Premature Birth: भारत में क्यो बढ़ रहे प्रीमैच्योर डिलीवरी के केस? जानिए कैसे करें बचाव
बेबी (प्रतिकात्मक तस्वीर)
Premature Delivery: भारत में दिन पर दिन प्रीमैच्योर डिलीवरी की संख्या बढ़ती जा रही है. यानी बड़ी संख्या में 37 हफ्तों से पहले बच्चे जन्म ले रहे हैं. जोकि देश के लिए एक बड़ी स्वास्थ्य चिंता बन गई है.
जहां दुनियाभर में प्रीटर्म बर्थ की दर 4 प्रतिशत से 15 प्रतिशत के बीच रहती है, वहीं भारत में यह 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत तक पहुंच गई है. मौजूदा आंकड़ों के अनुसार, बड़ी जनसंख्या और सभी जगह बराबर स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने की वजह से हर साल देश में लगभग 25 से 30 लाख बच्चे समय से पहले जन्म लेते हैं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है.
प्रीमैच्योर बर्थ का कारण क्या?
डॉक्टरों के अनुसार, प्रीमैच्योर बर्थ की कोई एक वजह नहीं होती बल्कि कई कारण एक साथ मिलकर ऐसी अवस्था बनाते हैं. जिसमें मां की उम्र, न्यूट्रिशन, बीमारियां, तनाव और गर्भावस्था के बीच का अंतर शामिल है. डॉक्टर बताते हैं कि भारत में प्रेगनेंसी के दो ट्रेंड बढ़ रहे हैं. इसमें बहुत कम उम्र में गर्भधारण और 35 साल के बाद गर्भधारण करना शामिल है. दोनों ही स्थितियों में परेशानी ज्यादा होती है. इसके अलावा, गर्भों के बीच कम अंतर भी शरीर पर अतिरिक्त बोझ डाल देता है और समय से पहले लेबर शुरू हो सकती है.
बता दें, मां का न्यूट्रिशन प्रीमैच्योर डिलीवरी का सबसे बड़ा कारण है. जिन महिलाओं में एनीमिया, कम बीएमआई या विटामिन की कमी होती है, या जो नियमित प्रेग्नेंसी चेक-अप नहीं करवातीं, उनमें इसका जोखिम काफी बढ़ जाता है. वहीं इंफेक्शन, हाई बीपी, शुगर, थायरॉयड या अचानक बढ़ा वजन जैसी समस्याएं समय रहते पकड़ में नहीं आतीं. वहीं बहुत बार इंफेक्शन समय से पहले लेबर शुरू कर देता है, लेकिन शर्म या जानकारी की कमी के कारण महिलाएं इसे अनदेखा कर देती हैं. इसके अलावा, डायबिटीज, मोटापा, थायराइड और हाई बीपी जैसी बीमारियां भी अब युवा महिलाओं में बढ़ रही हैं और जोखिम को और बढ़ाती हैं.
कैसे रोके प्रीमैच्योर डिलीवरी?
हर बार प्रीमैच्योर जन्म रोका नहीं जा सकता, लेकिन समय पर देखभाल से इसे काफी हद तक कम किया जा सकता है. इसके लिए लड़की के किशोरावस्था से ही सही पोषण, टीकाकरण और प्रजनन स्वास्थ्य की जानकारी बहुत जरूरी है.
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गर्भधारण से पहले जांच करवाना भी लाभदायक है, एनीमिया ठीक करना, थायरायड नियंत्रित करना और इन्फेक्शन का इलाज. वहीं गर्भावस्था के दौरान नियमित जांचें भी जरूरी हैं ताकि बीपी, शुगर, बच्चे की ग्रोथ और प्लेसेंटा की स्थिति पर नजर रखी जा सके. इसके साथ ही खाने में आयरन, फोलिक एसिड, कैल्शियम, प्रोटीन और ओमेगा-3 शामिल करना बेहद जरूरी है. हल्की एक्सरसाइज, प्रीनेटल योग, सही नींद और पर्याप्त पानी शरीर की सेहत भी बेहद जरूरी है.