MP News: झाबुआ जिले में भैरूजी का मंदिर, जहां बाबा करते हैं मदिरा पान, रहस्यमय रूप से कहां जाती है मदिरा, किसी को पता नहीं

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In Jhabua, a cup of liquor is offered to the idol of Bhairav ​​Baba.

झाबुआ में भैरव बाबा की प्रतिमा को मदिरा का प्याला अर्पित किया जाता है.

MP News: मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में क्षिप्रा नदी के तट पर बने काल भैरव मंदिर की तरह ही एक मंदिर झाबुआ जिले में है, जहां भैरव बाबा की प्रतिमा को मदिरा का प्याला अर्पित किया जाता है. भैरव बाबा की प्रतिमा जब मदिरा पान करती है तो वह मदिरा कहां जाती है, यह रहस्य का विषय है. वहीं श्रद्धा से भरे के इस मदिरा के प्याले को लेकर मध्य प्रदेश ही नहीं राजस्थान, गुजरात के भी श्रद्धालु झाबुआ जिले में आते हैं.

शारदीय नवरात्रि में होता है मेले का आयोजन

जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर, सुदूर जंगल और खेतों के बीच एक छोटा सा गांव बोरडी है. इस गांव में भैरव बाबा का यहां मंदिर कई वर्षों पुराना है. समय के साथ-साथ मंदिर में रंग-रोगन और आधुनिकता आती गई. लेकिन वर्षों पुरानी परंपराओं का निर्वहन आज भी किया जा रहा है. वैसे तो पूरे वर्ष मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ रहता है.

लेकिन शारदीय नवरात्रि पर यहां मेले का आयोजन होता है. मेले में हजारों की संख्या में ग्रामीण श्रद्धापूर्वक शामिल होते हैं. नवरात्रि के दौरान भैरव बाबा की प्रतिमा को विशेष रूप से मदिरा का भोग लगाया जाता है. भैरव बाबा के इस मंदिर परिसर में सत्यवीर तेजाजी महाराज, चारभुजानाथ, और भगवान गणेश की प्रतिमा भी है.

जब श्रद्धालुओं द्वारा भैरव बाबा को शराब का प्याला अर्पित किया जाता है. इस दौरान इन अन्य प्रतिमा पर परदा लगा दिया जाता है. शराब अर्पित करने के बाद भैरव बाबा के मुंह को शुद्ध पानी से धुलवाया जाता है. जिसके बाद इन प्रतिमाओं के परदे को श्रद्धालुओ के दर्शन के लिए हटा दिया जाता है.

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पुजारी बोले- मंदिर की प्रतिमा कहां से आई नहीं पता

मंदिर में अष्टमी के दिन महाआरती का आयोजन होता है. मान्यता है कि महाआरती में शामिल श्रद्धालुओं की मुरादे जल्द पूरी होती है. यहां वर्षों से पूजा करने वाले पंडित मानसिंह डामोर बताते हैं कि पूर्व में यह मंदिर कच्चा था. मंदिर की प्रतिमा कहां से आई कैसे स्थापित हुई. इस बारे में उनकी पीढ़ियों को भी नहीं पता है. कई पीढ़ियों से वह मंदिर की सेवा कर रहे हैं. श्रद्धालुओं द्वारा भैरव बाबा के मुख पर जब मदिरा का प्याला लगाया जाता है तो वह मदिरा पूरी पी लेते हैं. यह मदिरा कहां जाती है यह रहस्य का विषय है.

अष्टमी के दिन होती है ज्वारों का विसर्जन

श्रद्धालु बताते हैं कि वह कई वर्षों से इस मंदिर में श्रद्धापूर्वक मदिरा चढ़ाने के लिए आते हैं. उनकी कई मुरादे पूरी भी होती है. आमतौर पर पूरे देश में जहा नवरात्रि के दौरान नवमी के दिन परंपरागत ज्वारों का विसर्जन किया जाता है. वहीं झाबुआ के इस बोरडी गांव में अष्टमी के दिन ज्वारों का विसर्जन किया जाता है. विसर्जन के पूर्व महाआरती का आयोजन होता है. महा आरती के पहले मंदिर परिसर में स्थित नगाड़े को जोर से बजाया जाता है.

जिसके बाद सैकड़ो श्रद्धालुओं को बाबा भैरव की सवारी भी आती है. सवारी के पूर्व इन श्रद्धालुओ का श्रंगार भी किया जाता है. इन सवारी के साथ ज्वारों को जुलूस के रूप में मंदिर से समीप स्थित नदी पर लाया जाता है. जहां पर ज्वारों को परंपरानुसार ठंडा किया जाता है. शारदीय नवरात्रि में उमड़ा आस्था का यह सैलाब झाबुआ जिले के इस छोटे से गांव में संस्कृति, परंपरा की ऐसी अमित छाप छोड़ रहा है. जो आने वाले कितने वर्षों तक निभाई जाएगी.

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