क्या है ‘वन नेशन वन इलेक्शन’? जानें लागू होने के बाद क्या फायदे और क्या नुकसान

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा है कि समिति की रिपोर्ट मार्च तक आ जाएगी. फिलहाल इस संबंध में पैनल विभिन्न दलों के नेताओं के साथ बातचीत कर रहा है.
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प्रतीकात्मक तस्वीर PTI

One Nation One Election: एक बार फिर से ‘एक देश, एक चुनाव’ की चर्चा शुरू हो गई है. पिछले साल मोदी सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर अहम कदम उठाया था. सरकार ने इस संबंध में एक समिति का गठन किया था. इस समिति की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद कर रहे हैं. पिछले साल सितंबर में गठित उच्च स्तरीय समिति ने शनिवार को अब तक इस दिशा में हुई प्रगति की समीक्षा की. वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा है कि समिति की रिपोर्ट मार्च तक आ जाएगी. फिलहाल इस संबंध में पैनल विभिन्न दलों के नेताओं के साथ बातचीत कर रहा है.

दरअसल ‘एक देश, एक चुनाव’ की अवधारणा कई वर्षों से भारत में बहस और चर्चा का विषय रही है. इस प्रस्ताव का उद्देश्य लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ करना है, ताकि सरकार का पैसा और समय दोनों बचे. हालांकि, विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया है. वहीं प्रस्ताव के समर्थकों का तर्क है कि यह कदम चुनावी प्रक्रिया को व्यवस्थित कर सकता है, खर्चों को कम कर सकता है और बार-बार चुनावों के कारण होने वाली परेशानियों को कम कर सकता है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर यह ‘एक देश, एक चुनाव’ क्या है?

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‘एक देश, एक चुनाव’ क्या है?

बता दें कि ‘एक देश, एक चुनाव’ एक प्रस्ताव है जिसमें लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया गया है. इसका मतलब है कि चुनाव पूरे देश में एक ही चरण में होंगे. मौजूदा समय में हर पांच साल बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए हर 3 से 5 साल में चुनाव होते हैं. मतलब इसका उद्देश्य लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनावों को सिंक्रनाइज़ करना है. इन चुनावों को एक साथ, एक ही दिन या एक निश्चित समय सीमा के भीतर कराने का विचार है. पिछले कुछ वर्षों में पीएम मोदी ने एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों के विचार को से आगे बढ़ाया है.

हाल ही में  पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए. इन चुनावों से पहले भी एक देश एक चुनाव की चर्चा जोर शोर से हुई थी. अब लोकसभा चुनाव मई-जून 2024 में होने की संभावना है.तो एक बार फिर से इसकी चर्चा शुरू हो गई है. पूर्व राष्ट्रपति की समीक्षा बैठक और अमित शाह के बयान ने इसे और भी हवा दे दिया है.

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के फायदे

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ अगर देश में लागू हो जाता है तो इससे चुनावी लागत में कमी आ सकती है. अभी  प्रत्येक अलग-अलग चुनाव के लिए भारी मात्रा में वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है.

एक साथ चुनाव होने से प्रशासन और सुरक्षा बलों पर बोझ कम होगा, जो कई बार चुनाव कर्तव्यों में लगे होते हैं.

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ लागू होने के बाद सरकार चुनावी मोड में रहने के बजाय शासन पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकती है.

विधि आयोग के अनुसार, एक साथ चुनाव से मतदान प्रतिशत में वृद्धि होगी क्योंकि लोगों के लिए एक साथ कई मतपत्र डालना अधिक आसान होगा.

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‘एक देश, एक चुनाव’ की कमियां

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लागू करने के लिए संविधान और अन्य कानूनों में भी बदलाव की जरूरत होगी. एक राष्ट्र-एक चुनाव के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी और फिर इसे राज्य विधानसभाओं में ले जाना होगा.

इसके अलावा, चिंता यह भी है कि क्षेत्रीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों पर हावी हो सकते हैं, जिससे राज्य स्तर पर चुनावी नतीजे प्रभावित हो सकते हैं.

एक साथ चुनाव कराने के लिए राज्य विधानसभाओं की शर्तों को लोकसभा के साथ समन्वित करने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी. इसके अलावा, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के साथ-साथ अन्य संसदीय प्रक्रियाओं में भी संशोधन की आवश्यकता होगी.

एक साथ चुनाव को लेकर क्षेत्रीय दलों का बड़ा डर यह है कि वे अपने स्थानीय मुद्दों को मजबूती से नहीं उठा पाएंगे क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दे केंद्र में आ जाएंगे. वे चुनावी खर्च और चुनावी रणनीति के मामले में भी राष्ट्रीय पार्टियों से मुकाबला नहीं कर पाएंगे.

सभी राजनीतिक दलों के बीच सहमति एक बड़ी बाधा है साथ ही विपक्षी दलों ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का विरोध किया है.

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