MP News: प्रशासन से गुहार लगा-लगाकर थके ग्रामीण! एक साथ 23 आदिवासी परिवारों ने मांगी इच्छा मृत्यु
MP News: मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के 23 आदिवासी और दलित परिवारों ने राष्ट्रपति के नाम आवेदन पत्र लिखा है. इसके जरिए उन्होंने इच्छा मृत्यु की मांग की है. प्रशासन से गुहार लगा-लगाकर थक चुके परिवारों का विवाद जमीन को लेकर है. इन परिवारों का आरोप है कि 21 साल पहले सरकार ने जो जमीन उन्हें खेती के लिए दी थी, उसे अब वुडन कलस्टर परियोजना के लिए चिह्नित कर लिया गया है. साथ ही उन्हें इस जमीन से बेदखल किया जा रहा है. जानें क्या है पूरा मामला-
जमीन से किया जा रहा बेदखल
बैतूल जिले के कढ़ाई गांव में रहने वाला ग्रामीणों ने बताया कि 21 साल पहले उन्हें हरियाली खुशहाली योजना के तरत सरकार की ओर से जमीन दी गई थी. इन परिवारों ने मेहनत करके बंजर भूमि को उपजाऊ बनाया और वहां फलदार वृक्ष भी लगाए. अब इस जमीन को वुडन कलस्टर परियोजना के लिए चिन्हित कर लिया गया है.
21 साल से जमीन पर कर रहे खेती
ग्रामीणों ने बताया कि वह पिछले 21 साल से इस जमीन पर खेती कर रहे हैं. यह उनकी आजीविका का मुख्य साधन है. अगर यह जमीन उनसे छीन ली गई तो उनके सामने जीवनयापन का संकट खड़ा हो जाएगा. इसे लेकर वह कई बार प्रशासन से भी गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कोई उनकी सुनने को तैयार नहीं है.
राष्ट्रपति को लिखा पत्र
प्रशासन के पास कई बार गुहार लगाने के बाद भी जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो अब ग्रामीणों ने राष्ट्रपति के नाम आवेदन देकर संवैधानिक रूप से इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है.
20 हेक्टेयर जमीन चिह्नित
जानकारी कि प्रशासन ने 20 हेक्टेयर भूमि चिन्हित की है, जहां उद्योग विभाग ने काम भी शुरू कर दिया है. बता दें कि साल 2003 में हरियाली खुशहाली योजना की शुरुआत की गई थी. इसके तहत भूमिहीन परिवारों को खेती के लिए पांच-पांच एकड़ जमीन दी गई थी. योजना के अंतर्गत किसानों को सरकारी मदद भी मिली, जिसमें जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए तालाब खुदवाना, सिंचाई के लिए मोटर पंप देना और कृषि उपकरण खरीदने में सहायता करना भी शामिल था.
राजस्व रिकॉर्ड नहीं
इस मामले पर जब बैतूल के कलेक्टर नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि यह जमीन राजस्व रिकॉर्ड में आवंटित नहीं है. जांच में पाया गया है कि ग्रामीणों को दिए गए पट्टे का कोई रिकॉर्ड नहीं है. यह जमीन पहाड़ी और पथरीली होने के कारण खेती के लिए उपयुक्त नहीं मानी गई. इसके अलावा प्रशासन की ओर से दावा किया गया है कि 23 परिवारों में से केवल एक व्यक्ति का अतिक्रमण था, जिसे हटाया गया. इसकी याचिका भी उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी है.
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पेचीदा हुआ मामला
सरकार की इस योजना और ग्रामीणों के दर्द के बीच फंसा यह मामला तब और ज्यादा पेचीदा हो गया जब यह सामने आया कि हरियाली खुशहाली योजना के लिए 40 से 50 लाख रुपए खर्च कर बुनियादी ढांचा तैयार किया गया था. अब सवाल यह उठ रहा है कि जब ग्रामीणों ने अपनी मेहनत और सरकारी सहायता से जमीन को उपजाऊ बनाया, तो क्या यह सही है कि उनसे जमीन छीन ली जाए? प्रशासन का कहना है कि जमीन के आवंटन का कोई राजस्व रिकॉर्ड नहीं है, जबकि ग्रामीण इस तथ्य से आहत हैं कि उनकी मेहनत और जीविका पर संकट मंडरा रहा है.