वो शख्स जिसने अपनी जान की परवाह ना करते हुए रोकी दूसरी Bhopal Gas Tragedy, जानें आखिर क्या था ‘ऑपरेशन फेथ’
Bhopal Gas Tragedy: दिसंबर 1984 की काली रात, जब भोपाल शहर ने एक भयावह आपदा का सामना किया. वह दिन दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदाओं में से एक के रूप में याद किया जाता है. 2-3 दिसंबर 1984 की आधी रात के बाद, यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) के कीटनाशक संयंत्र से 42 मीट्रिक टन मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ. यह गैस घने बादल के रूप में आस-पास के झुग्गी-झोपड़ी इलाकों में फैल गई. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 3 हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई. वहीं एनजीओ (NGOs) का कहना है कि 20 हजार लोगों की जान गई. इस त्रासदी को बढ़ने से बचाने में डॉ. एस. वरदराजन और उनकी टीम का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था.
ऑपरेशन फेथ चलाकर भोपाल को दूसरा त्रासदी से बचाया गया
भोपाल गैस त्रासदी के बाद, भारतीय सरकार ने सीएसआईआर (CSIR) के प्रमुख डॉ. एस. वरदराजन को घटनास्थल पर भेजा. डॉ. वरदराजन ने भोपाल पहुंचकर स्थिति का निरीक्षण किया और समझा कि यदि टैंक 611 से भी गैस लीक हुई, तो यह और भी भयंकर आपदा का कारण बन सकता था. टैंक 611 में भी लगभग 40 टन मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) थी. जो भोपाल में दूसरी त्रासदी का कारण बन सकता थी. डॉ. वरदराजन और उनकी टीम ने जोखिमों को समझते हुए, सबसे पहले मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस के रिसाव का कारण जानने की कोशिश की. उन्होंने यह पता लगाया कि मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC)को सुरक्षित रूप से स्टोर करने के लिए ठंडी स्थिति की आवश्यकता थी लेकिन यूनियन कार्बाइड ने लागत बचाने के लिए इसे सही तरीके से स्टोर नहीं किया था.
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डॉ. वरदराजन ने ऑपरेशन फेथ का नेतृत्व किया. जिसका उद्देश्य टैंक 611 से बचे मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) को सुरक्षित तरीके से नष्ट करना था. उन्होंने और उनकी टीम ने एक सुरक्षित और प्रभावी तरीका अपनाया. इसमें मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) को एक केमिकल प्रोसेस द्वारा “सेविन” नामक पदार्थ में बदल दिया गया. यह प्रक्रिया रोजाना 3-4 टन की दर से की गई. 16 दिसंबर 1984 को यह ऑपरेशन शुरू हुआ और 6 दिन में सफलतापूर्वक पूरा हुआ. इस ऑपरेशन के कारण भोपाल में एक और त्रासदी को टाला जा सका।
16 सदस्यों की टीम ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया
डॉ. वरदराजन के नेतृत्व में, 16 सदस्यीय विशेषज्ञ टीम ने रासायनिक इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के साथ मिलकर तत्काल कार्रवाई की. इस टीम में डॉ. एल.के. दोराईस्वामी, डॉ. आर.ए. माशेलकर, डॉ. एम.एम. शर्मा और अन्य प्रमुख वैज्ञानिक शामिल थे. इस टीम ने जल्द ही अस्थायी सुविधाएं स्थापित कीं और घटनास्थल पर आवश्यक वैज्ञानिक जांच की. इस मुश्किल समय में डॉ. वरदराजन ने अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को नजरअंदाज करते हुए लोगों की सुरक्षा की ओर ध्यान दिया. उनकी टीम ने ना केवल मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) के रिसाव को नियंत्रित किया बल्कि प्लांट की अन्य संपत्तियों को भी बचाया.
भोपाल गैस त्रासदी ने दुनिया को यह सीख दी कि औद्योगिक सुरक्षा के मामले में लापरवाही का कितना बड़ा खामियाजा हो सकता है. हालांकि, डॉ. वरदराजन और उनकी टीम की सूझबूझ और त्वरित कार्रवाई के कारण भोपाल में एक और बड़ी त्रासदी को टाला जा सका.