51वें CJI बने जस्टिस संजीव खन्ना, 6 महीनों का होगा कार्यकाल, ऐतिहासिक फैसलों में रहे शामिल
Supreme Court: भारत के CJI डीवाई चंद्रचूड़ के रिटायरमेंट के बाद SC के जस्टिस संजीव खन्ना भारत के 51वें चीफ जस्टिस बने. उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद की शपथ दिलाई. अब उन्होंने सीजेआई का पद संभाल लिया है.
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने ही जस्टिस संजीव खन्ना के नाम को 51वें CJI के लिए आगे किया था. संजीव खन्ना की बात करें तो उनका बैकग्राउंड वकालत की रही है. उनके पिता देवराज खन्ना दिल्ली हाईकोर्ट के जज रह चुके हैं. वहीं उनके चाचा हंसराज खन्ना सुप्रीम कोर्ट के मशहूर जज थे. हंसराज खन्ना नस ही इंदिरा सरकार के इमरजेंसी लगाने का विरोध किया था. उन्होंने राजनीतिक विरोधियों को बिना सुनवाई जेल में डालने पर भी नाराजगी जताई थी.
हंसराज खन्ना का 1977 में वरिष्ठता के आधार पर चीफ जस्टिस बनना तय माना जा रहा था. मगर इंद्रा गांधी के फैसलों के विरोध में रहने के कारण उनको यह पद नहीं मिली थी. उनकी जगह जस्टिस एमएच बेग को CJI बनाया गया था. इसके बाद उन्होंने विरोध में सुप्रीम कोर्ट से इस्तीफा दे दिया था. इंदिरा की सरकार गिरने के बाद वह चौधरी चरण सिंह की सरकार में 3 दिन के लिए कानून मंत्री भी बने थे.
अपने चाचा से प्रभावित रहे जस्टिस संजीव खन्ना
संजीव खन्ना शुरू से अपने चाचा से प्रभावित रहे. इसलिए उन्होंने 1983 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैंपस लॉ सेंटर से एलएलबी की. इसके बाद उन्होंने दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट से वकालत शुरू की. साल 2005 में जस्टिस खन्ना दिल्ली हाईकोर्ट के जज बने. 13 साल तक दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहने के बाद 2019 में उनका प्रमोशन हुआ और वह सुप्रीम कोर्ट के जज बन गए.
ऐतिहासिक फैसलों में रही हिस्सेदारी
सुप्रीम कोर्ट में जज रहते हुए उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले लिए हैं. 6 साल में एससी जज रहते हुए वह 450 जजमेंट बेंचों का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने खुद 115 जजमेंट लिखे.
2019 में सूचना के अधिकार से जुड़े एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता, सूचना के अधिकार के खिलाफ नहीं है. बेंच में शामिल जस्टिस खन्ना ने कहा था कि चीफ जस्टिस का ऑफिस, राइट टू एजुकेशन के अधीन हो सकता है. हर केस में जजों की निजता के साथ-साथ पारदर्शिता भी होनी चाहिए.
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इसके बाद मई 2023 में तलाक के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से फैसला सुनाया. इसमें कहा गया कि किसी मामले में संविधान के आर्टिकल-142 के तहत सुप्रीम कोर्ट सीधे तलाक का फैसला दे सकता है.
वहीं जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाने के फैसले को अगस्त 2023 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. CJI चंद्रचूड़ और जस्टिस खन्ना सहित पांच जजों की बेंच ने आर्टिकल- 370 हटाने के निर्णय को बरकरार रखा था.