बिहार में महागठबंधन के बीच सीट शेयरिंग पर क्यों नहीं बन पाई है बात, क्या कन्हैया कुमार को लेकर फंसा है पेंच?
Bihar Politics: बिहार में महागठबंध के बीच सीट शेयरिंग पर क्यों नहीं बन पाई है बात.अब कब तक करना होगा इंतजार. इन दिनों इन सारे सवालों में उलझा है बिहार की राजनीति. 19 अप्रैल को बिहार में पहले चरण का मतदान शुरू होने जा रहा है.लेकिन न तो महागठबंधन में सीट बंटवारा हुआ है और न ही उम्मीदवारों का ऐलान.कहा जा रहा है कि महागठबंधन में खींचतान की वजह कांग्रेस के दो चेहरे बन रहे. पहला कन्हैया कुमार और दूसरा तारिक अनवर..
कांग्रेस में जिस तरह की नाराजगी पप्पू यादव को लेकर देखी जा रही है, कन्हैया कुमार के कांग्रेस ज्वाइन करने पर तो उससे भी ज्यादा खफा लालू यादव बताये जाते थे. और कन्हैया कुमार को कैसे लालू परिवार फूटी आंख नहीं देखना चाहता ये तो 2019 के लोक सभा चुनाव में भी सभी लोग देख चुके हैं.
2019 में लोकसभा चुनाव हार गए थे कन्हैया
2019 में महागठबंधन में कन्हैया कुमार के नाम पर तेजस्वी यादव के तैयार न होने पर सीपीआई ने अपने टिकट पर बेगूसराय से चुनाव लड़ाया था. तब कन्हैया कुमार सीपीआई में ही हुआ करते थे. तेजस्वी यादव के विरोध का आलम ये रहा कि मैदान में आरजेडी उम्मीदवार तनवीर हसन को भी उतार दिया वैसे दोनों के बोट जोड़ देने पर भी बीजेपी नेता गिरिराज सिंह को हराना संभव नहीं होता, लेकिन सब कुछ सामने तो आ ही गया,
कन्हैया कुमार के कांग्रेस ज्वाइन करने पर लालू यादव की नाराजगी तब सामने आई जब 2021 में बिहार की दो सीटों पर उपचुनाव हो रहे थे, तारापुर और कुशेश्वर स्थान, तब के कांग्रेस प्रभारी भक्तचरण दास के बारे में पूछे जाते ही लालू यादव फूट पड़े, और उनके ‘भकचोन्हर तक कह डाले. खूब विवाद हुआ. कांग्रेस नेतृत्व के भी नाराज हो जाने की खबर आई और मामला इतना खराब हो गया कि लालू यादव को सोनिया गांधी से फोन पर बात कर सफाई देनी पड़ी, तब जाकर पैचअप हो सका.
लालू यादव को तेजस्वी की चिंता
असल में लालू यादव हरगिज नहीं चाहते कि कन्हैया कुमार बिहार के बड़े नेता बन पायें. ऐसा वो तेजस्वी यादव की वजह से चाहते हैं. अभी तक कन्हैया कुमार जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस के युवा नेता के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन अगर एक चुनाव जीत कर कन्हैया लोकसभा पहुंच जाते हैं, तो उनके भाषणों से बार बार सुर्खियां बन सकती हैं.
लालू यादव को अपने बेटे तेजस्वी यादव की चिंता है. और वो नहीं चाहते कि उनके बेटे के कद का कोई भी युवा बिहार और देश की राजनीति में नाम कमाएं.सूत्रों के मुताबिक, शायद इसलिए लालू यादव ने बिहार के बेगुसराय सीट से कन्हैया के नाम पर आपत्ति जता दी है. वहीं बेगूसराय लोकसभा सीट पर कांग्रेस जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को चुनाव लड़ाना चाहती है. वैसे कन्हैया कुमार यहां से 2019 में भी सीपीआई के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. तब उन्हें बीजेपी की गिरिराज सिंह से मुंह की खानी पड़ी थी. उधर कटिहार लोकसभा सीट पर राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस में खींचातानी लगातार बनी हुई है. कांग्रेस यहां से पूर्व केंद्रीय मंत्री और आईसीसी के सदस्य तारिक अनवर को चुनाव लड़ना चाहती है, 2019 के लोकसभा चुनाव में तारीक अनवर को यहां जदयू के दुलारचंद गोस्वामी से हार का सामना करना पड़ा था. वहीं राष्ट्रीय जनता दल भी कटिहार से अपने पूर्व राज्यसभा सांसद अहमद अशफाक करीम को चुनाव लड़ने के मूड में है.
RJD 28 सीटों पर लड़ सकती है चुनाव
अब तक के फॉर्मूले के मुताबिक RJD 28, कांग्रेस 9 और वाम दल 3 सीटों पर लड़ सकते हैं. लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के पशुपति पारस और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) प्रमुख मुकेश सहनी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस (इंडिया) में आए तो समीकरण में थोड़ा बदलाव आ सकता है. केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस को एनडीए में एक भी सीट नहीं दी गई है, ऐसे में उनके अगले रुख पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं.
कन्हैया कुमार की सीट बेगूसराय और जनअधिकार पार्टी के अध्यक्ष पप्पू यादव की सीट पूर्णिया और मीरा कुमार के बेटे की सीट काराकाट पर कांग्रेस-आरजेडी में पेंच फंसा हुआ है. सुपौल से कांग्रेस बेरोजगारी के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले अनुपम को टिकट दे सकती है.