अब जुम्मे की नमाज के लिए नहीं मिलेगा ब्रेक, असम सरकार का एक और बड़ा फैसला

असम सरकार के इस फैसले के बाद AIUDF नेता अमीनुल इस्लाम ने कहा, "हम बाल विवाह के खिलाफ हैं. सरकार पिछले अधिनियम में कुछ प्रावधानों में संशोधन कर सकती थी, लेकिन उन्होंने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम और नियम, 1935 को निरस्त कर दिया."
Lok Sabha Election 2024

हिमंत बिस्वा सरमा

Assam News: असम सरकार ने एक और बड़ा फैसला लिया है. राज्य के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शुक्रवार को कहा कि राज्य विधानसभा में नमाज के लिए अब कोई ब्रेक नहीं दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि यह उत्पादकता बढ़ाने और औपनिवेशिक प्रथाओं को खत्म करने की दिशा में एक कदम है. इससे पहले, मुस्लिम विधायकों और कर्मचारियों को शुक्रवार की नमाज या जुम्मे की नमाज के लिए दो घंटे का ब्रेक लेने की अनुमति थी. सरमा ने कहा कि यह प्रथा मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्ला ने 1937 में शुरू की थी. उन्होंने कहा, “इस ऐतिहासिक फैसले के लिए अध्यक्ष बिस्वजीत दैमारी डांगोरिया और हमारे विधायकों का आभार.”

विधानसभा को बिना किसी धार्मिक विचार के काम करना चाहिए: सरमा

सीएम सरमा ने कहा कि विधानसभा को बिना किसी धार्मिक विचार के काम करना चाहिए. इस फैसले के साथ, विधानसभा शुक्रवार सहित हर दिन सुबह 09:30 बजे अपनी कार्यवाही शुरू करेगी. यह राज्य विधानसभा द्वारा एक विधेयक पारित करने के एक दिन बाद आया है. इससे पहले असम सरकार ने राज्य में मुसलमानों के लिए विवाह और तलाक दोनों के लिए सरकार के पास पंजीकरण कराना अनिवार्य कर दिया है.

सीएम सरमा ने आश्वासन दिया कि सरकार अनिवार्य पंजीकरण की आवश्यकता के दौरान मुस्लिम पर्सनल लॉ और इस्लामी रीति-रिवाजों का पालन करेगी. सरमा ने कहा, “हम मुस्लिम विवाह पंजीकरण प्रक्रिया में काजी व्यवस्था को खत्म करना चाहते हैं. इसके अलावा हम राज्य में बाल विवाह को भी रोकना चाहते हैं.”

यह भी पढ़ें: झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले BJP में शामिल हुए चंपई सोरेन, ये है JMM को ठुकराने की पूरी कहानी

मामले को अदालत ले जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं: AIUDF नेता अमीनुल इस्लाम

वहीं असम सरकार के इस फैसले के बाद AIUDF नेता अमीनुल इस्लाम ने कहा, “हम बाल विवाह के खिलाफ हैं. सरकार पिछले अधिनियम में कुछ प्रावधानों में संशोधन कर सकती थी, लेकिन उन्होंने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम और नियम, 1935 को निरस्त कर दिया. मामले को अदालत में ले जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है.”

ज़रूर पढ़ें