अपनी बायोग्राफी संघर्ष, साहस और संकल्प में लिखा है कि जब उन्होंने सोनिया गांधी के सलाहकार अहमद पटेल से इस बारे में पुष्टि करने की कोशिश की, तो उन्हें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला. इस पर, मीडिया में खबर फैलने में देर नहीं लगी और जल्द ही कांग्रेस की ओर से मनमोहन सिंह के नाम की घोषणा कर दी गई.
मनमोहन सिंह उस समय राज्यसभा में कांग्रेस के नेता थे और राजनीतिक पृष्ठभूमि से दूर थे. राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भी अंत तक यह अनुमान जताया था कि मनमोहन सिंह ही प्रधानमंत्री होंगे, और उनकी नियुक्ति की आधिकारिक सूचना राष्ट्रपति भवन को आखिरी समय में मिली.
पांच नेता जो प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में थे
सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने से इनकार के बाद, कांग्रेस और उसके गठबंधन सहयोगी दलों में कई बड़े नेताओं का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए लिया जा रहा था. ये पांच नेता प्रमुख दावेदार थे…
प्रणब मुखर्जी
कांग्रेस के सबसे सीनियर नेता और इंदिरा गांधी के जमाने से राजनीति में सक्रिय प्रणब मुखर्जी को इस पद के लिए उपयुक्त माना जा रहा था. उन्होंने कई मंत्रालयों का नेतृत्व किया था और पार्टी के भीतर उनका काफी प्रभाव था. हालांकि, उन्हें पीएम नहीं बनाया गया, और बाद में उन्होंने कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार संभाला.
अर्जुन सिंह
गांधी परिवार के करीबी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह का नाम भी प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में था. उनके नेतृत्व को कई सहयोगी पार्टियों ने स्वीकार किया था, लेकिन उन्हें भी यह अवसर नहीं मिला.
एनडी तिवारी
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी का नाम भी प्रधानमंत्री पद के लिए लिया जा रहा था. हालांकि, उन्हें यह पद हासिल नहीं हुआ और मनमोहन सिंह को मौका मिला.
शिवराज पाटिल
महाराष्ट्र के कद्दावर नेता और मुंबई में मजबूत पकड़ रखने वाले शिवराज पाटिल का नाम भी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में था. वे बाद में मनमोहन सिंह की सरकार में गृह मंत्री बने.
पी चिदंबरम
एक और सशक्त नेता अर्थशास्त्री पी चिदंबरम का नाम भी प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में था. कांग्रेस ने यह विचार किया था कि दक्षिण भारत के वोट को ध्यान में रखते हुए चिदंबरम को यह जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है.
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मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री क्यों बनाया गया?
मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के पीछे तीन प्रमुख कारण थे, जिनकी वजह से उन्होंने बाकि नेताओं को पछाड़ते हुए यह प्रतिष्ठित पद हासिल किया.
गुटों से परे होना
कांग्रेस में उस समय कई गुट थे, जो अपने-अपने नेताओं को प्रधानमंत्री बनाने की कोशिश कर रहे थे. मनमोहन सिंह किसी गुट से जुड़कर राजनीति नहीं करते थे, और यही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी. वे एक निष्कलंक, तटस्थ और पॉलिटिकल फ्री शख्सियत के रूप में सामने आए, जो पार्टी के विभिन्न गुटों को संतुष्ट करने में सक्षम था.
राजनीतिक व्यक्ति न होना
मनमोहन सिंह एक कद्दावर राजनीतिज्ञ नहीं थे, बल्कि वे एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री और पूर्व वित्त मंत्री थे. कांग्रेस के भीतर यह महसूस किया गया कि यदि किसी राजनीतिक व्यक्ति को पीएम पद पर बैठाया जाता, तो यह राहुल गांधी के लिए भविष्य को मुश्किल बना सकता था. मनमोहन सिंह का चयन राहुल गांधी के लिए सहायक साबित हुआ, क्योंकि वे एक मजबूत राजनीतिक पृष्ठभूमि से न जुड़े हुए थे और उनकी नियुक्ति से कोई राजनीतिक संघर्ष नहीं हुआ.
कुशल प्रशासनिक क्षमता
मनमोहन सिंह को भारत को आर्थिक मंदी से उबारने का श्रेय जाता है. वित्त मंत्री रहते हुए उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी थी. उनके नेतृत्व में भारत ने 1991 के आर्थिक संकट से उबरने में सफलता पाई थी, और यह उनके पक्ष में एक बड़ा कारक साबित हुआ. 2004 में कांग्रेस ने रोजगार और आर्थिक विकास के मुद्दों पर वादे किए थे, और इसके लिए मनमोहन सिंह से बेहतर कोई और नेता नहीं था.
मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री बनना भारतीय राजनीति का एक ऐतिहासिक क्षण था. 2004 में कांग्रेस ने यह साबित कर दिया कि एक सक्षम और दूरदर्शी नेता, जो राजनीतिक गुटबाजी से परे हो, राष्ट्र की बेहतरी के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प हो सकता है. उन्होंने न केवल भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की, बल्कि वैश्विक मंच पर भी भारत का मान बढ़ाया. उनकी शांति प्रिय और विचारशील नेतृत्व शैली ने उन्हें भारतीय राजनीति में एक स्थायी स्थान दिलाया.