रुड़की में राजनीति का खतरनाक खेल! क्या BJP के ‘चैंपियन’ को दनादन फायरिंग के लिए MLA उमेश ने उकसाया? ये है पर्दे के पीछे की कहानी
चैंपियन ने की गोलीबारी!
Roorkee Firing Case: यह कहानी है उत्तराखंड के एक छोटे से शहर रुड़की की, जहां राजनीति की गलियों में एक बड़ा धमाका हुआ. 26 जनवरी, गणतंत्र दिवस का दिन था—देशभर में ध्वजारोहण हो रहा था, लोग भारत के संविधान की अहमियत पर गर्व महसूस कर रहे थे, लेकिन रुड़की में एक ऐसी घटना घटित हुई, जिसने न सिर्फ पुलिस को उलझा दिया, बल्कि राजनीतिक दुनिया में भूचाल भी मचा दिया.
एक कहानी के दो किरदार
इस कहानी के मुख्य किरदार हैं—प्रणव सिंह चैंपियन और उमेश कुमार. चैंपियन भाजपा के नेता के तौर पर पहचाने जाते हैं, वहीं उमेश निर्दलीय विधायक बने हैं.लेकिन जैसे-जैसे राजनीति में इनका मुकाबला बढ़ा, वैसे-वैसे इनके रिश्ते में खटास आ गई. दोनों के बीच पहले भी तकरार होती रही थी, लेकिन 26 जनवरी को जो कुछ हुआ, वह किसी फिल्मी सीन से कम नहीं था.
क्या हुआ उस दिन?
गणतंत्र दिवस पर जब लोग शांतिपूर्वक देश की ताकत का जश्न मना रहे थे, प्रणव सिंह चैंपियन ने अचानक अपने समर्थकों की एक झुंड बनाई और उमेश कुमार के कार्यालय पर धावा बोल दिया. हां, बिल्कुल! उनके साथ थे कुछ हथियारबंद लोग. ऑफिस में बैठे लोग पहले तो पूरी तरह से अचंभित थे, लेकिन फिर अगले कुछ मिनटों में जो हुआ, वह किसी फिल्म के एक्शन सीन से कम नहीं था. चैंपियन और उनके लोग गोलीबारी करने लगे. कार्यालय के खिड़कियां, दरवाजे सब टूट गए, गाली-गलौज भी जोरों से हो रही थी. हालांकि गनीमत रही कि विधायक उमेश कुमार उस वक्त ऑफिस में नहीं थे. नहीं तो यह मामला कहीं और ही बढ़ सकता था.
फायरिंग का कारण क्या था?
अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या हो गया, जो एक पूर्व विधायक ने अपने समर्थकों के साथ गोलियां चलानी शुरू कर दीं? तो इसका जवाब है—राजनीति में तकरार और व्यक्तिगत रंजिश. चैंपियन और उमेश कुमार के बीच पहले भी सोशल मीडिया पर तीखे वाकयुद्ध होते रहे थे. बात बढ़ती-बढ़ती इस हद तक जा पहुंची कि एक दिन चैंपियन ने उमेश कुमार के ऑफिस पर हमला बोल दिया. गोलियां चलाने के बाद उन्होंने वह वीडियो भी वायरल किया, शायद ये दिखाने के लिए कि वह अब राजनीति में अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहते हैं.
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फिर क्या हुआ?
जैसे ही वीडियो वायरल हुआ, पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की और घटनास्थल पर पहुंची. विधायक उमेश कुमार ने भी अपनी लाइसेंसी पिस्टल निकाली, लेकिन पुलिस ने उन्हें शांत कराया. इसके बाद चैंपियन को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे हरिद्वार पुलिस के हवाले कर दिया. अब पुलिस का ध्यान इस पर था कि उस दिन जो गोलियां चलाई गईं, उनके पीछे कितने और लोग थे और उन्हें भी कैसे गिरफ्तार किया जाए.
अब नया मोड़
जरा रुकिये, कहानी यहीं खत्म नहीं होती! 25 जनवरी को उमेश कुमार पर आरोप लगा कि उन्होंने चैंपियन के घर जाकर उनके स्टाफ से मारपीट की और धमकियां दीं. ये बात चैंपियन को बहुत नागवार गुजरी, और उसने 26 जनवरी को प्रतिशोध लेने का फैसला किया. यानी, यह घटना दोनों नेताओं के बीच पहले से ही पनप रही दुश्मनी का नतीजा थी.
अब पुलिस ने दोनों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी. चैंपियन और उनके समर्थकों की गिरफ्तारी की प्रक्रिया जारी है और उनके हथियारों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए हैं. इससे साफ है कि राजनीति में अब बात सिर्फ जुबानी तकरार तक नहीं रही, बल्कि हिंसक घटनाओं में बदल गई है. हालांकि, अब विधायक उमेश की भी गिरफ्तारी हो चुकी है. हरिद्वार पुलिस मामले की जांच कर रही है.
कहानी क्या संदेश दे रही है?
यह पूरी घटना एक गहरी सीख देती है कि राजनीति में शह और मात का खेल कभी भी हिंसा का रूप ले सकता है. जब दो नेता अपनी व्यक्तिगत दुश्मनी को सार्वजनिक करते हैं, तो न केवल उनका व्यक्तिगत छवि बिगड़ती है, बल्कि समाज में भी कानून और व्यवस्था पर सवाल उठते हैं. उत्तराखंड जैसे शांतिपूर्ण राज्य में राजनीति इस तरह के खतरनाक मोड़ तक कैसे पहुंच सकती है, यह इस घटना से साफ हो जाता है.
अब यह देखना बाकी है कि प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है, और क्या भविष्य में ऐसी हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस उपाय किए जाएंगे. क्या इस बार राजनीति की बिसात पर जीत सिर्फ शब्दों और मुद्दों की होगी, या फिर गोलियों का खेल जारी रहेगा?