Kamal Nath: ’इंदिरा गांधी के दो हाथ, संजय गांधी और कमलनाथ’, दोस्त संजय के लिए जज से बदतमीजी की और गए जेल, ऐसे बने थे ‘आयरन लेडी’ के ‘तीसरे बेटे’
Kamal Nath: कांग्रेस के दिग्गज नेता और गांधी परिवार के पीढ़ियों के साथी कमलनाथ की रुसवाई की चर्चा चारों तरफ है. छिंदवाड़ा के राजनीतिक सम्राट की कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल होने की अटकलें अब मूर्त रूप लेती दिखाई दे रही हैं. लेकिन, इन अटकलों से अधिकांश लोग हैरान हैं क्योंकि गांधी परिवार पर लिखी गई शायद ही कोई किताब होगी जिसमें उनकी वफ़ादारी और नज़दीकियों की चर्चा न रही हो. 70 से लेकर 80 के दशक में गांधी परिवार के बाद कांग्रेस में अगर किसी युवा नेता की तूती बोलती थी तो वह कमलनाथ ही थे. इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक वक़्त में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने नारा दिया था. “इंदिरा गांधी के दो हाथ, संजय गांधी और कमलनाथ”.
यह नारा 1980 के लोकसभा चुनाव में खूब हिट हुआ. तब कमलनाथ अपने दोस्त संजय गांधी के कहने पर चुनावी राजनीति में उतरे थे और मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से उन्होंने बतौर कांग्रेस प्रत्याशी ताल ठोकी थी. अपने तमाम व्यस्त कार्यक्रमों के बावजूद इंदिरा गांधी ख़ुद छिंदवाड़ा पहुंची और एक जनसभा को संबोधित करते हुए कमलनाथ को अपना ‘तीसरा बेटा’बताया. इंदिरा गांधी ने कहा था, “मैं नहीं चाहती कि आप लोग कांग्रेस नेता कमलनाथ को वोट दें, बल्कि मैं चाहती हूं कि आप मेरे तीसरे बेटे कमलनाथ को वोट करें.”
संजय गांधी संग जेल में रहने के लिए जज पर फेंका था काग़ज का गोला
कमलनाथ की संजय गांधी के साथ दोस्ती स्कूल के दिनों की थी. दोनों देहरादून के दून स्कूल में पढ़ते थे. यहीं से दोनों की यारी परवान चढ़नी शुरू हुई. आज भी कमलनाथ के छिंदवाड़ा स्थित दफ़्तर में संजय गांधी की तस्वीरों की भरमार है और आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि दोनों का एक दूसरे पर किस हद तक विश्वास था. स्कूल की पढ़ाई ख़त्म होने के बाद संजय गांधी के कहने पर कमलनाथ यूथ कांग्रेस का हिस्सा बन गए. तब जहां संजय वहां कमलनाथ अक्सर दिखाई देते थे. हालांकि, कुछ वक़्त बाद कमलनाथ कोलकाता अपनी कॉलेज की पढ़ाई के लिए चले गए. हालाँकि, बाद में आपातकाल के दौरान वह अक्सर संजय के साथ ही देखे जाते. कई अहम फ़ैसलों में जो आज भी विवादित तौर पर देखी जाती हैं, उनमें कमलनाथ की भूमिका रही है. जिनमें से पंजाब इंसरजेंसी को लेकर कई लेखकों ने अपनी किताब में संजय के साथ-साथ कमलनाथ को भी कटघरे में खड़ा किया.
हालांकि, आपातकाल के बाद 1977 कांग्रेस लोकसभा चुनाव हार गई और 1979 में जनता पार्टी की सरकार बनी. इसके बाद 1979 में संजय गांधी को तिहाड़ जेल जाना पड़ा. तब संजय की सुरक्षा को लेकर कांग्रेस और गांधी परिवार में काफ़ी डर था. इसी दौरान अपने दोस्ते के लिए कमलनाथ कोर्ट पहुंच गए. कहा जाता है कि तब उन्होंने जानबूझकर जज से लड़ाई मोल ले ली. उन्होंने जज के ऊपर कागज का गोला बना कर फेंका. जज ने उन्हें इस मामले में कोर्ट की अवमानना के चलते 7 दिन के लिए तिहाड़ जेल भेज दिया, जहां वे इस दौरान संजय के साथ रहे.
यही घटना कमलनाथ के राजनीतिक ताक़त को और ज़्यादा पुख़्ता करने वाली थी. इसके बाद से ही कमलनाथ इंदिरा गांधी के गुडबुक्स में सबसे ऊपर आ गए थे. यहीं से उनका 1980 लोकसभा चुनाव लड़ने और राजनीतिक हैसियत में इज़ाफ़े का सफ़र शुरू हुआ. आदिवासी बहुल छिंदवाड़ा का उन्होंने बतौर सांसद रहते हुए काफ़ी विकास कराया और लगातार 9 सांसद चुनकर संसद भवन पहुंचे.
अपनों ने लूटा, ग़ैरों में कहां दम था!
90 के दशक में गांधी परिवार की कांग्रेस पर पकड़ ढिली पड़ चुकी थी और यही हाल कमलनाथ का भी राष्ट्रीय राजनीति में देखने को मिल रहा था. 1993 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर कमलनाथ सबसे योग्य व्यकित माने जा रहे थे. बताया जा रहा था कि सब कुछ कमलनाथ के हक़ में सेट था. मगर कहा जाता है कि ऐन मौक़े पर कांग्रेस के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह ने सीएम पद के लिए दिग्विजय सिंह का नाम आगे बढ़ा दिया. ऐसे में कमलनाथ सीएम बनते-बनते रह गए थे. इसके बाद 1996 में इनके ऊपर हवालाकांड के आरोप भी लगे और उन्हें अपने सांसद पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा. 1997 में फिर लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन बीजेपी के प्रत्याशी सुंदरलाल पटवा ने हरा दिया. कमलनाथ के चुनावी इतिहास में यह एक मात्र चुनाव रहा, जिसमें उन्हें शिकस्त मिली.
हालांकि, नरसिम्हा राव सरकार से लेकर मनमोहन सरकार में उन्होंने कई बड़े मंत्रालयों का पदभार भी संभाला. नरसिम्हा राव की सरकार में वन एवं पर्यावरण और कपड़ा मंत्री रहे. जबकि, मनमोहन सरकार में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, सड़क एवं परिवहन मंत्री, शहरी एवं विकास मंत्री तथा संसदीय कार्यमंत्री भी रहे.
कांग्रेस क्यों छोड़ रहे गांधी परिवार के वफ़ादार
पिछले कुछ सालों की बात करें तो मोदी सरकार के कार्यकाल में कई ऐसे नेताओं ने कांग्रेस का दामन छोड़, जिन्हें गांधी परिवार का विश्वासपात्र कहा जाता था. इसमें सबसे अहम नाम मध्य प्रदेश के ही नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का आता है. सिंधिया टीम राहुल के युवा नवरत्नों में से एक थे. यूपीए की सरकार में कई अहम पदों पर रहे. उनके अलावा गुलाम नबी आज़ाद, कपिल सिब्बल, आरपीएन सिंह जैसे नेताओं ने भी पार्टी से तौबा कर लिया.
कमलनाथ के विवाद बनाम BJP का एजेंडा
हर नेता का अपनी पार्टी या व्यक्तिगत राजनीतिक के मद्देनज़र कुछ ऐसे फ़ैसले और बयान होते हैं, जो समय-दर-समय अपने होने का एहसास दिलाते रहते हैं. ज़ाहिर है उनको हवा देने में विरोधी ख़ेमे का अहम रोल होता है. ऐसे ही कमलनाथ के संदर्भ में भी कई ऐसे विवाद हैं जिनसे अगर बीजेपी उन्हें अपने दल में शामिल करती है, तो उसे भी दो-चार होने पड़ेंगे. पहला मसला पंजाब में उग्रवाद और कमलनाथ के तत्कालीन भूमिका की है. भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ के पूर्व अधिकारी जीबीएस सिद्धू ने अपनी किताब “द खालिस्तान कॉन्सपीरेसी’ ( The Khalistan Conspiracy) में संजय गांधी, कमलनाथ और अरुण नेहरू की तिकड़ी का जिक्र किया है. उन्होंने बताया है कि अकाली दल को काउंटर करने के लिए जरनैल सिंह भिंडरावाले को कांग्रेस ने प्रमोट किया और इस फैसले में संजय के साथ कमलनाथ और अरुण नेहरू की अहम भूमिका रही थी.
वहीं, दूसरा विवाद दिल्ली सिख विरोधी दंगे से जुड़ा है. हालांकि, उनके ऊपर कांग्रेस से जुड़े आरोपी जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार जैसे आरोप तो नहीं लगे. लेकिन रकाबगंज गुरुद्वारे के बाहर हुई हिंसा में उनका नाम आता रहा है. मनोज मित्ता अपनी किताब ‘वेन ए ट्री शुक डेल्ही’ में इस घटना का ज़िक्र करते हुए बताते हैं, “संसद भवन की सड़क के दूसरी तरफ़ होने के बावजूद भी रक़ाबगंज गुरुद्वारे को भीड़ लंबे समय तक घेरे रही और उसकी चारदीवारी को नुक़सान पहुंचाई गई और वहां दो सिखों को ज़िंदा जला दिया गया. रक़ाबगंज पर हुआ हमला इस मायने में भी असाधारण है क्योंकि ये शायद पहली बार था और बड़े पैमाने पर हुई हिंसा के इतिहास में शायद इकलौता ऐसा वाकया था, जिसमें एक राजनेता ने घटनास्थल पर मौजूद होने की बात क़बूल की थी. विडंबना ये है कि इस तरह की घटना भारतीय संसद के पास के इलाक़े में हुई.” इस किताब में लिखा गया है कि घटनास्थल पर कमलनाथ दो घंटे से अधिक वक़्त तक मौजूद रहे थे.
अब बीजेपी के लिए मसला ये है कि उसके नेता अक्सर कांग्रेस पर सिख विरोधी दंगे को लेकर कांग्रेस को घेरती रही है. पंजाब में जरनैल सिंह भिंडरावाले और वहां पनपे आतंकवाद के लिए भी कांग्रेस और इसके नेताओं को ज़िम्मेदार ठहराती रही है. अब वही बीजेपी कैसे इन मुद्दों को कमलनाथ की मौजूदगी में अड्रेस करेगी. हालांकि, देश में हाल के दिनों में ऐसी राजनीतिक घटनाएं पेश आई हैं, जिन्हें देखने के बाद कमलनाथ का बीजेपी में शामिल होना और वहां से नई राजनीति की शुरुआत कोई ख़ास मायने नहीं रखती.