तेलंगाना के सुरंग में 8 मजदूरों की एक हफ्ते से हलक में अटकी जान, बाहर निकालने में रैट माइनर्स भी नाकाम

जेट इंजेक्शन, सुरंग के अंदर खतरनाक स्थिति में पहुंचने के लिए ड्रिलिंग और स्नैक रैट माइनर्स को लाना – अब तक बेअसर साबित हो रही हैं. पानी और कीचड़ से भरी इस सुरंग में तक़नीकी उपाय नाकाम हो गए हैं. सबसे पहले रैट माइनर्स को बुलाया गया, जो छोटे स्थानों में फंसे लोगों को बाहर निकालने में माहिर होते हैं.
Telangana Tunnel Collapse

बचाव कार्य जारी

Telangana Tunnel Collapse: तेलंगाना के नलगोंडा जिले में एक दिल दहला देने वाला हादसा हुआ है. श्रीसेलम लेफ्ट बैंक कनाल नामक सुरंग परियोजना के निर्माण के दौरान सुरंग का एक हिस्सा ढह गया, जिसमें आठ मजदूर फंसे हुए हैं. यह हादसा अब से एक हफ्ते पहले हुआ था, और तब से इन मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने की कोशिशें जारी हैं. हालांकि, अब तक बचाव कार्य में कोई सफलता नहीं मिली है, और ये सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या हमारी तकनीक और सुरक्षा उपाय इतने सक्षम हैं कि ऐसे हादसों से निपटा जा सके?

कैसे हुआ हादसा और क्या हालात हैं?

22 फरवरी को तेलंगाना के नलगोंडा जिले में चल रही एसएलबीसी सुरंग परियोजना में काम के दौरान यह दर्दनाक हादसा हुआ. सुरंग की खुदाई के दौरान अचानक सुरंग की छत का एक हिस्सा ढह गया, जिसके नीचे आठ मजदूर फंस गए. इस हादसे के बाद बचाव कार्य के लिए कई एजेंसियां जुटी हैं, जिनमें राष्ट्रीय आपदा बचाव बल (NDRF), राज्य आपदा बचाव बल (SDRF), भारतीय नौसेना के मार्कोस कमांडो, और अन्य तकनीकी विशेषज्ञ शामिल हैं.

बचाव कार्य में इस्तेमाल की गई तक़नीकें

जेट इंजेक्शन, सुरंग के अंदर खतरनाक स्थिति में पहुंचने के लिए ड्रिलिंग और स्नैक रैट माइनर्स को लाना – अब तक बेअसर साबित हो रही हैं. पानी और कीचड़ से भरी इस सुरंग में तक़नीकी उपाय नाकाम हो गए हैं. सबसे पहले रैट माइनर्स को बुलाया गया, जो छोटे स्थानों में फंसे लोगों को बाहर निकालने में माहिर होते हैं. ये वही रैट माइनर्स हैं जिन्होंने उत्तराखंड के सिलक्यारा हादसे में फंसे मजदूरों को बचाया था. हालांकि, तेलंगाना की सुरंग सिलक्यारा की सुरंग से ज्यादा चौड़ी है, फिर भी यहां तक पहुंचने में समस्या हो रही है.

बचाव कार्य में कठिनाइयां

एसएलबीसी परियोजना तेलंगाना में पानी की सप्लाई और सिंचाई सुविधाओं को बेहतर बनाने के उद्देश्य से बनाई जा रही है. इसकी खुदाई के दौरान जब सुरंग की छत गिरी, तो इसके ऊपर स्थित पहाड़ों से अचानक पानी की बहुत बड़ी मात्रा सुरंग में चली गई. इस पानी ने सुरंग की मिट्टी को कमजोर कर दिया, जिससे छत का एक बड़ा हिस्सा ढह गया. इसके परिणामस्वरूप सुरंग के भीतर मजदूरों के लिए बचाव का रास्ता लगभग बंद हो गया है. बचाव कार्य में जो प्रमुख समस्या सामने आ रही है, वह यह है कि सुरंग के अंदर पानी और कीचड़ बहुत अधिक है, और इसे पार करने के लिए तकनीकी उपायों की कमी है.

इसके बावजूद, बचाव कार्य के लिए जो टीमें बनाई गई हैं, वह पूरी कोशिश कर रही हैं. भारतीय नौसेना के मार्कोस कमांडो और एनडीआरएफ के कर्मी स्थिति को समझने और मजदूरों तक पहुंचने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कीचड़ और पानी की वजह से यह कार्य बेहद कठिन हो गया है.

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क्या सुरक्षा उपायों का कोई खाका था?

यह सवाल उठता है कि क्या इस तरह के निर्माण कार्यों में सुरंगों के ढहने या किसी अन्य आपात स्थिति के लिए पहले से सुरक्षा उपायों का खाका तैयार किया गया था? क्या सुरंगों के डिज़ाइन में किसी तरह के जोखिमों का आकलन किया गया था? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें यह समझने में मदद करेगा कि क्या किसी संभावित हादसे के लिए पहले से कोई उपाय किए गए थे या नहीं.

एसएलबीसी सुरंग एक सिंचाई परियोजना का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य तेलंगाना राज्य के नलगोंडा जिले में पानी की आपूर्ति और सिंचाई की स्थिति को सुधारना है. यह परियोजना काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही थी, क्योंकि इसका उद्देश्य क्षेत्र में कृषि और पेयजल की समस्याओं का समाधान करना था. लेकिन अब यह परियोजना एक बड़े हादसे का कारण बन गई है. जब सुरंग की छत ढही, तो उसे लेकर सवाल उठने लगे हैं कि क्या निर्माण में कोई ढांचागत जोखिम था, जिसे समय रहते पहचाना जा सकता था.

सुरंग का डिजाइन और खुदाई के दौरान क्या कदम उठाए गए थे, इस बारे में राज्य सरकार ने अभी तक कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी है. इस मामले में सरकारी अधिकारियों की ओर से अब तक किसी भी प्रकार की कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं आई है. विशेषज्ञों का कहना है कि ड्रिलिंग और खुदाई के दौरान, विशेषकर पहाड़ी इलाकों में, कई बार जमीन में अचानक बदलाव होते हैं, और इससे सुरंग की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है.

क्या हम ऐसे हादसों से कुछ सीख सकते हैं?

यह हादसा एक बड़ी चेतावनी है कि जब हम बड़े निर्माण कार्यों की योजना बनाते हैं, तो क्या हम उन योजनाओं के जोखिमों का सही से आकलन करते हैं? क्या इन घटनाओं के लिए पहले से कोई तैयारियां की जाती हैं? ये सवाल अब और भी प्रासंगिक हो गए हैं. खासकर तब जब हम देखते हैं कि ज्यादातर मामलों में ऐसे हादसों का शिकार गरीब मजदूर होते हैं. अक्सर ऐसे हादसों को समय के साथ भुला दिया जाता है, और फिर वही स्थिति सामने आती है.

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