क्या बन पाएगी ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ की कल्पना हकीकत? जानें इसके फायदे और नुकसान
One Nation One Election: कल्पना कीजिए कि एक ऐसा दिन आए जब पूरे भारत में एक साथ चुनाव हों. लोकसभा, राज्य विधानसभाएं, और स्थानीय निकायों के चुनाव सब एक ही दिन, एक ही समय पर, एक ही साथ आयोजित हों. यह कोई सिनेमा की स्क्रिप्ट नहीं, बल्कि अब भारतीय राजनीति में एक नई परिकल्पना के रूप में सामने आ रही है. पीएम मोदी की अगुवाई में एनडीए सरकार अब इस कल्पना को हकीकत में बदलने की दिशा में कदम बढ़ा रही है.
जब मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल के सौ दिन पूरे किए हैं, तो एक बार फिर से ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का प्रस्ताव चर्चा में आ गया है. इस प्रस्ताव के तहत, केंद्र सरकार संसद में एक विधेयक लाने की तैयारी कर रही है, जिसे पास कराके देशभर के चुनावों को एक ही समय पर आयोजित किया जा सकेगा. यह योजना राजनीति के खेल को एक नई दिशा दे सकती है और देश के चुनावी परिदृश्य को पूरी तरह से बदल सकती है.
चुनावों की बार-बार की प्रक्रिया से राहत पाने के लिए और सरकारों को विकास कार्यों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए मोदी सरकार का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने से विकास की गति में कोई बाधा नहीं आएगी और प्रशासनिक कामकाज अधिक सुचारू रूप से चल सकेगा. आइए जान लेते हैं कि कितने देशों में वन नेशन-वन इलेक्शन की व्यवस्था है और इससे कितना फायदा या नुकसान होगा?
पीएम मोदी का चुनावी मास्टरप्लान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने तीसरे कार्यकाल के सौ दिन पूरे किए हैं और साथ ही, एक बहुत बड़े चुनावी बदलाव की बात करने लगे हैं. उनकी सरकार ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. मोदी सरकार संसद में एक विधेयक लाने की तैयारी में है, जिसे पास कराके पूरे देश में चुनावी प्रक्रिया को एक नया मोड़ दिया जा सकता है.
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एक देश, एक चुनाव, क्या है यह सिसायी महाकाव्य?
एक देश, एक चुनाव का मतलब है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक ही समय पर कराए जाएं. सोचिए, सभी चुनाव एक ही दिन में, या एक निश्चित समय सीमा में हो जाएं. क्या यह सपना हकीकत बन सकता है? मोदी सरकार का मानना है कि इससे देश के विकास में रुकावटें कम होंगी. बार-बार चुनावी माहौल में फंसी सरकारें अब विकास पर ध्यान दे सकेंगी.
वन नेशन-वन इलेक्शन के फायदे
खर्च में कमी: एक ही दिन पर सभी चुनाव कराए जाने से चुनावी खर्च में बड़ी कमी आ सकती है. बार-बार चुनावों के लिए हर बार भारी खर्च होता है, जिसमें प्रशासनिक, सुरक्षा और अन्य लागत शामिल होती है. एक साथ चुनाव कराने से ये सभी खर्च एक बार में निपटाए जा सकेंगे.
प्रशासन और सुरक्षा बलों पर कम बोझ: बार-बार चुनावों के दौरान प्रशासन और सुरक्षाबलों पर भारी दबाव होता है. एक साथ चुनाव कराने से उनकी ड्यूटी एक ही बार में पूरी हो जाएगी, जिससे उनके कामकाज में व्यवधान कम होगा .
वोटिंग की बढ़ती भागीदारी: बार-बार चुनावों से मतदाता थक सकते हैं और मतदान में रुचि कम हो सकती है. एक ही दिन चुनाव होने से मतदाता एक बार में पूरी प्रक्रिया में भाग लेंगे, जिससे मतदान की भागीदारी बढ़ सकती है.
विकास की गति में सुधार: चुनावों के बार-बार होने से सरकारें चुनावी मोड में रहती हैं और विकास कार्यों पर ध्यान कम देती हैं. एक साथ चुनाव कराने से सरकारें लंबे समय तक विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी और जनता को बेहतर सेवाएं प्रदान कर सकेंगी.
वन नेशन-वन इलेक्शन की चुनौतियां
संविधान में बदलाव: एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी. वर्तमान संविधान और कानूनों के अनुसार, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं. इन्हें एक साथ लाने के लिए बड़े बदलाव की जरूरत होगी, जिसमें राज्य विधानसभाओं को भी शामिल किया जाएगा.
प्रशासन और सुरक्षा चुनौतियां: एक साथ चुनाव कराने के लिए अधिक ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें) और सुरक्षाबलों की जरूरत होगी. यह एक बड़ी चुनौती हो सकती है, खासकर जब वर्तमान संसाधन सीमित हैं.
राजनीतिक दलों का विरोध: कई राजनीतिक दल, विशेषकर क्षेत्रीय दल, इस प्रस्ताव के खिलाफ हो सकते हैं. उनका मानना है कि इससे उनका नुकसान हो सकता है और राज्य स्तर के मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों के सामने दब सकते हैं. यह असहमति एक बड़ी चुनौती हो सकती है और इसे सुलझाने के लिए व्यापक चर्चा की आवश्यकता होगी.
चुनावी कार्यकाल में बदलाव: वर्तमान में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पांच साल का होता है, लेकिन अगर किसी विधानसभा या लोकसभा को भंग कर दिया जाता है, तो एक साथ चुनाव की व्यवस्था को बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
विदेशों का चुनावी रंग
अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में भी कई देशों ने एक साथ चुनावों की व्यवस्था अपनाई है. अमेरिका में हर चार साल में राष्ट्रपति और कांग्रेस के चुनाव एक ही दिन होते हैं. फ्रांस और स्वीडन में भी संसद और स्थानीय चुनाव एक साथ कराए जाते हैं. यह व्यवस्था इन देशों के लिए बहुत ही सफल रही है, लेकिन क्या भारत इसे अपनाने में सफल होगा? इसे ऐसे समझना होगा. अगर सरकार इसे संसद से पास करा लेती है तो कुछ चुनौतियां हैं जिससे निपटना जरूरी होगा.
कोविंद समिति की रिपोर्ट
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट पेश की है. समिति ने सुझाव दिया है कि सभी राज्यों की विधानसभाओं के कार्यकाल को बढ़ाया जाए ताकि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जा सकें. यह रिपोर्ट 18,626 पन्नों की है, जिसमें भविष्य की चुनावी व्यवस्था को नई दिशा देने की कोशिश की गई है. तो, भारत में एक देश, एक चुनाव की कहानी अब एक नए अध्याय की ओर बढ़ रही है. क्या यह सपना हकीकत बनेगा? क्या भारत अपनी चुनावी व्यवस्था को इस नए युग में बदल सकेगा? यह सवाल अब राजनीतिक गलियारों में गूंज रहा है. आने वाले दिनों में इस प्रस्ताव पर क्या निर्णय होगा, यह देखना दिलचस्प होगा.