रीवा संभाग समेत प्रदेश के अनुसूचित जाति के छात्रावास को नहीं मिल रहे छात्र, 221 में से 200 की हालत खराब, व्यवस्थाओं पर उठे सवाल

MP News: इन छात्रावासों में छात्रों की संख्या कम होने का प्रमुख कारण ये है कि इलाके आदिवासी जनसंख्या वाले नहीं माने जाते. लेकिन फिर भी बड़ी संख्या में छात्रावास खोल दिए गए
Most of the hostels of scheduled castes in the state including Rewa are vacant

रीवा समेत प्रदेश के ज्यादातर अनुसूचित जाति के छात्रावास खाली

MP News: मध्य प्रदेश में अनुसूचित जाति कल्याण विभाग की ओर से संचालित हो रहे छात्रावासों में छात्रों की बेहद कभी देखी जा रही है. जिनकी संख्या लगभग 200 से ज्यादा हो चुकी है. एक आंकड़े के अनुसार 221 छात्रावास ऐसे हैं, जहां छात्रों की बेहद कमी है. यह ज्यादातर छात्रावास कस्बाई और ग्रामीण इलाकों के है.

भिंड सर्वाधिक ऑनबोर्डिंग वाला जिला

लाखों रुपये खर्च करने के बाद अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए छात्रावास बनाए जाते हैं. अनुसूचित जाति कल्याण विभाग की एमपी टास्क पोर्टल की समीक्षा के दौरान जानकारी सामने आई है कि लाखों खर्च करने के बाद भी छात्रावास की सीटें खाली रह जाती हैं. मध्य प्रदेश में सर्वाधिक ऑन बोर्डिंग वाले छात्रावास भिंड जिले में है. जहां 18 छात्रावास हैं जिनमें छात्रों की संख्या बेहद कम है. उसके अलावा भोपाल में 3 ग्वालियर में 7, इंदौर में 10, राजगढ़ में 15 छात्रावास है. वहीं अगर विंध्य की बात करें तो रीवा में 5, सतना में 5, सीधी में एक, सिंगरौली में 11 छात्रावास है. जहां छात्रों की संख्या बेहद कम हुई है.

विंध्य के जिलों के छात्रावास का भी यही हाल

सतना और मैहर जिले में अनुसूचित जाति कल्याण विभाग के करीब 54 छात्रावास हैं. ज्यादातर छात्रावास 50 सीटर हैं. जिनमें से पांच ऐसे हैं जिनके छात्रों की ऑन बोर्डिंग काफी कम है. जूनियर कन्या छात्रावास कोठी में तो 50 में केवल 13 छात्राएं हैं तो इसी तरह किसी में 18 तो किसी में 23 की संख्या में छात्राएं हैं. यही हाल रीवा जिले का है. जहां पर कन्या छात्रावास और बालक छात्रावास में छात्र संख्या 50 में 15 या उससे भी कम है. सीधी जिले में एक जूनियर कन्या सुकवारी है जहां 50 में केवल 7 छात्राएं ऑन बोर्ड हैं. यही हालत सिंगरौली जिले की भी है.

आदिवासी आबादी से दूर खोले गए छात्रावास

इन छात्रावासों में छात्रों की संख्या कम होने का प्रमुख कारण है कि ये इलाके आदिवासी जनसंख्या वाले नहीं माने जाते. लेकिन फिर भी बड़ी संख्या में छात्रावास खोल दिए गए. जिसके कारण भी छात्रों की संख्या बेहद कम होती है. छात्रावास के अधीक्षकों का कहना है कि कई बार कम उम्र के छात्र एडमिशन लेते हैं. लेकिन उनके लिए घर से दूर हो पाना मुश्किल होता है तो कुछ समय के बाद ही वह छोड़ देते हैं. उन्हें तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है.

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प्रति छात्र भोजन 1,445 रुपये खर्च किए जा रहे हैं

स्टेशनरी मद का 2 हजार रुपये प्रति छात्र को दिया जाता है तो वही निशुल्क कोचिंग व्यवस्था भी कक्षा 9 से 12वीं तक के बच्चों को दी जाती है. इसके साथ में मेन्यू के अनुसार भोजन दिए जाने की भी व्यवस्था है जो कई बार पूरी भी नहीं हो पाती. प्रति छात्र 1,445 रुपये भोजन पर खर्च किए जा रहे हैं. इसके अलावा सुबह-शाम का नाश्ता, निशुल्क बिस्तर सामग्री, खेलकूद सामग्री, निशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण जैसी तमाम सुविधाएं प्रशासन के द्वारा छात्रों को दी जाती है. लेकिन कई बार यह सुविधा केवल कागजों में सिमट कर रह जाती है. कई बार यह सुविधा कम बजट होने की वजह से भी छात्रों को बेहतर ढंग से नहीं मिल पाती है. जिसके कारण छात्रों का भी मोह छात्रावास से भंग हो रहा है.

‘ऑनलाइन प्रक्रिया की वजह से हो रही समस्या’

लाखों-करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद भी छात्रों की घटती संख्या को लेकर विस्तार न्यूज़ ने रीवा संभाग के संयोजक कमलेश्वर सिंह से बात की जिनके अनुसार छात्रों की संख्या कम होने का प्रमुख कारण यहां की ऑनलाइन प्रवेश प्रक्रिया है. इसके लिए छात्र के आधार कार्ड, बैंक अकाउंट और आईडी में नाम और अन्य जानकारी पूरी तरह से मैच नहीं हो पाता है. ग्रामीण क्षेत्र में छात्रों के साथ इसमें काफी समस्या आती है. इनमें मिस्मैच होने से प्रवेश नहीं हो पाता. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र में छात्रावास में छात्र रुकना पसंद नहीं करते है. विशेष कर सीनियर विंग में यह समस्या है. कई जगह छात्रावास विद्यालय से दूर होने के कारण भी प्रवेश कम होते हैं. हालांकि इसको दुरुस्त करने के लिए व्यवस्थाएं बनाई जा रही है.

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