क्या है ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’, जिसे खत्म करने की मांग कर रहे हैं BJP सांसद? ओवैसी करते रहे हैं इस अधिनियम की वकालत
Places Of Worship Act 1991: BJP के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह ने सोमवार को “पूजा स्थल अधिनियम, 1991” को निरस्त करने की मांग की है. राज्यसभा सांसद ने कहा कि कानून में प्रावधान है कि राम जन्मभूमि मामले को छोड़कर, धार्मिक स्थलों से संबंधित सभी मामले समाप्त माने जाएंगे और कानून का उल्लंघन करने वालों को 3 साल तक की सजा हो सकती है. उन्होंने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम कानूनी जांच पर रोक लगाता है और कानून के प्रावधान हिंदू, सिख और बौद्धों के अधिकारों के खिलाफ हैं. इसे निरस्त किया जाना चाहिए.
दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष इस कानून के समर्थन में है. AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी कई बार इस कानून के बचाव की मांग कर चुके हैं. ओवैसी ने एक बार कहा था कि जिस दिन प्रधानमंत्री कहेंगे कि वह पूजा स्थल अधिनियम 1991 के साथ खड़े हैं, कोई और मुद्दा नहीं होगा. जब पीएम कहेंगे कि सभी पूजा स्थल उन लोगों के होंगे जिनके अधिकार में वे 15 अगस्त तक थे , इसमें कोई बदलाव नहीं होगा, तो आगे कोई मुद्दा नहीं उठेगा. वह ऐसा क्यों नहीं कह रहे हैं? अब जब एक बार फिर से प्लेसज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को खत्म करने की मांग की जा रही है तो ऐसे में आइये जान लेते हैं कि यह पूजा अधिनियम क्या है?
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क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट?
बता दें कि ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट’ यानी पूजा स्थल कानून साल 1991 में बना था. तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और पी वी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे. इस कानून के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 से पहले भारत में जिस भी धर्म का जो पूजा स्थल था, उसे किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में बदला नहीं जा सकता. अगर कोई ऐसा करने का प्रयास करता है, तो उसे 3 साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है.
90 के दशक में लाए गए इस कानून का उद्देश्य था राम मंदिर आंदोलन को कमजोर करना. दरअसल, लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने राम मंदिर आंदोलन तेज कर दी थी. अयोध्या के अलावा वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही मस्जिद पर भी हिंदू पक्ष अपना दावा जता रहे थे. देश में सांप्रदायिक सद्भाव खराब न हो, इसलिए यह कानून बना दिया गया.
कानून का उद्देश्य
इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य मथुरा और काशी सहित धार्मिक स्थलों के स्वामित्व को लेकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कानूनी विवादों को रोकना था. अयोध्या में राम मंदिर की प्रगति को रोकने के लिए कानून का दुरुपयोग भी किया गया. कानून में कहा गया है कि पूजा स्थल की धार्मिक पहचान 15 अगस्त, 1947 को जो थी, उसमें कोई बदलाव नहीं होना चाहिए. यह व्यक्तियों को एक धार्मिक संप्रदाय से संबंधित पूजा स्थल को दूसरे में परिवर्तित करने से रोकता है. कानून में यह भी कहा गया है कि पूजा स्थल के चरित्र में परिवर्तन से संबंधित सभी चल रही कानूनी कार्यवाही, जो 15 अगस्त, 1947 को किसी भी अदालत के समक्ष लंबित थी, कानून प्रभावी होने पर बंद हो जाएगी और कोई नई कानूनी कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकती है. हालांकि, इस नियम के कुछ अपवाद हैं. 1991 का अधिनियम प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों अवशेष अधिनियम, 1958 के अंतर्गत आने वाले अवशेषों पर लागू नहीं होता है. इसमें उन मुकदमों को भी शामिल नहीं किया गया है जिनका निर्णायक रूप से निपटारा हो चुका है.