कौन थे महाराजा रणजीत सिंह, जिनका सोने का सिंहासन लंदन से वापस लाने की मांग कर रहे हैं राघव चड्ढा?

रणजीत सिंह का जन्म का नाम बुद्ध सिंह था. वे शिक्षित नहीं थे, लेकिन उन्होंने मार्शल आर्ट, घुड़सवारी और आग्नेयास्त्रों का प्रशिक्षण लिया था. महज 10 साल की उम्र में उन्होंने शानदार युद्ध कौशल दिखाया और एक सरदार पीर मुहम्मद पर जीत हासिल की.
Maharaja Ranjit Singh

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Who is Maharaja Ranjit Singh:  आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने संसद में महाराजा रणजीत सिंह की राजगद्दी वापस लाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि यह मुद्दा पंजाब के लोगों की भावनाओं से जुड़ा है. राज्यसभा में अपने संबोधन के दौरान राघव चड्ढा ने कहा कि मैं सौभाग्यशाली हूं कि मैं पंजाब से आता हूं जहां कभी शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी का शासन था. महाराजा रणजीत सिंह का शासन सही मायनों में सुशासन था जहां सभी को न्याय मिलता था. वह ऐसे महान योद्धा थे जिनके नाम से बड़े-बड़े योद्धा भी कांप उठते थे.

शेर की तरह दहाड़ते थे महाराजा रणजीत सिंह: राघव चड्ढा

राघव चड्ढा ने कहा कि महाराजा रणजीत सिंह युद्ध के मैदान में शेर की तरह दहाड़ते थे. उन्होंने पूरी दुनिया को न केवल वीरता बल्कि मानवता का संदेश दिया. उनके शासन में जाति और धर्म के नाम पर कोई भेदभाव नहीं था. बीबीसी वर्ल्ड हिस्ट्री के एक सर्वे ने महाराजा रणजीत सिंह को ‘सर्वकालिक महानतम नेता’ का खिताब दिया है. मैं ऐसे महात्मा को इस सदन में नमन करता हूं और उनकी गद्दी वापस लाने की अपील करता हूं.

आप के सांसद ने कहा कि महाराजा रणजीत सिंह के जीवन से हम सभी को प्रेरणा और सीख मिलती है. इसलिए उनका सिंहासन देश में वापस आना चाहिए और सभी को इसे देखने का मौका मिलना चाहिए. साथ ही उनकी वीरता, मानवता और राज्य नीति को किताबों में बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए ताकि आज की राजनीति के युग में सुशासन का सही अर्थ पता चल सके. उन्होंने कहा कि महाराजा रणजीत सिंह का शाही स्वर्ण सिंहासन लंदन के विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम में रखा हुआ है. भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय संबंधों के माध्यम से ब्रिटिश सरकार से बात करनी चाहिए और उनके सिंहासन को वापस लाने का प्रयास करना चाहिए.

कौन थे महाराजा रणजीत सिंह?

13 नवंबर 1780 को सिख साम्राज्य के संस्थापक महाराजा रणजीत सिंह का जन्म गुजरांवाला में हुआ था. अभी यह इलाका पाकिस्तान में है. उन्हें ‘शेर-ए-पंजाब’ भी कहा जाता था. रणजीत सिंह के माता-पिता महान सिंह सुकरचकिया और राज कौर थे. महान सिंह सुकरचकिया मिसल एस्टेट के प्रमुख थे. उस समय पंजाब मिसल यानी संघों में विभाजित था. 12 मिसल अलग-अलग सिख शासकों के नियंत्रण में थे. एक मुस्लिम प्रमुख के नियंत्रण में था और दूसरी पर एक अंग्रेज का शासन था.

रणजीत सिंह का जन्म का नाम बुद्ध सिंह था. वे शिक्षित नहीं थे, लेकिन उन्होंने मार्शल आर्ट, घुड़सवारी और आग्नेयास्त्रों का प्रशिक्षण लिया था. महज 10 साल की उम्र में उन्होंने शानदार युद्ध कौशल दिखाया और एक सरदार पीर मुहम्मद पर जीत हासिल की. इसके बाद उनके पिता ने उनका नाम रंजीत रख दिया. 12 साल की उम्र में अपने पिता की मृत्यु के बाद वे सुकरचकिया मिसल के शासक बन गए. एक साल बाद वे एक हत्या के प्रयास में बच गए और उन्होंने अपने हमलावर हशमत खान को भी मार डाला.

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सिख साम्राज्य के महाराजा बने रंजीत

रणजीत सिंह पश्चिम से आए मुस्लिम आक्रमणकारियों के लिए ‘काल’ थे. उन्हें प्रसिद्धि और पहचान तब मिली जब उन्होंने अफ़गान शासक शाह ज़मान की सेना को हराया. उस वक्त शाह जमान पंजाब पर कब्जा करने आया था. उन्होंने अपने आस-पास के राज्यों को मिलाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया. सिख साम्राज्य 1799 से 1849 तक अस्तित्व में रहा. साम्राज्य के चरम पर, यह पश्चिम में खैबर दर्रे से लेकर पूर्व में पश्चिमी तिब्बत तक और उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में मिथनकोट तक फैला हुआ था.

कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह ने सभी सिख मिसलों को एकजुट किया. रणजीत सिंह के साम्राज्य के प्रमुख शहर लाहौर, अमृतसर, मुल्तान, पेशावर, जम्मू, श्रीनगर, रावलपिंडी और सियालकोट थे. साल 1801 में उन्हें पंजाब का महाराजा घोषित किया गया. तब रणजीत सिंह की सेना को खालसा सेना के रूप में जाना जाता था. इतिहासकारों की मानें तो रणजीत सिंह ने धीरे-धीरे पंजाब में अपनी सेना का आधुनिकीकरण भी किया. उन्होंने अपने पैदल सेना और तोपखाने को भी मजबूत किया. वे युद्ध के नए उपकरण भी लाए. कई कारखाने लगाए.

रणजीत सिंह के नेतृत्व में सिख एक मजबूत और एकजुट राजनीतिक इकाई के रूप में उभरे. 27 जून 1839 को 58 वर्ष की आयु में लाहौर में उनकी मृत्यु हो गई. उनकी समाधि लाहौर, पाकिस्तान में है. उन्होंने कई शादियां कीं और उनके कई बच्चे हुए. उनके बाद उनके बेटे खड़क सिंह ने गद्दी संभाली. पंजाब की सियासत में महाराजा रणजीत सिंह की एक अलग जगह है. सालों से पंजाब के लोग अपने महाराजा की निशानी सिंहासन को वापस लाने की मांग कर रहे हैं. इससे पहले भी पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान यह मांग उठी थी.

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सिंहासन में क्या है खास?

बताते चलें कि विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय के मुताबिक सुनार हाफ़िज़ मुहम्मद मुल्तानी ने महाराजा रणजीत सिंह के लिए यह सिंहासन बनाया था, ऐसा माना जाता है कि इसे 1805 और 1810 के बीच बनाया गया था. इस सिंहासन की बनावट से ही महाराजा के दरबार की भव्यता का अंदाजा हो जाता है. यह सिंहासन मोटी चादर के सोने से ढका हुआ है, जिसे कई बेशकीमती चीजों से सजाया गया है. इसका खास नुकीला बेस कमल की पंखुड़ियों के दो स्तरों से बना है.

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