“अगर UCC लागू हो जाए, तो न सिर्फ महिलाओं को…”, कर्नाटक हाई कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?

जज ने कहा, "मुस्लिम कानून में भाई-बहन के बीच हिस्से का ये फर्क है, लेकिन हिंदू कानून में ऐसा नहीं. हर किसी को बराबर हक मिलता है. यही वजह है कि अब UCC की जरूरत है."
Karnataka High Court

कर्नाटक हाई कोर्ट

Karnataka High Court On UCC: कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक संपत्ति के झगड़े को सुलझाते हुए बड़ा बयान दिया है. हाई कोर्ट ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि भारत में समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू किया जाए, ताकि हर महिला को-चाहे वो किसी भी धर्म या जाति की हो-समान हक मिल सके. ये बात कोर्ट ने एक मुस्लिम महिला की संपत्ति के बंटवारे के मामले में कही, जहां उसकी बहन को भाइयों से कम हिस्सा मिला.

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, शहनाज़ बेगम नाम की एक महिला की मौत के बाद उनकी संपत्ति को लेकर भाई-बहन और पति के बीच खींचतानी शुरू हुई. महिला के पति का कहना था, “ये संपत्ति मैंने कमाई थी, भाई-बहनों का इसमें कोई हक नहीं.” वहीं भाई-बहनों ने दावा ठोका कि संपत्ति उनकी बहन की है. कोर्ट में बहस छिड़ी, कागज-पत्तर खंगाले गए और आखिरकार फैसला आया. पति को 75%, भाइयों को 10-10% और बहन को सिर्फ 5% हिस्सा.

जज ने कहा, “मुस्लिम कानून में भाई-बहन के बीच हिस्से का ये फर्क है, लेकिन हिंदू कानून में ऐसा नहीं. हर किसी को बराबर हक मिलता है. यही वजह है कि अब UCC की जरूरत है.” कोर्ट ने इसे एक मिसाल बताते हुए कहा कि अगर UCC लागू हो जाए, तो न सिर्फ महिलाओं को बराबरी मिलेगी, बल्कि देश की एकता और संविधान का सपना भी साकार होगा.

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अंबेडकर का हवाला और सरकार को चिट्ठी

कोर्ट ने बाबासाहेब अंबेडकर के विचारों को याद करते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 44 भी यही चाहता है. इतना ही नहीं, कोर्ट ने अपने फैसले की कॉपी केंद्र और राज्य सरकार के बड़े अधिकारियों को भेजने का ऑर्डर दे दिया, ताकि UCC पर काम शुरू हो सके.

ये फैसला अब चर्चा का बड़ा मुद्दा बन गया है. कोई इसे महिलाओं के हक की जीत बता रहा है, तो कोई कह रहा है कि ये पुराने कानूनों को चुनौती देने वाला कदम है. सवाल ये है कि क्या सरकार इस सुझाव को गंभीरता से लेगी? या फिर ये सिर्फ कोर्ट की एक टिप्पणी बनकर रह जाएगी?

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