Madhya Pradesh में फिर खुली OBC के 27 फीसदी आरक्षण की राह, CM मोहन यादव बोले- हम हर हाल में तैयार
सीएम मोहन यादव
OBC Reservation: मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Class) के लिए 27 फीसदी आरक्षण का मुद्दा फिर से गरमा गया है. जहां एक ओर पीसीसी चीफ जीतू पटवारी (Jitu Patwari) ने इसे लेकर सरकार पर निशाना साधा है. वहीं मुख्यमंत्री मोहन यादव (CM Mohan Yadav) ने पलटवार करते हुए कहा है कि OBC के लिए 27 फीसदी आरक्षण के स्टैंड पर हम कायम हैं. इसके साथ ही सीएम ने कहा कि आरोप लगाने से पहले कांग्रेस को अपने आकाओं से पूछना चाहिए कि उन्होंने 1953 में जातिगत जनगणना क्यों रोकी थी.
‘हम हर हाल में तैयार हैं’
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी का जबाव देते हुए सीएम डॉ. मोहन यादव ने कहा कि ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के स्टेंड पर हम कायम हैं. ओबीसी आयोग की रिपोर्ट पर हमारी पूर्ववर्ती सरकार शिवराज सिंह जी के समय आई थी. उन्होंने आगे कहा कि हमारी सरकार इसका परीक्षण करेगी. इसके अलावा OBC आरक्षण को लेकर जिन लोगों ने भी कोर्ट में याचिकाएं लगाई हैं, उन्हें बुलाकर सरकार बात करेगी.
विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि आरोप लगाने से पहले कांग्रेस को अपने आकाओं से पूछना चाहिए कि उन्होंने 1953 में जातिगत जनगणना क्यों रोकी थी. हम हर हाल में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की बात पर कायम हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार की ट्रांसफर पिटीशन
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने के संबंध में सुनवाई हुई. राज्य सरकार द्वारा लगाई गई सभी ट्रांसफर पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है. कोर्ट ने कहा कि सरकारी विभागों में चयनित उम्मीदवारों की नियुक्ति होल्ड करने का मामला भी सुने जाएंगे. इस संबंध में उच्चतम न्यायालय ने अहम सुझाव भी दिया.
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सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका और जज उज्जवल भुयान की पीठ ने मामले की सुनवाई की. सभी 52 याचिकाओं को स्वीकार कर लिया गया है. इन मामलों की सुनवाई अब रिट याचिका (सिविल) संख्या 423/2019 के साथ की जाएगी. पहले इस मामले की सुनवाई मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में की जा रही थी.
कांग्रेस सरकार में बढ़ा था आरक्षण
साल 2019 में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने राज्य में ओबीसी आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया था. इस के लिए अध्यादेश भी जारी किया गया था. विधानसभा से भी इसे पारित करा लिया गया था. जिसे मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इसके बाद इस पर रोक लगा दी गई.