MP News: सिकल सेल एनीमिया की गंभीर बीमारी से जूझते प्रदेश के आदिवासी, जानिए आखिर क्या है बीमारी की वजह
Sickle Cell Disease : मध्यप्रदेश के आदिवासी सिकल सेल एनीमिया बीमारी से बड़ी संख्या में इसके शिकार है, यह एक अनुवांशिक बीमारी है, जो जन्म से ही होती है, आदिवासी समाज के लोग खासकर ज्यादा ग्रसित होते है. भारत के जनजातीय कार्य मंत्रालय के मुताबिक़ ये बीमारी आदिवासी आबादी में ज़्यादा पाई जाती है वहीं अनुसूचित जनजाति में 86 में से एक को जन्म से ही सिकल सेल बीमारी होती है. ये बीमारी लाल रक्त कोशिकाओं में मौजूद हिमोग्लोबिन पर प्रभाव डालती है जो शरीर में ऑक्सिजन ले जाने का काम करता है.
अगर एक लड़का सिकल सेल पॉजिटिव है और लड़की भी सिकल सेल पॉजिटिव है और वो आपस में शादी करते है तो उनसे होने वाली संतान भी सिकल पॉजिटिव निकलेगी, डॉक्टरों का मानना है की शादी करने से पहले ब्लड टेस्ट जरूर करवाएं, अगर दोनों पॉजिटिव निकलते है तो शादी न करने की भी सलाह देते है, जिससे की होने वाली संतान को इस बीमारी से बचाया जा सके.
मध्यप्रदेश के बड़वानी की स्वास्थ्य विभाग की टीम अनोखे अंदाज में इस बीमारी के प्रति जागरूक करने का काम कर रही है, डॉक्टर रीना डावर आदिवासी समाज से आती है. आदिवासी भाषा में बात करके इस बीमारी के प्रति लोगो को जागरूक करने का काम कर रही है. विस्तार न्यूज़ से बातचीत के दौरान उन्होंने लोकगीत सुनाया, और लोगो से इस बीमारी से बचने के उपाय बताए. बड़वानी आदिवासी बाहुल्य जिला है, जिला स्वास्थ्य अधिकारी से मिली जानकारी के अनुसार कुल 2239 लोग सिकल सेल बीमारी के शिकार है.
विस्तार न्यूज़ ने इस बीमारी के डॉक्टर और विशेषज्ञ से बात की आइये जानते है कुछ सवालों के जवाब
सिकल सेल बीमारी कैसे होती है
सिकल सेल बीमारी कई तरह की समस्याओं का एक ग्रुप जिनसे लाल रक्त कोशिकाओं का आकार बिगड़ जाता है और वे टूट जाती हैं. सिकल सेल रोग एक आनुवंशिक विकार है जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं हंसिया के आकार में परिवर्तित हो जाती हैं। कोशिकाएं जल्दी मर जाती हैं, जिससे स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं (सिकल सेल एनीमिया) की कमी हो जाती है और रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है जिससे दर्द (सिकल सेल संकट) हो सकता है,
आसान भाषा में समझा जाए तो हर व्यक्ति के रक्त में लाल रक्त कोशिकाएं होती हैं जो आकार में गोल, लचीली और नर्म होती हैं. लेकिन जब ये बीमारी होती है तो वो अंग्रेज़ी के अक्षर सी (सिकल या हंसिया) का आकार ले लेती है. और वो धमनियों में अवरोध पैदा करती है. इसके बाद सिकल सेल ख़त्म होने लगते हैं जिससे लाल रक्त कोशिकाएं कम होने लगती हैं और उसका असर शरीर को मिलने वाले ऑक्सिजन पर पड़ता है. जिससे कई तरह की समस्याएं और बीमारियां होती हैं.
सिकल सेल बीमारी के लक्षण
जोड़ो में दर्द होना,
छाती में अचानक दर्द होना
पूरे शरीर में अच्छा महसूस न करना, चक्कर आना, थकान, या शरीर में कम ऑक्सीजन
पेशाब संबंधी समस्या: पेशाब में खून या सांद्र या तनु पेशाब बनाने की असमर्थता
यह समस्या होना भी आम है: लाल रक्त कोशिकाओं का असामान्य रूप से टूटना, त्वचा का पीलापन, पीली त्वचा और आंखें, सांस फूलना, या हाथों या पैरों की उंगलियों में जलन
तिल्ली का बढ़ा होना.
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आदिवासियों को ही क्यों होती है सिकल बीमारी
विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार नाइजीरिया और कांगो के बाद भारत तीसरा ऐसा देश है जहां सिकल सेल एनीमिया के सबसे ज़्यादा मामले हैं.
वहीं भारत के आदिवासी बहुल इलाकों में लोग ज़्यादा इस बीमारी से पीड़ित होते हैं.
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक़ भारत की आबादी में 8.6 प्रतिशत हिस्सा आदिवासियों का है.
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ़ से आदिवासियों के स्वास्थ्य पर बनी विशेष समिति ने दस विशेष बीमारियों की सूची में सिकल सेल को भी शामिल किया है
शोध में ये भी पाया गया है सिकल सेल एनीमिया के मामले उन रिहायशी इलाक़ो में अधिक हैं जहां मलेरिया की समस्या रही है
साधारण शब्दों में अगर समझें तो मेडिकल शोध ये बताते हैं कि हज़ारों साल पहले जो लोग जंगल के इलाक़ों में रहते थे उनमें मलेरिया के मामले अधिक होते थे. लेकिन बार-बार मलेरिया होने की वजह से उनकी इस बीमारी के ख़िलाफ़ प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित हुई.
इससे जेनेटिक लेवल पर केमिकल में बदलाव हुए जिससे शरीर में ख़ामी आई और सिकल सेल शरीर में बनने लगे
आदिवासियों में फैली इस बीमारी एक कारण यह भी है कि आदिवासी समुदाय आपस में ही शादी कर लेते हैं. ऐसे में वही जीन यानी अगर मां या पिता दोनों में सिकल सेल ट्रेट (लक्षण) या बीमारी हो तो वो बच्चे में ट्रांसफ़र हो जाती है. यानी जीन का पूल वहीं घूमता रहता है.
किस तरह अपना ध्यान रखें?
जो लोग सिकल सेल बीमारी से पीड़ित हैं उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा पानी (कम से कम 10-15 ग्लास) पीना चाहिए.
हर दिन फॉलिक एसिड की गोली(5 मिली ग्राम) लेनी चाहिए.
मादक पदार्थों के सेवन से बचें.
संतुलित आहार लें.
उल्टी दस्त लगने पर डॉक्टर से संपर्क करें.
हर तीन महीने में हिमोग्लोबिन और श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या की जांच करवाएं.