Vote for Note Case: क्या है ‘वोट फॉर नोट केस’ का 26 पुराना मामला? जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अपना ही फैसला

Vote for Note Case: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 'वोट फॉर नोट केस' मामले में अपना ही फैसला 26 सालों के बाद पलट दिया है.
Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट

Vote for Note Case: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ‘वोट फॉर नोट केस’ मामले में फैसला सुनाया है. अदालत ने इस मामले में 26 साल पुराने पीवी नरसिन्हा राव के फैसले को पलट दिया है. कोर्ट ने कहा कि जिसमें पैसे लेकर सदन में भाषण या वोट देने पर विधायक-सांसद के खिलाफ मुकदमा चलाया जाएगा, उन्हें कानूनी छूट नहीं मिलेगी. पीएम नरेंद्र मोदी ने भी कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट का एक महान निर्णय जो स्वच्छ राजनीति सुनिश्चित करेगा और सिस्टम में लोगों का विश्वास गहरा करेगा.’ लेकिन इसके बाद सवाल ये उठता है कि आखिर वो क्या मामला था जिसपर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है.

दरअसल, पूर्व पीएम राजीव गांधी की हत्या के बाद जब 1991 में चुनाव हुए तो कांग्रेस को सबसे ज्यादा 232 सीट आई थी. इसके बाद पीवी नरसिन्हा राव को प्रधानमंत्री बनाया गया. उनका कार्यकाल तमाम चुनौतियों से भरा रहा था. तब पहले आर्थिक संकट आय और फिर राम जन्मभूमि आंदोलन के कारण 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा दिया गया. इन दोनों मुद्दों को विपक्ष ने जोरशोर से उठाया और दो साल बार सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था.

क्या था मामला

इस अविश्वास प्रसाव में वोटिंग हुई तो ये प्रस्ताव गिर गया. तब अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में 265 वोट पड़े थे और पक्ष में 251 वोट पड़े थे. यानी ये प्रस्ताव 14 वोटों से गिरा और सरकार बच गई. लेकिन तीन साल बाद रिश्वत के आरोप लगे और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. इस मामले में मंडल, शिबू सोरेन, साइमन मरांडी और शल्लेंद्र महतो पर आरोप लगे. झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं पर लगे आरोपों के बाद सीबीआई जांच का हवाला दिया गया है.


कहा गया कि ये रिश्वत अवैध है क्योंकि वोट प्रस्ताव के खिलाफ में किया गया है. इन वोटों के कारण ही नरसिन्हा राव की सरकार बच गई. बाद में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने 3:2 फैसला सुनाया और कहा था कि जनप्रतिनिधियों पर मुकदमे नहीं चल सकते हैं. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने अपना फैसला बदल दिया है. कोर्ट ने कहा कि सांसद और विधायक सदन में मतदान के लिए रिश्वत लेकर मुकदमे की कार्रवाई से नहीं बच सकते हैं.

कोर्ट ने बदला अपनी ही फैसला

बाद में कोर्ट के फैसले की जानकारी देते हुए वकील अश्विनी उपाध्याय ने बताया, “आज सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की टीम ने ऐतिहासिक फैसला दिया है और इसमें अपने पुराने फैसले को भी ओवर रूल कर दिया है, इसमें कहा गया है कि अगर कोई भी विधायक-सांसद पैसे लेकर सवाल या फिर वोट करता है उसे किसी भी तरह की प्रतिरक्षा प्राप्त नहीं होगी. उसके खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा चलेगा.”

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बता दें बीते साल टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा पर एक आरोप लगा था. तब दावा किया गया था कि उन्होंने पैसा लेकर संसद में सवाल पूछा है. तब उनपर अपने दोस्त के साथ संसद की लॉगइन आईडी और पासवर्ड शेयर करने का भी आरोप लगा. बाद में इसकी जांच हुई और जांच में उन्हें दोषी पाया गया. जांच रिपोर्ट आने के बाद टीएमसी सांसद की सदस्यता रद्द कर दी गई थी.

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