“अपने बच्चों को भेजेंगे इंग्लिश स्कूल और दूसरों के बच्चों को बनाएंगे मौलवी…”, सपा पर क्यों भड़क गए सीएम योगी?
सीएम योगी और अखिलेश यादव
CM Yogi Speech: उत्तर प्रदेश विधानसभा का बजट सत्र एक हंगामेदार मोड़ पर शुरू हुआ, जब समाजवादी पार्टी ने सरकार के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया. लेकिन, सत्र के पहले दिन की सबसे बड़ी चर्चा भाषा को लेकर हुई, और इस पर सीएम योगी ने अपना कड़ा रुख अख्तियार किया. सीएम योगी ने विधानसभा में गरजते हुए कहा कि ये लोग हमेशा हर अच्छे कार्य का विरोध करते हैं, जो समाज और राज्य के हित में हो.
सपा ने किया था क्षेत्रीय भाषाओं में कार्यवाही का विरोध
जब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय ने क्षेत्रीय भाषाओं, जैसे कि भोजपुरी, अवधी, ब्रज और बुंदेलखंडी में कार्यवाही होने पर विरोध किया, तो सीएम योगी भड़क गए. उन्होंने पांडेय के इस आरोप का जवाब देते हुए कहा कि यह कोई नया मुद्दा नहीं है, बल्कि ये केवल राजनीति का हिस्सा है. उत्तर प्रदेश की ये बोलियां – भोजपुरी, अवधी, ब्रज, बुंदेलखंडी-हिंदी की उपभाषाएं हैं, जो इस सदन में सम्मान पाने की हकदार हैं. इनका विरोध नहीं होना चाहिए.”
सीएम योगी ने यह भी कहा कि अगर कोई व्यक्ति हिंदी नहीं बोल सकता, तो उसे अवधी, भोजपुरी या ब्रज बोलने का भी अधिकार मिलना चाहिए. यही लोकतंत्र की असली पहचान है.”
मुख्यमंत्री ने समाजवादी पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा, “यह दोहरे मापदंड की राजनीति है. आप खुद तो अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम में पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन दूसरों के बच्चों के लिए उर्दू को ज़रूरी बनाना चाहते हैं. क्या यह सही है? आप मौलवी बनाना चाहते हैं, कठमुल्लापन की ओर समाज को ले जाना चाहते हैं.”
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सीएम योगी ने साधा निशाना
योगी ने कहा कि समाजवादी पार्टी का यह विरोध केवल राजनीति और वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा है. उन्होंने यह भी कहा, “हमेशा हर अच्छे काम का विरोध करना सही नहीं है. अवधी, भोजपुरी, ब्रज जैसी बोलियों का सम्मान किया जाना चाहिए, क्योंकि ये हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं.”
इस विवाद में राजनीति की झलक दिखी, लेकिन योगी ने अपने भाषण से यह साबित कर दिया कि उन्होंने अपने राज्य की भाषाओं और संस्कृति को लेकर एक स्पष्ट और मजबूत रुख अपनाया है. इस मामले पर उनकी तल्ख टिप्पणी और सरकार के दृष्टिकोण ने विपक्ष को भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या वे सच में समाज के हर वर्ग के हित में काम कर रहे हैं या केवल अपनी राजनीति चमकाने के लिए विरोध कर रहे हैं.
इस बयान के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या वास्तव में क्षेत्रीय भाषाओं को उचित सम्मान मिल पा रहा है, और क्या यह सही दिशा में कदम है?