कूटनीति, शौर्य के आगे 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों का समर्पण…इंदिरा की चतुराई और 1971 युद्ध की अनकही कहानी

यह कहानी एक ऐसी जिद्द, वीरता और नेतृत्व की है, जिसने दुनिया को चौंका दिया. इस युद्ध के नायक भारतीय सेना, भारतीय वायुसेना, और भारतीय कूटनीति के बहादुर सैनिक थे. साथ ही, इस युद्ध की प्रमुख भूमिका निभाने वाली नेत्री थीं – तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी.
Vijay Diwas

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Vijay Diwas: यह कहानी एक ऐसी जंग की है, जिसने ना सिर्फ दो देशों का भविष्य बदल दिया, बल्कि पूरी दुनिया को यह दिखा दिया कि भारतीय सेना और कूटनीति का कोई मुकाबला नहीं. 16 दिसंबर 1971 भारतीय इतिहास में हमेशा के लिए एक खास दिन बन गया. यह वही दिन था, जब पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया और दक्षिण एशिया का नक्शा बदल गया.

यह कहानी एक ऐसी जिद्द, वीरता और नेतृत्व की है, जिसने दुनिया को चौंका दिया. इस युद्ध के नायक भारतीय सेना, भारतीय वायुसेना, और बहादुर सैनिक थे. साथ ही इस युद्ध की प्रमुख भूमिका निभाने वाली नेत्री थीं – तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी. इस जंग में भारतीय सेना ने न केवल पाकिस्तान को हराया, बल्कि बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र का जन्म भी कराया.

पूर्वी पाकिस्तान में बगावत

1971 का युद्ध तब हुआ जब पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से में एक भयंकर विद्रोह शुरू हो चुका था. पूर्वी पाकिस्तान के लोग पश्चिमी पाकिस्तान के शासन से तंग आ चुके थे. उन्हें लगता था कि पाकिस्तान की सत्ता में उनका कोई स्थान नहीं है. उनकी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को दबाया जा रहा था. बंगालियों की संस्कृति और उनकी भाषा उर्दू से अलग थी, और यह बर्बरता उन्हें सहन नहीं हो रही थी.

1970 में पाकिस्तान के आम चुनावों के बाद पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) ने चुनाव में बहुमत हासिल किया था, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान की सरकार ने उन्हें सत्ता सौंपने के बजाय, इस बहुमत को खारिज कर दिया. इससे स्थिति और भी गंभीर हो गई. बांग्लादेश में असंतोष फैल गया, और यहां के लोगों ने पाकिस्तान के खिलाफ हथियार उठा लिए. भारतीय सीमा के पास एक नई मुक्ति सेना का गठन हुआ, जिसे ‘मुक्ति वाहिनी’ के नाम से जाना जाता था.

भारत ने शुरुआत में बांग्लादेश के विद्रोहियों का समर्थन किया और उन्हें प्रशिक्षण और संसाधन मुहैया कराए. इस दौरान भारत और पाकिस्तान के रिश्ते तेजी से बिगड़े. पाकिस्तान की सेना ने बांग्लादेश में निर्दयता से कार्यवाही शुरू कर दी, जिससे लाखों लोग मारे गए और बड़ी संख्या में लोग भारत की तरफ पलायन करने लगे. यह संकट इतना बढ़ गया कि भारत को हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

भारत की निर्णायक भूमिका

भारत ने बांग्लादेश के युद्ध में हस्तक्षेप करने का फैसला लिया. 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारतीय सीमा पर हमला कर दिया, और इसके बाद भारत ने पाकिस्तान पर आक्रमण कर दिया. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने युद्ध की शुरुआत के बाद त्वरित फैसले लिए और युद्ध को किसी भी कीमत पर जीतने की ठान ली.

इंदिरा गांधी ने खुद बांग्लादेश के लोगों की मदद के लिए भारत की पूरी शक्ति झोंक दी. उन्होंने भारतीय सेना को आदेश दिया कि वे पाकिस्तानी सेना को तुरंत हराने के लिए कोई कसर न छोड़ें. भारतीय सेना के साथ-साथ भारतीय वायुसेना ने भी पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक हमले किए.

वायुसेना का अहम योगदान

अगर युद्ध की रणनीति और विजय की बात करें, तो भारतीय वायुसेना का योगदान बहुत महत्वपूर्ण था. भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के खिलाफ 2,400 से ज्यादा मिशन चलाए, जिनमें 2,000 से ज्यादा मिशन सिर्फ बांग्लादेश में थे. इन मिशनों ने पाकिस्तान की पूरी सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के हवाई ठिकानों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया, जिससे पाकिस्तान के पास अपनी हवाई ताकत का इस्तेमाल करने का कोई मौका नहीं बचा.

पाकिस्तानी सेना की ताकत को नष्ट करने में भारतीय वायुसेना का यह योगदान बेहद अहम था. और यह तथ्य खुद पाकिस्तान के जनरल एएके नियाजी ने भी स्वीकार किया. जब उनसे पूछा गया कि पाकिस्तान की इतनी बड़ी सेना के बावजूद उन्होंने आत्मसमर्पण क्यों किया, तो उन्होंने सीधे तौर पर भारतीय वायुसेना का नाम लिया. उन्होंने कहा, “इंडियन एयरफोर्स के कारण.” यह वाक्य युद्ध की सच्चाई को साफ़ तौर पर बयान करता है.

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नियाजी का आत्मसमर्पण

अब बात करते हैं उस ऐतिहासिक पल की जब पाकिस्तान के जनरल एएके नियाजी ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया. यह दृश्य सिर्फ भारतीय सेना के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक बड़ा संदेश था. 16 दिसंबर 1971 की शाम को पाकिस्तान के जनरल एएके नियाजी ने भारतीय सेना के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने समर्पण कर दिया. नियाजी ने अपनी रिवॉल्वर लेफ्टिनेंट जनरल अरोड़ा को सौंपी और अपनी हार को स्वीकार किया.

इस घटना ने बांग्लादेश के लोगों को भी गहरी संतुष्टि दी. वहां की जनता जो पाकिस्तान के अत्याचारों से परेशान थी, वह इस पल को उत्सव के रूप में देख रही थी. हालांकि, यह भी सच था कि बांग्लादेश की जनता की गुस्साई भीड़ जनरल नियाजी को मौत के घाट उतारने के लिए तैयार थी, लेकिन भारतीय सेना ने यह सुनिश्चित किया कि वह सुरक्षित रहे.

इंदिरा गांधी की कूटनीति

इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने केवल युद्ध नहीं लड़ा, बल्कि इस युद्ध को एक कूटनीतिक जीत भी बनाया. इंदिरा गांधी ने दुनिया के नेताओं के सामने बांग्लादेश में हो रहे नरसंहार को उजागर किया और पूरी दुनिया को पाकिस्तान के अत्याचारों के बारे में बताया. उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, और जर्मनी जैसे देशों से पाकिस्तान के खिलाफ समर्थन जुटाया और पाकिस्तान की नीतियों का कड़ा विरोध किया.

इसके साथ ही, इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को पूरी ताकत से लड़ने के लिए प्रेरित किया और एक ऐसी रणनीति बनाई, जिसने पाकिस्तान की सेना को धराशायी कर दिया. भारत के राष्ट्रपति से लेकर संसद तक, सभी ने युद्ध के बाद इंदिरा गांधी की सराहना की. युद्ध जीतने के बाद भारतीय संसद में जब इंदिरा गांधी ने कदम रखा, तो सांसदों ने उन्हें खड़े होकर सलाम किया और तालियों से उनका स्वागत किया.

लोगों की अलग-अलग राय

हालांकि, कुछ लोग बांग्लादेश के गठन को लेकर अलग राय रखते हैं. पत्रकार और लेखिका मधु किश्वर ने एक बार कहा था कि भारत ने बांग्लादेश के निर्माण के बाद पाकिस्तान को एक आर्थिक और सैन्य बोझ से मुक्त कर दिया. उनका कहना था कि अगर भारत ने बांग्लादेश के संघर्ष में हस्तक्षेप न किया होता, तो बांग्लादेशी लोग खुद पाकिस्तान के खिलाफ लंबा संघर्ष जारी रखते. इस संघर्ष से पाकिस्तान कमजोर होता और अंततः उसे भारत पर हमला करने के लिए कोई ताकत नहीं मिलती. यह विचार विवादास्पद था.

16 दिसंबर 1971 का दिन भारतीय इतिहास में हमेशा के लिए अमर रहेगा. यह दिन भारतीय सेना की वीरता, कूटनीति, और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है. भारत ने न केवल पाकिस्तान को हराया, बल्कि बांग्लादेश को उसकी स्वतंत्रता दिलवाने का ऐतिहासिक कार्य भी किया. इस विजय के साथ भारतीय सेना ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया और पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत अब सिर्फ एक उपमहाद्वीप में शक्तिशाली राष्ट्र नहीं है, बल्कि एक वैश्विक ताकत के रूप में स्थापित हो चुका है.

वह दिन हर भारतीय के दिल में गर्व की एक नई भावना पैदा करता है. भारतीय सेना के प्रत्येक जवान की वीरता और बलिदान की कहानियां आज भी हमारे दिलों में जीवित हैं. 16 दिसंबर 1971 ने भारत को न सिर्फ एक सैन्य महाशक्ति बनाया, बल्कि यह दर्शाया कि सही नेतृत्व, मजबूत कूटनीति और दृढ़ संकल्प से कोई भी कठिनाई पार की जा सकती है.

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