बेटी का करियर या फिर केंद्र सरकार का ‘डर’…क्यों जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं महबूबा मुफ्ती?
Jammu Kashmir Election: पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने बुधवार को कहा कि वह जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी. उन्होंने इस फैसले के पीछे कारण यह बताया कि अगर वह मुख्यमंत्री बन भी जाती हैं, तो वह केंद्र शासित प्रदेश में अपनी पार्टी के एजेंडे को पूरा नहीं कर पाएंगी. मुफ्ती की पार्टी ने 17 सीटों के लिए उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की है, जबकि इससे पहले 22 अगस्त को आठ उम्मीदवारों की सूची जारी की गई थी. इस सूची में मुफ्ती की बेटी इल्तिजा का नाम भी शामिल था. दूसरी सूची जारी होने के कुछ देर बाद ही महबूबा ने विधानसभा चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया. महबूबा ने इस साल अनंतनाग सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गई थीं.
मुफ्ती और उमर दोनों ने कहा था कि नहीं लड़ेंगे चुनाव
गौरतलब है कि मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला दोनों ने ही पहले कहा था कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे. दरअसल, अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद जब से जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बना है. तब से महबूबा मुफ्ती कहती आ रही हैं कि वे चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगी. जबकि उमर ने भी कहा था कि जब तक जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश रहेगा, वे विधानसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में मुफ्ती ने अपनी परंपरागत अनंतनाग सीट से चुनाव लड़ा था, जिसमें वे हार गई थीं. उमर अब्दुल्ला के चुनाव न लड़ने के पहले के फैसले के बावजूद, उनका नाम 27 अगस्त को नेशनल कॉन्फ्रेंस की सूची में शामिल किया गया. उमर गंदेरबल से चुनाव लड़ेंगे, जहां से उन्होंने 2008 में जीत दर्ज की थी.
क्या मुफ्ती के लिए चुनाव न लड़ना जल्दबाजी होगी?
महबूबा मुफ्ती 1996 में बिजबेहरा से विधायक के रूप में अपनी राजनीतिक शुरुआत करने के बाद 2016 में जम्मू-कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. इस बार उनकी बेटी इल्तिजा मुफ्ती इस सीट से चुनाव लड़ रही हैं. कई राजनीतिक पंडितों को ऐसे महत्वपूर्ण मोड़ पर उनके सक्रीय राजनीति से पीछे हटने के फैसले पर संदेह है. जबकि उसी समय उमर ने चुनाव न लड़ने के अपने पिछले फैसले पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है.
राजनीति के जानकारों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार मुफ्ती का चुनाव न लड़ने का फैसला उनकी पार्टी के लिए मनोबल गिराने वाला है, क्योंकि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं. मुफ्ती के लिए यह सही समय है कि वह अपनी पार्टी को ऐसी स्थिति में ले जाएं, जहां चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद वह खुद फैसले ले सकें. पहले से ही दो पूर्व मुख्यमंत्री चुनावी मैदान से दूर हैं, जिनमें तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके फारूक अब्दुल्ला और गुलाम नबी आजाद शामिल हैं और अब अगर मुफ्ती भी चुनाव नहीं लड़ती हैं, तो जम्मू-कश्मीर एक बड़ी महिला नेता के नेतृत्व से वंचित हो जाएगा.
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मुफ्ती क्यों नहीं लड़ रही हैं चुनाव?
महबूबा मुफ्ती यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही हैं कि उनकी बेटी इल्तिजा राजनीति में आएं और उनकी राजनीतिक उत्तराधिकारी बनें. उन्हें अच्छी तरह पता है कि लोकसभा चुनाव हारने से उनकी छवि को नुकसान पहुंचा है और अगर वह विधानसभा चुनाव लड़ती हैं और हार जाती हैं, तो इससे उनकी बेटी का भविष्य खराब हो सकता है. इसके अलावा, मुफ्ती इस बात से भी चिंतित हैं कि पीडीपी के मुख्य प्रवक्ता सुहैल बुखारी ने पार्टी छोड़ दी है.
उन्हें चुनाव लड़ने का जनादेश नहीं दिया गया था. वे वागूरा-क्रीरी से टिकट मांग रहे थे लेकिन पिछले महीने पूर्व मंत्री बशारत बुखारी के पीडीपी में वापस आने से उनके टिकट मिलने की संभावना कम हो गई. इस प्रकार, मुफ्ती चुनाव न लड़ने का फैसला करके अपने घर को व्यवस्थित करना चाहती हैं. इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर में बदले हालात के साथ, मुफ्ती को यह भी एहसास है कि केंद्र की मौजूदा सरकार के तहत उन्हें अपने एजेंडे पर चलने के लिए पूरी छूट दी जाएगी.