एमपी में दहेज उत्पीड़न से 719 महिलाओं की गई जान, जीतू पटवारी ने प्रदेश सरकार पर साधा निशाना
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी
MP News: मध्यप्रदेश में दहेज उत्पीड़न के मामले लगातार बढ़ते नजर आ रहे हैं. एक रिर्पाट के अनुसार बीते 18 महिनों में 719 दहेज हत्या के मामले दर्ज हुए हैं. इस रिपार्ट के बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने प्रदेश भाजपा सरकार पर निशाना साधते कहा कि मैं जब भी महिलाओं के विषय में बोलता हूं तो सरकार नाराज होती है, प्रदेश में सबसे ज्यादा दहेज उत्पीड़न के मामले हैं, लेकिन सरकार इस मामले पर कोई संज्ञान नहीं ले रही है.
उन्होंने आगे कहा कि भाजपा कहती है कि मैं बहनों का अपमान करता हूं. लेकिन बहनों का अपमान तो भाजपा कर रही है 3000 हजार रुपए देने का वादा करके 1200 रुपए देती है.
विधानसभा में पेश हुए थे चौंकाने वाले आंकड़े
29 जुलाई को विधानसभा में पेश किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 15 दिसंबर से 31 दिसंबर 2023 तक 21 दहेज हत्या के केस सामने आए. 2024 के पूरे साल में यह आंकड़ा बढ़कर 459 तक पहुंच गया. वहीं 2025 के शुरुआती 6 महीनों में ही 239 महिलाएं दहेज उत्पीड़न के चलते जिंदगी से हार गईं. इस पर विपक्ष का कहना है कि सरकार केवल वादे कर रही है लेकिन जमीनी हकीकत में कोई सुधार नहीं है.
दहेज उत्पीड़न में मध्यप्रदेश तीसरे नंबर पर
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि दहेज हत्या के मामलों में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है. पिछले 5 सालों में वहां 11,488 दहेज उत्पीड़न से हत्या दर्ज हुईं. यानी देश में हर तीसरी दहेज हत्या यूपी में होती है. इस लिस्ट में मध्यप्रदेश तीसरे स्थान पर है. निक्की भाटी की हत्या जैसे मामले लगातार यह दिखा रहे हैं कि दहेज का दंश समाज में गहराई से फैला हुआ है.
कानून सख्त पर हालात नहीं सुधरे
साल 2022 में पूरे देश में औसतन हर दिन 18 महिलाओं ने दहेज उत्पीड़न के कारण अपनी जान गंवाई. 2018 से 2022 के बीच कुल 34,477 महिलाएं इसकी शिकार बनीं. केवल 2022 में ही यूपी में 2,138, बिहार में 1,057 और मध्यप्रदेश में 518 दहेज हत्या के मामले दर्ज हुए. आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ पांच राज्य जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल मिलकर देश की 70 फीसदी दहेज हत्याओं के लिए जिम्मेदार हैं.
कानून मौजूद होने के बावजूद हालात में सुधार नहीं दिख रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि सख्ती के साथ-साथ समाज को भी अपनी सोच बदलनी होगी. महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा के लिए जागरूकता फैलाना उतना ही जरूरी है जितना कि कानून का सख्त पालन करना.