क्यों खारिज हुआ धनखड़ के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव? नियमों को ताक पर रखना पड़ गया भारी
उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) नोटिस खारिज कर दिया गया है. यह तकनीकी कारणों से हुआ है. वैसे तो संसद में किसी भी सदस्य या पदाधिकारी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है, लेकिन कुछ नियम और शर्तें हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. विपक्षी दलों ने धनखड़ पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए अविश्वास प्रस्ताव लाया था, लेकिन 14 दिन पहले नोटिस देने का नियम पूरा नहीं किया गया, जिससे यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं हुआ.
14 दिन पहले नोटिस देना जरूरी
संविधान के अनुसार, अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 14 दिन पहले नोटिस देना जरूरी होता है, और विपक्षी दलों ने इस शर्त का पालन नहीं किया. इसी वजह से उनका यह कदम विफल हो गया है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि विपक्ष का यह दांव पूरी तरह से नाकाम हुआ, जिससे विपक्षी दलों को एक बड़ा झटका लगा है. अब देखना यह है कि विपक्ष अपनी रणनीतियों में क्या बदलाव करता है.
जगदीप धनखड़ पर विपक्ष ने क्या-क्या आरोप लगाए?
विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया था. उनका कहना है कि जब भी विपक्षी सदस्य सदन की कार्यवाही पर आपत्ति उठाते हैं, तो सभापति उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां करते हैं. विपक्षी नेताओं का कहना है कि जगदीप धनखड़ विपक्षी सांसदों के भाषण में लगातार दखल दे रहे हैं और अपनी इच्छाओं के अनुसार विशेषाधिकार से विपक्षी सांसदों को दबाने की कोशिश कर रहे हैं. इसके अलावा, उन्होंने यह भी दावा किया कि सभापति ने स्वयं को आरएसएस का एकलव्य बताया था और कहा था कि वे इस उच्च पद पर रहते हुए भी इस संगठन का हिस्सा रहे हैं.
विपक्ष ने यह भी कहा, “यह उनके लिए गलत है. वे सरकार के प्रवक्ता की तरह काम कर रहे हैं.” साथ ही, विपक्षी नेताओं का यह भी आरोप है कि सभापति ने उच्च सदन में विपक्षी नेताओं की टिप्पणियों की आलोचना की.
अविश्वास प्रस्ताव से जुड़े क्या-क्या नियम हैं?
अविश्वास प्रस्ताव (Motion of No Confidence) संसद में किसी भी सदस्य या पदाधिकारी के खिलाफ लाया जा सकता है. इसके तहत राज्यसभा के सभापति, उपराष्ट्रपति या सरकार के किसी अन्य सदस्य के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा सकता है. हालांकि, इस प्रक्रिया के लिए कुछ नियम और शर्तें होती हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है.
अविश्वास प्रस्ताव लाने के नियम
अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 14 दिन पहले नोटिस देना आवश्यक होता है. इसका मतलब यह है कि यदि आप अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहते हैं, तो आपको पहले इसे संबंधित संसद के सचिवालय में नोटिस के रूप में प्रस्तुत करना होगा और इसे कम से कम 14 दिन पहले भेजना होगा.
सांसदों की संख्या
अविश्वास प्रस्ताव को लाने के लिए संबंधित सांसदों या सदस्यों को एक निश्चित संख्या में समर्थक (Signature) की आवश्यकता होती है. उदाहरण के तौर पर, लोकसभा में इस प्रस्ताव को लाने के लिए 50 सांसदों का समर्थन होना चाहिए और राज्यसभा में 25 सांसदों का. बिना इन समर्थन के प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया जा सकता.
विधानसभा या संसद में चर्चा
जब अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो इसे संसद में या विधानसभा में चर्चा के लिए रखा जाता है. इसके बाद उस पर वोटिंग होती है. यदि प्रस्ताव के पक्ष में बहुमत मिलता है, तो संबंधित पदाधिकारी (जैसे उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या राज्यसभा के सभापति) को पद से हटा दिया जाता है.
प्रस्ताव का खारिज होना
यदि नोटिस में कोई तकनीकी खामी पाई जाती है, जैसे कि समय सीमा का पालन न करना, सही समर्थन न मिलना या आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन न करना, तो यह प्रस्ताव खारिज हो सकता है. इस स्थिति में प्रस्ताव पर कोई चर्चा या मतदान नहीं होता है.
चुनाव आयोग की भूमिका
अगर अविश्वास प्रस्ताव सरकार के खिलाफ है, तो चुनाव हो सकते हैं. सरकार को हटाने के बाद चुनाव आयोजित हो सकते हैं या नए नेता को चुनने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है. वहीं, राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कुछ विशेष नियम होते हैं.
-राज्य सभा में अविश्वास प्रस्ताव के लिए नोटिस 14 दिन पहले देना अनिवार्य होता है.
-अविश्वास प्रस्ताव तब लाया जा सकता है जब विपक्षी दलों का मानना हो कि सभापति ने निष्पक्षता से कार्य नहीं किया है या किसी पार्टी विशेष का पक्ष लिया है.
-यदि प्रस्ताव पर चर्चा शुरू होती है, तो उसमें संसद के सदस्य अपनी बातें रख सकते हैं और इसके बाद प्रस्ताव पर वोटिंग होती है.