BJP को 2,244 करोड़, फुल स्विंग में कांग्रेस…चंदे से राजनीतिक पार्टियों की खूब हुई कमाई, यह रहा पूरा लेखा-जोखा

चुनाव आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, बीजेपी के चंदे का एक बड़ा हिस्सा प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट से आया है. इस ट्रस्ट ने बीजेपी को 723.6 करोड़ का दान दिया. इसके अलावा, कई और कंपनियां भी इस ट्रस्ट के माध्यम से बीजेपी को फंड देती रही हैं.
Political Party Donation

प्रतीकात्मक तस्वीर

Political Party Donation: साल 2023-2024 में राजनीतिक पार्टियों को खूब चंदा मिला है. इस रेस में बीजेपी ही सबसे आगे रही है. बीजेपी को इस बार 2,244 करोड़ रुपये का चंदा मिला है, जो पिछले साल के मुकाबले तीन गुना अधिक है. चुनाव आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, बीजेपी के चंदे का एक बड़ा हिस्सा प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट से आया है. इस ट्रस्ट ने पार्टी को 723.6 करोड़ का दान दिया. इसके अलावा, कई और कंपनियां भी इस ट्रस्ट के माध्यम से बीजेपी को फंड देती रही हैं.

इनमें मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रा लिमिटेड, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, आर्सेलर मित्तल ग्रुप और भारती एयरटेल जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हैं.

बता दें कि प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट का चंदा देने का सिलसिला केवल बीजेपी तक ही सीमित नहीं है. इस ट्रस्ट से कांग्रेस पार्टी को भी दान मिलता है, हालांकि बीजेपी की तुलना में यह राशि बहुत कम रही. कांग्रेस को इस ट्रस्ट से 156.4 करोड़ रुपये का चंदा मिला, जो पिछले साल की तुलना में ज्यादा है. कुल मिलाकर, कांग्रेस को इस साल 255 करोड़ रुपये की आमदनी हुई है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा सिर्फ 79 करोड़ रुपये था. कांग्रेस इस साल अपनी फंडिंग को बढ़ाने में कामयाब रही है.

क्षेत्रीय दलों ने भी जुटाया चंदा

बीजेपी और कांग्रेस के अलावा, कुछ क्षेत्रीय दलों ने भी इस बार अच्छा चंदा जुटाया है. जैसे कि भारत राष्ट्र समिति (BRS) को इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए 495.5 करोड़ का चंदा मिला. इसके अलावा, DMK को 60 करोड़ रुपये और वाईएसआर कांग्रेस को 121.5 करोड़ रुपये मिले. इन पार्टियों ने भी इलेक्टोरल बॉन्ड्स का ही इस्तेमाल किया.

झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी इस बार 11.5 करोड़ रुपये का चंदा जुटाया, जबकि आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी TDP को 33 करोड़ रुपये का चंदा मिला. ये सारी रकम इलेक्टोरल बॉन्ड्स के माध्यम से आई है.

इलेक्टोरल बॉन्ड्स और ट्रस्ट का बढ़ा प्रभाव

चुनाव आयोग की रिपोर्ट यह भी बता रही है कि चुनावी चंदा का एक बड़ा हिस्सा इलेक्टोरल बॉन्ड्स और ट्रस्ट्स के जरिए आता है. इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर कई सवाल उठते हैं, क्योंकि इसमें दान देने वालों की पहचान सार्वजनिक नहीं की जाती, जिससे यह दान किसी पार्टी को विशेष रूप से फायदा पहुंचाने के रूप में देखा जा सकता है. शुरू से ही विवादों में घिरी केंद्र सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल असंवैधानिक क़रार दे दिया था.

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बड़ा कारोबार, बड़ा दान

बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घराने, जैसे कि मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रा लिमिटेड, सीरम इंस्टीट्यूट, और भारती एयरटेल ने चुनावी दान देने के मामले में प्रमुख भूमिका निभाई है. इन कंपनियों का बड़ा आर्थिक प्रभाव है, और इनका चंदा देना यह बताता है कि राजनीति और व्यापार का नाता कितने गहरे और प्रभावशाली होते जा रहे हैं. हालांकि, प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ने अब तक 2023-24 के लिए अपने चंदा देने वालों की सूची नहीं जारी की है, लेकिन पिछले वर्षों के अनुभव से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इन कंपनियों ने फिर से दान दिया होगा.

क्यों है यह चंदा महत्वपूर्ण?

राजनीतिक पार्टियों के लिए यह चंदा सिर्फ चुनावी प्रचार का साधन नहीं है, बल्कि यह उनकी शक्ति और प्रभाव का विस्तार भी करता है. चुनावी फंडिंग के मामले में BJP न केवल सबसे आगे है, बल्कि कांग्रेस और कुछ क्षेत्रीय दल भी अपनी स्थिति मजबूत कर रहे हैं. यह स्थिति भारतीय राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत को संकेत देती है, जहां पैसे का महत्व बढ़ रहा है और धनिक वर्ग का राजनीतिक दलों के चुनावी अभियान पर ज्यादा प्रभाव पड़ रहा है.

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