SBI ने चुनाव आयोग को सौंपा Electoral Bonds का डेटा, सुप्रीम कोर्ट ने दी थी चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें इस डेटा को जारी करने की समय सीमा 6 मार्च बढ़ाने की मांग की गई थी.
SBI Electoral Bonds

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SBI Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश के बाद भारतीय स्टेट बैंक ने मंगलवार शाम को चुनाव आयोग को चुनावी बांड के बारे में डेटा सौंप दिया है. हालांकि, बैंक के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक ने अभी तक अदालत के आदेश के अनुपालन की पुष्टि करने वाला हलफनामा दायर नहीं किया है. सूत्रों ने इस बात की जानकारी दी है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें इस डेटा को जारी करने की समय सीमा 6 मार्च बढ़ाने की मांग की गई थी. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने आदेशों की अवज्ञा के लिए बैंक को फटकार लगाई थी और कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी थी.

बैंक ने मांगी थी 30 जून तक का समय

बता दें कि इससे पहले बैंक ने अदालत में तर्क दिया था कि डेटा को इकट्ठा करने, क्रॉस-चेक करने और जारी करने में काफी समय लगेगा. बैंक ने अदालत से 30 जून तक समय मांगी थी. जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि दानदाता का विवरण एसबीआई की मुंबई शाखा में उपलब्ध था. इसके लिए बैंक को केवल कवर खोलना, डेटा इकट्ठा करना और जानकारी देना है. मुख्य न्यायाधीश ने एसबीआई को फटकार लगाते हुए कहा, “हमने आपको मिलान अभ्यास करने के लिए नहीं कहा था. हमने आपसे स्पष्ट खुलासा करने के लिए कहा है.” सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को 6 मार्च तक डेटा प्रकट करने और पोल पैनल को 13 मार्च तक यह जानकारी सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया था.

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क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?

भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी. इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को कानूनन लागू कर दिया था. आसान भाषा में इसे अगर हम समझें तो इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया है. यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना, अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है. कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना है. सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द करना होगा.

क्यों उठा इलेक्टोरल बॉन्ड पर सवाल?

बताते चलें कि भारत सरकार ने इस योजना की शुरुआत करते हुए कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड देश में राजनीतिक फ़ंडिंग की व्यवस्था को साफ़ कर देगा. लेकिन पिछले कुछ सालों में ये सवाल बार-बार उठा कि इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए चंदा देने वाले की पहचान गुप्त रखी गई है, इसलिए इससे काले धन की आमद को बढ़ावा मिल सकता है. विपक्ष ने आरोप लगाया कि इससे कॉर्पोरेट घरानों को उनकी पहचान बताए बिना पैसे दान करने में मदद करने के लिए बनाई गई थी.

 

 

 

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