“आंबेडकर का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ”, आरक्षण पर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद के बयान से विपक्ष को मिल गया नया हथियार?

इससे पहले संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आंबेडकर के बारे में बयान दिया था. शाह ने कहा था, "आजकल आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर का नाम लिया जा रहा है, लेकिन अगर लोग भगवान का नाम लेते, तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता."
Shankaracharya Avimukteshwaranand

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद

Shankaracharya Avimukteshwaranand: ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने आरक्षण पर एक गंभीर बयान दिया है, जो वर्तमान में चर्चा का विषय बन गया है. उनका कहना है कि आरक्षण का उद्देश्य समय के साथ न केवल बदल गया है, बल्कि अब यह अपने मूल उद्देश्य से बहुत हटा हुआ नजर आता है. शंकराचार्य ने इस मुद्दे पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि 78 साल पहले जब आंबेडकर ने संविधान में आरक्षण की व्यवस्था दी थी, तो उसका उद्देश्य था कि समाज के पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में शामिल किया जाए, लेकिन आज भी यह व्यवस्था अपनी जगह पर है और वह उद्देश्य पूरा नहीं हुआ है.

शंकराचार्य ने क्या-क्या कहा?

उन्होंने यह भी कहा कि आरक्षण को 10 साल के लिए दिया गया था, लेकिन आज तक यह व्यवस्था जारी है. शंकराचार्य का कहना था, “यह व्यवस्था इसलिए नहीं दी गई थी कि लोग जीवनभर के लिए आरक्षण के सहारे चलते रहें. अंबेडकर ने इसे इस उद्देश्य से नहीं दिया था कि आरक्षण के बल पर लोग हमेशा के लिए पिछड़े रहेंगे. उनका उद्देश्य था कि लोग इस आरक्षण का लाभ लेकर समाज की मुख्यधारा में शामिल हों और खुद को स्थापित कर सकें. लेकिन आज भी लोग आरक्षण की बैसाखी के सहारे खड़े हैं, तो यह सवाल उठता है कि क्या यह व्यवस्था सही दिशा में चल रही है?”

शंकराचार्य ने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आरक्षण के बजाय सीधे मांग करें. उन्होंने कहा, “अगर किसी को शिक्षा, स्वास्थ्य, या अन्य बुनियादी सुविधाओं की कमी महसूस हो रही है, तो उन्हें इसके लिए आवाज उठानी चाहिए, न कि सिर्फ आरक्षण की बैसाखी का सहारा लेना चाहिए.”

आंबेडकर पर राजनीति जारी

बता दें कि इससे पहले संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आंबेडकर के बारे में बयान दिया था. शाह ने कहा था, “आजकल आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर का नाम लिया जा रहा है, लेकिन अगर लोग भगवान का नाम लेते, तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता.” इस बयान के बाद विपक्ष ने उन्हें घेरते हुए इस्तीफे की मांग की थी. शंकराचार्य के बयान के बाद यह मुद्दा और भी गर्मा सकता है, क्योंकि उन्होंने सीधे तौर पर यह सवाल उठाया है कि क्या आरक्षण ने अपनी उद्देश्यपूर्ण भूमिका निभाई है या नहीं.

इससे पहले भी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अपने बयानों से अक्सर सुर्खियां बटोरी हैं. उन्होंने विभिन्न सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर कई बार तीव्र टिप्पणियां की हैं, जिन्हें विपक्ष ने कई बार राजनीतिक लाभ के लिए सरकार के खिलाफ इस्तेमाल किया है.

बयानों से विवादों को जन्म देते रहते हैं शंकराचार्य!

शंकराचार्य ने पहले भी कुछ और बयानों से विवादों को जन्म दिया था. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन को लेकर सरकार को घेरा था. शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा था कि अब हम चुप नहीं रह सकते और कहेंगे कि राम मंदिर का काम पूरा हुए बिना उद्घाटन करना और भागवान राम की प्रतिमा वहां विराजमान करने का विचार ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि समारोह आयोजित करने वाले हो सकता है हमें एंटी-मोदी कहें. ऐसा नहीं है, लेकिन हम शास्त्रों के विरुद्ध नहीं जा सकते. शंकराचार्य के इस बयान को विपक्ष ने हथियार बनाते हुए पीएम मोदी पर निशाना साधा था.

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विपक्ष का तर्क

विपक्ष ने शंकराचार्य के इस बयान का हवाला देते हुए यह आरोप लगाया कि मोदी सरकार अपने कार्यकाल में धार्मिक उन्माद को बढ़ावा दे रही है और यह देश की एकता और अखंडता के लिए खतरे की घंटी है. विपक्ष का कहना है कि यदि एक धर्मगुरु भी इस तरह की चिंता जता रहा है, तो यह स्पष्ट संकेत है कि सरकार अपने मूल धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों से भटक रही है. कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने इस बयान को मोदी सरकार की नीतियों और उसकी राजनीति के खिलाफ एक मजबूत तर्क के रूप में इस्तेमाल किया है.

सरकार का रुख

हालांकि, भाजपा और मोदी सरकार ने इस बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं ने इसे एक व्यक्तिगत बयान बताया और इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देने का सुझाव दिया. उनका कहना था कि शंकराचार्य का यह बयान सिर्फ उनके निजी विचार हैं और इससे सरकार की नीतियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

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