MP News: Gwalior में अटल स्मारक बनने से पहले खड़ा हुआ नया विवाद, सैकड़ों पेड़ काटे जाने का पर्यावरण प्रेमियों ने किया विरोध
MP News: मध्य प्रदेश के ग्वालियर में अपनी राजनीति की शुरुआत करने के बाद देश के सर्वोच्च नेता के रूप में पहचाने जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई के साथ बीजेपी के द्वारा अभी वादा खिलाफी हो रही है। मध्य प्रदेश सरकार ने पिछले 4 साल पहले ग्वालियर में विश्व स्तरीय अटल स्मारक बनाने की घोषणा की थी, लेकिन अभी इस अटल स्मारक की नींव तक नहीं रख पाई है इससे पहले नया विवाद खड़ा हो गया है. जिस शिरोल पहाड़ी पर अटल स्मारक बनना है वहां पर सैकड़ो पेड़ काटे जाएंगे. इसको लेकर वहां के स्थानीय लोग और प्रबुद्ध जन के साथ-साथ पर्यावरण प्रेमियों ने विरोध करना शुरू कर दिया है. पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि स्मारक के लिए सैकड़ो पेड़ो की बलि देना यह अटल जी के व्यक्तित्व के खिलाफ है.
पूर्व CM शिवराज सिंह चौहान ने 4 साल पहले की थी घोषणा
बता दे, ग्वालियर की सरोल पहाड़ी पर अटल जी का विश्व स्तरीय स्मारक बनना है इसको लेकर 4 साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की थी और तब से लेकर अब तक इस स्मारक की नींव तक नहीं रख पाई है. जिस पहाड़ी पर यह स्मारक बना है. वहां पर हजारों की संख्या में अलग-अलग प्रजाति के पेड़ लगे हुए हैं और यह सरोल पहाड़ी ऑक्सीजन जॉन के रूप में मानी जाती है. यह पूरी तरह हरियाली से घिरी हुई है इस पहाड़ी में अलग-अलग प्रजाति के बड़ी जीव जंतु भी पाए जाते हैं यही कारण है कि रोज सुबह-शाम यहां हजारों की संख्या में शहर के गणमान्य आम लोग घूमने के लिए आते हैं. जैसे ही स्मारक के लिए सैकड़ो पेड़ काटे जाने की सूचना मिली तो उसके बाद लोगों का विरोध शुरू हो गया.
पर्यावरण प्रेमियों ने विस्तार न्यूज़ से खास बातचीत में कहा के एक तरफ सरकार हरियाली के लिए लाखों करोड़ों रुपए खर्च करके पेड़ लगा रही है तो वहीं दूसरी तरफ ग्वालियर में सैकड़ो की संख्या में पेड़ काटे जा रही है यह पर्यावरण की दृष्टि से बड़ा संकट खड़ा करने वाली बात है. ग्वालियर में लगातार पेड़ों की कमी होने के कारण लगातार तापमान बढ़ रहा है. स्मारक के नाम पर सैकड़ो पेड़ काटे जाना यह उचित नहीं है इसके लिए वह प्रशासन से लेकर कोर्ट तक लड़ाई लड़ेंगे. साथ ही उन्होंने कहा कि हम स्मारक के विरोध में नहीं है अटल जी हमारे नेता और आदर्श है ग्वालियर के लोग उन्हें खूब चाहते हैं लेकिन सैकड़ो की संख्या में उनके स्मारक के नाम पर पेड़ काटे जाना उनकी आत्मा को भी मंजूर नहीं होगा और यह उनके व्यक्तित्व के खिलाफ भी है.
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कांग्रेस खड़े कर रही सवाल
वहीं इस मामले को लेकर कांग्रेस भी सवाल खड़ी कर रही है. कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष आर पी सिंह का कहना है कि जिस महान नेता की वजह से भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है उनके नाम पर पिछले कई सालों से राजनीति हो रही है शिरोल पहाड़ी पर स्मारक को आवंटन किए हुए 4 से 5 साल हो गए है, लेकिन वह तो नहीं बना. अब सबसे बड़ी बातें है तो वहां पर हजारों की संख्या में लोगों ने वृक्षारोपण किया है और संरक्षण किया है। यह अटल जी के व्यक्तित्व के खिलाफ है ऐसे में हम वृक्षों को काटकर वहां स्मारक बनाएंगे तो मुझे लगता है कि उनकी आत्मा को भी कष्ट होगा. स्मारक के लिए पेड़ काटे जाने को लेकर बीजेपी के प्रदेश मंत्री लोकेंद्र परासर का कहना है कि अटल जी इस ग्वालियर के समाज के गौरव है और इस राष्ट्र की धरोहर है अटल जी के नाम पर इस प्रकार का स्मारक बने और पीड़िया इससे प्रेरणा ले सके. यह बहुत जरूरी है. भारतीय जनता पार्टी पर्यावरण और पेड़ों को लेकर बहुत संवेदनशील है. पेड़ों लगाने को लेकर अभियान इस देश में चल रहा है और प्रदेश में 5 करोड़ पेड़ लगाने का संकल्प डॉक्टर मोहन यादव की सरकार ने लिया है इसलिए बीजेपी का संकल्प है के पेड़ भी बच्चे और स्मारक भी बने. इस तरह की युक्ति निकाली जाएगी.वहीं ग्वालियर के प्रभारी कलेक्टर हर्ष कुमार का कहना है कि यह शासन का प्रोजेक्ट है और टेंडर होकर कर भी चालू होने वाला है. बताया जा रहा है कि जहां अटल स्मारक बन रहा है वहां 100 से अधिक पेड़ काटे जाएंगे, लेकिन बैठक में निर्देश दिए हैं कि 100 स्पीड तब काटे जाएंगे, जब इसके बदले 600 पेड़ लगाए जाएंगे और वहां पर यही प्रयास किया जा रहा है कि कम से कम संख्या में पेड़ काटे जाएं.
साल 2020 में उपचुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ग्वालियर में अटल स्मारक बनाने की घोषणा की थी. उन्होंने कहा था कि यह एक ऐसा स्मारक बनेगा जो देश ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर भारत की पहचान बनेगा. पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के विराट व्यक्तित्व की तरह इस स्मारक को भी विराट बनाया जाएगा, लेकिन सरकारें बदली और अब तक शासन प्रशासन अटल स्मारक के नाम पर एक ईंट भी नहीं लगा पाया है. शासन प्रशासन की उदासीनता कहीं ना कहीं सरकार के दावे और वादों पर भी सवाल खड़ी कर रही है.