पहले ससुर और अब दामाद…एक्शन में मायावती, जानें भतीजे आकाश आनंद को एक बार फिर क्यों दिखाया BSP से बाहर का रास्ता
मायावती और उनके भतीजे आकाश
Mayawati On Akash Anand: हमेशा से अपनी सख्त राजनीतिक रणनीतियों के लिए जानी जाने वाली उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती एक बार फिर सुर्खियों में हैं, लेकिन इस बार वो किसी बड़े राजनीतिक विरोधी से नहीं, बल्कि अपने भतीजे आकाश आनंद से उलझी हैं. यावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी के सभी पदों से मुक्त कर दिया है. इस परिवारिक जंग का असर केवल उनके घर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी हलचल मच गई है. आइए जानते हैं कि आखिर क्या हुआ है, और मायावती ने इतना बड़ा फैसला क्यों लिया है.
पार्टी बैठक में क्या हुआ था ?
रविवार को लखनऊ स्थित बसपा दफ्तर में एक अहम पार्टी बैठक बुलाई गई थी. इस बैठक में बसपा सुप्रीमो मायावती ने सभी पदाधिकारियों को बुलाया था, लेकिन खास बात यह थी कि आकाश आनंद और ईशान इस बैठक में मौजूद नहीं थे. इस पर पार्टी में तरह-तरह की अफवाहें उड़ने लगीं. जब बैठक खत्म हुई, तो मायावती ने सबको चौंकाते हुए ऐलान किया कि उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी से हटा दिया है. लेकिन ये कोई पहला मौका नहीं था. इससे पहले भी मायावती ने आकाश से उत्तराधिकार और पार्टी पदों की जिम्मेदारियां वापस ले ली थीं, और अब एक बार फिर यही हुआ.
पहले ससुर, अब दामाद पर हुआ ‘एक्शन’!
वैसे तो राजनीति में जब बात मायावती की हो, तो हर कदम बेहद सोच-समझकर उठाया जाता है. और अगर बात उनके भतीजे आकाश आनंद की हो, तो यह कदम भी किसी और दिशा में बढ़ता है. हालांकि, मायावती ने एक बार फिर से आकाश आनंद पर जो एक्शन लिया, उससे उत्तर प्रदेश की सियासत में तूफान मच गया है. मायावती ने पहले उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया, और अब आकाश आनंद पर भी वही कड़ा फैसला लिया. तो, सवाल यह है मायावती ने आकाश को बाहर का रास्ता क्यों दिखाया?
क्या था आकाश आनंद का ‘गुनाह’?
आपके मन में ये सवाल जरूर घर कर गया होगा कि आकाश आनंद अचानक क्यों मायावती के निशाने पर आ गए? जवाब खुद मायावती ने प्रेस रिलीज में दिया. उनका कहना था कि आकाश के ससुर अशोक सिद्धार्थ ने पार्टी को दो खेमों में बांटने की कोशिश की, जिससे पार्टी की स्थिरता और ताकत को बहुत बड़ा नुकसान हुआ. इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि अशोक सिद्धार्थ का यह कदम पूरे देश में पार्टी को कमजोर करने के बराबर था.
मायावती ने साफ कहा, “जब अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से बाहर किया गया, तो आकाश पर भी उसका प्रभाव पड़ा, जो अब पार्टी के लिए माइनस पॉइंट बन गया है. पार्टी के हित में अब आकाश आनंद को सभी जिम्मेदारियों से हटा दिया गया है.” मायावती ने आरोप लगाया कि आकाश का राजनीतिक करियर भी उनके ससुर की गलत रणनीतियों के कारण ध्वस्त हो गया. अब वह खुद इसे ठीक करना चाहती हैं, ताकि पार्टी के आगे बढ़ने का रास्ता साफ रहे.
क्या है मायावती की अगली रणनीति?
अब जब आकाश आनंद का सफर खत्म हो गया, तो मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार पर पूरी तरह भरोसा जताया. उन्होंने उन्हें पार्टी का नेशनल कॉर्डिनेटर बना दिया और कहा कि आनंद कुमार ने पार्टी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया. वह पहले भी पार्टी के मुख्य कार्यकर्ता रहे हैं और इस बार भी उनकी जिम्मेदारी बढ़ाई गई है. आनंद कुमार पर भरोसा जताकर मायावती ने संदेश देने की कोशिश की है कि वो अब फैमिली पॉलिटिक्स में ज्यादा सावधानी बरतना चाहती हैं और किसी भी तरह के विभाजन को बर्दाश्त नहीं करेंगी. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आनंद कुमार की नई जिम्मेदारी पार्टी के लिए कितना फायदेमंद साबित होती है.
अब जब आकाश आनंद को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है, और भाई आनंद कुमार को आगे बढ़ाया गया है, तो सवाल यह उठता है कि क्या मायावती का यह कदम पार्टी को और सशक्त बनाएगा? या फिर यह परिवार की सियासी जंग को और बढ़ावा देगा? हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि मायावती ने अपने इस कदम से पार्टी की युवाओं और पुरानी टीम के बीच संतुलन कैसे बनाया है.
हालांकि, इतना तो पक्का है कि मायावती ने अपने फैसले से यह साबित कर दिया कि राजनीति में परिवार चाहे जितना भी हो, पार्टी और मूवमेंट सबसे ऊपर आता है. अब समय ही बताएगा कि उनका यह कदम सफलता की ओर ले जाएगा या फिर एक नई सियासी खिचड़ी बनेगी.
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मायावती का ‘राजनीतिक ज्ञान’
मायावती ने इस बैठक के दौरान सिर्फ पार्टी के भीतर के बदलावों पर ही नहीं, बल्कि केंद्र और यूपी सरकार की नीतियों पर भी जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि सरकार के दावे ज़मीनी हकीकत से बहुत दूर हैं, और गरीबों, दलितों, पिछड़ों के जीवन में कोई खास सुधार नहीं हो रहा है.
क्या चाहती हैं मायावती?
अब, मायावती के इस कदम से यह सवाल उठता है कि क्या बसपा अगले चुनाव में एक नई रणनीति के साथ लड़ेगी? क्या अब पार्टी में नए चेहरों की आंधी आएगी या फिर पुराने हाथों में ही पार्टी की बागडोर रहेगी? एक बात तो तय है कि मायावती न सिर्फ पार्टी, बल्कि अपने परिवार के भीतर भी अपना सशक्त नियंत्रण बनाए रखना चाहती हैं.
हालांकि, इस बदलाव ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में ध्यान आकर्षित किया है और सभी की नजरें अब 2027 विधानसभा चुनाव पर हैं, क्योंकि अब मायावती के पास खुद को साबित करने का एक और मौका होगा.