MP News: कमलनाथ के किले में एक और सुराख, अमरवाड़ा विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की हार के क्या हैं मायने?

MP News: कांग्रेस ने अंचलकुंड दरबार से जुड़े प्रत्याशी को खड़ा करके धार्मिक एंगल तो कवर कर लिया था लेकिन अपने सबसे बड़े रास्ते के कांटे का कोई इलाज नहीं ढूंढ पाई.
Congress has faced defeat in the by-elections held in Amarwada.

अमरवाड़ा में हुए उपचुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है.

MP News: मध्यप्रदेश में छिंदवाड़ा ऐसा जिला है जो पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता कमलनाथ का गढ़ माना जाता रहा है लेकिन वर्ष 2024 कमलनाथ के लिए कारगर नहीं साबित हो रहा है और इस कड़ी में सबसे ताजा मामला है अमरवाड़ा में हुए उपचुनाव में कांग्रेस की हार.

छिंदवाड़ा में बीते लगभग 45 साल में दो बार ही ऐसे मौके आए हैं, जब कमलनाथ परिवार के सदस्य को शिकस्त मिली है. कांग्रेस के लिए मध्यप्रदेश एक नम्बर वाले सरल सवालों से पलटकर सीधा 20 नम्बर वाले सबसे कठिन सवालों में बदल चुका है. कहां तो अभी 8 महीने पहले कांग्रेस और कमलनाथ मध्यप्रदेश की कुर्सी के सपने देख रहे थे और कहां आज सिर्फ 8 महीने बाद हम ये खबर लिख रहे हैं कि आखिर कमलनाथ के इस राजनीतिक पतन के पीछे क्या कारण हैं.

बहरहाल कमलनाथ अपने किले के कई हिस्सों को खो चुके हैं. जिसमें लोकसभा और अब तो विधानसभा की अमरवाड़ा सीट भी शामिल हो चुकी है. इस ताज़ा हार के पीछे क्या है कहानी आइए समझते हैं.

क्षेत्रीय समीकरण को साधने में असफल रही कांग्रेस

लोकसभा में राज्य की इकलौती सीट छिंदवाड़ा भी कांग्रेस के हाथ से जाने के बाद प्रदेश में कमलनाथ के वर्चस्व पर तंज कसे जाने लगे थे. हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ को बीजेपी प्रत्याशी विवेक बंटी साहू ने एक लाख से भी अधिक वोटों से मात दी थी. इस हार का दर्द अभी खत्म नहीं हुआ था कि एक और कष्ट कांग्रेस के गले लग गया. दरअसल मार्च 2024 में उस वक्त अमरवाड़ा से कांग्रेस के विधायक कमलेश शाह ने भाजपा से हाथ मिलाया और विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया.

अमरवाड़ा वह विधानसभा क्षेत्र रहा है जहां कमलेश शाह कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर तीन बार जीते थे. अब वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके थे और भाजपा ने उपचुनाव में एक बार फिर कमलेश शाह को उतारा अंतर सिर्फ चुनावी झंडे का था. इस बार कमल के निशान के साथ मैदान पर उतरे कमलेश शाह ने अपने विपक्षी धीरेन शाह को लगभग 3000 वोटों से शिकस्त दे दी. क्षेत्रीय सूत्रों की मानें तो कांग्रेस ने कमलेश शाह के पलटने के बाद उनके खिलाफ आंचल कुंड दरबार से जुड़े धीरेन शाह को खड़ा किया लेकिन क्षेत्रीय समीकरण नहीं साध पाई. कांग्रेस से भाजपा में गए कमलेश शाह ने अमरवाड़ा उपचुनाव में धीरन शाह को 3027 वोटों से हराया है. अमरवाड़ा में 16 साल बाद भाजपा की ये पहली जीत है.

इससे पहले वर्ष 2008 में भाजपा के प्रेमनारायण ठाकुर जो की उस वक्त कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए थे उन्होंने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के मनमोहन शाह बट्टी को महज 437 वोट से हराया था. अमरवाड़ा विधानसभा में 1967 से 2023 तक हुए 15 चुनावों में भाजपा ने 3 बार जीत दर्ज की। इनमें 2 बार कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए नेता विधायक चुने गए. दरबार के वर्चस्व और स्वीकार्यता के भरोसे रही कांग्रेस को गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है.

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गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने बिगाड़ा खेल, कमलनाथ के लिए आगे क्या ?

कांग्रेस ने अंचलकुंड दरबार से जुड़े प्रत्याशी को खड़ा करके धार्मिक एंगल तो कवर कर लिया था लेकिन अपने सबसे बड़े रास्ते के कांटे का कोई इलाज नहीं ढूंढ पाई. यहां बात हो रही है गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की. कांग्रेस का कहना है कि अमरवाड़ा उपचुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले की वजह से हार मिली. कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने तो खुलकर गोंगपा पर हार का ठीकरा फोड़ना शुरू कर दिया है. अमरवाड़ा उपचुनाव में कमलेश प्रताप शाह को 83,105 वोट मिले. कांग्रेस प्रत्याशी धीरेन शाह को 80,078 मत प्राप्त किये वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के देवी राम भलावी को 28,723 वोट मिले. भाजपा और कांग्रेस के बीच जीत हार का अंतर लगभग 3000 वोट रहा और इसमें गोंडवाना गणतंत्र पार्टी एक बड़ी भूमिका में रही.

क्षेत्र के एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि “कांग्रेस गोंगापा को साधने में फेल हो गई. अगर ये गठबंधन हो जाता तो कांग्रेस ये सीट आराम से जीत जाती. लोकसभा में भी गोंगपां ने लगभग 90 हजार वोटों को खींचा था और उसका खामियाजा उठाना पड़ा रहा नकुलनाथ के हारने के बावजूद इसके उपचुनाव में कांग्रेस ने इस लीक को ठीक करने में ध्यान नहीं दिया और अगर दिया भी तो इसमें असफल रहे”.

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यह हार कमलनाथ के लिए मुसीबतें बढ़ाने वाली है. राज्य के वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि “कमलनाथ के लिए अब ऐसा लगता है कि मध्यप्रदेश में बहुत कुछ बचा नहीं है. उपचुनाव के नतीजों ने उनके लिए समस्याएं बढ़ाई हैं. बेटे नकुलनाथ के भी भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ी होंगी. अब देखने वाली बात यह होगी कि आखिर कमालनाथ कितने देर तक मैदान में टिकना चाहते हैं.”

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