जब 49 दिन में ही केजरीवाल ने छोड़ी CM की कुर्सी, विपक्ष को चौंकाने की पुरानी आदत, इस बार एक तीर से दो निशाने
Delhi Politics: दिल्ली की राजनीति में अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर से सबको चौंका दिया है. रविवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री ने अचानक अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी, जिसके बाद दिल्ली की राजनीति में नई हलचल मच गई है. केजरीवाल ने स्पष्ट किया कि वह दो दिन के भीतर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे और तब तक इस पद पर नहीं बैठेंगे जब तक जनता का फैसला नहीं आ जाता. इस अचानक लिए गए फैसले ने दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य को एक नया मोड़ दे दिया है, खासकर जब दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखें नजदीक आ रही हैं.
2014 का चौंकाने वाला फैसला
यह पहली बार नहीं है कि अरविंद केजरीवाल ने अपने फैसले से राजनीतिक हलकों में हलचल मचाई हो. 2014 में जब आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण जीत हासिल की थी, तब भी केजरीवाल ने सबको चौंका दिया था. दिसंबर 2013 में हुए चुनावों के बाद केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाई थी. हालांकि, सिर्फ 49 दिन के भीतर ही केजरीवाल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. उनका कहना था कि ‘जनलोकपाल बिल’ को पास कराने में असफल रहने के कारण उन्होंने यह निर्णय लिया. उनके इस्तीफे के बाद, दिल्ली में फिर से चुनाव हुए और आम आदमी पार्टी ने अकेले बहुमत प्राप्त किया, जिससे केजरीवाल फिर से मुख्यमंत्री बने.
नया ऐलान और राजनीतिक मंथन
अब, 2024 में केजरीवाल ने एक बार फिर से राजनीति को एक नई दिशा दी है. उन्होंने अपने इस्तीफे की घोषणा करते हुए कहा कि वह दिल्ली में तुरंत चुनाव कराना चाहते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री के पद पर वह और मनीष सिसोदिया दोनों नहीं रहेंगे. इसके बजाय, विधायक दल की बैठक में नए मुख्यमंत्री का चयन किया जाएगा.
यह भी पढ़ें: न केजरीवाल, न सिसोदिया, फिर दिल्ली का अगला सीएम कौन? ये हैं 5 दावेदार!
चुनाव की मांग और बीजेपी पर हमला
केजरीवाल ने इस अवसर पर दिल्ली के नागरिकों से अपील की है कि अगर उन्हें लगता है कि केजरीवाल ईमानदार हैं, तो वे उनके पक्ष में वोट दें. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि चुनाव नवंबर में महाराष्ट्र के साथ कराए जाएं, ताकि चुनावी प्रक्रिया को तेजी से पूरा किया जा सके. मनीष सिसोदिया ने भी अपनी तरफ से यह स्पष्ट किया है कि वह उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री के पद पर तभी रहेंगे जब जनता की अदालत से पुनः चुने जाएंगे.
इसके साथ ही, केजरीवाल ने बीजेपी को भी निशाने पर लिया. उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा लगातार षड्यंत्र कर रही है और उनकी सरकार को गिराने की कोशिश कर रही है. केजरीवाल ने कहा कि भाजपा के आगे उनकी पार्टी न तो झुकेगी, न रुकेगी, और न ही बिकेगी. भाजपा उनकी ईमानदारी से डरती है, क्योंकि भाजपा खुद ईमानदार नहीं है.
अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे की रणनीति
राजनीति को समझने और समझाने वाले लोगों की मानें तो केजरीवाल का यह फैसला सिर्फ एक तात्कालिक निर्णय नहीं है, बल्कि इसमें एक गहरी रणनीति छुपी हुई है. उनके राजनीतिक कदमों की इस बार की योजना को समझने के लिए उनके पूर्व के फैसलों और राजनीतिक दृष्टिकोण पर ध्यान देना आवश्यक है.
शॉक वैल्यू की राजनीति
राजनीतिक पंडित कहते हैं, “केजरीवाल की राजनीति में हमेशा ‘शॉक वैल्यू’ का महत्वपूर्ण स्थान रहा है. वे समय-समय पर ऐसे फैसले लेते रहे हैं जो लोगों को चौंका दें और मीडिया की सुर्खियों में आ जाएं. पहले उन्होंने इस्तीफा न देकर अपने समर्थकों और विपक्ष दोनों को हैरान किया, और अब इस्तीफे की घोषणा करके भी वही प्रभाव पैदा किया है. इस बार, केजरीवाल का यह कदम यह दर्शाता है कि वे अपने निर्णयों से राजनीतिक चर्चा को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं.
एक तीर से दो निशाने
राजनीति के जानकारों की माने तो केजरीवाल का इस्तीफा एक साथ दो उद्देश्यों को साधने का प्रयास प्रतीत होता है. सबसे पहले, यह उन विरोधियों को जवाब देने का तरीका है जिन्होंने लगातार उनके इस्तीफे की मांग की है. इस कदम के माध्यम से केजरीवाल यह दिखाना चाहते हैं कि वे जनता की आवाज को महत्व देते हैं और किसी भी दबाव में आकर निर्णय नहीं लेते.
दूसरे, यह कदम उनकी लोकप्रियता को बनाए रखने और उसे भुनाने का भी प्रयास हो सकता है. केजरीवाल का यह फैसला यह संकेत देता है कि दिल्ली की राजनीति में उनकी स्वीकार्यता अभी भी बनी हुई है. उनका यह कदम उनके समर्थकों को यह विश्वास दिलाने का एक तरीका हो सकता है कि वे अपनी राजनीतिक जमीन पर अभी भी मजबूती से खड़े हैं.
सुप्रीम कोर्ट से जमानत और राजनीतिक रणनीति
अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल चुकी है, लेकिन इस जमानत का राजनीतिक दृष्टिकोण से कोई खास महत्व नहीं रह गया था. इस स्थिति में, केजरीवाल ने इस्तीफे का यह पैंतरा अपनाया है. यह रणनीति न केवल उन्हें तत्काल की राजनीतिक चुनौतियों से निपटने में मदद करेगी, बल्कि यह उनके विरोधियों और समर्थकों दोनों के लिए एक संदेश भी होगी. अतः, केजरीवाल का यह इस्तीफा केवल एक औपचारिक कदम नहीं है, बल्कि यह उनकी व्यापक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है.
आगामी चुनाव और दिल्ली की राजनीति
अरविंद केजरीवाल का यह अचानक लिया गया निर्णय दिल्ली की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है. आगामी चुनावों के मद्देनजर, उनके इस फैसले से चुनावी रणनीतियों में बदलाव आ सकता है और राजनीतिक दलों के बीच नई जोड़-तोड़ की संभावना बढ़ सकती है. अब यह देखना होगा कि दिल्ली के नागरिक इस बदलते राजनीतिक परिदृश्य में कैसे प्रतिक्रिया देते हैं और आगामी चुनाव में कौन सी राजनीतिक धारा बहती है.