MP News: मॉडर्न जमाने में देसी अंदाज की बारात, बैलगाड़ी पर सवार दूल्हे को देखते रह गए लोग
झाबुआ: वर्तमान दौर की शादियों में जहा बाराते हेलीकॉप्टर और लग्जरी गाड़ी से पहुंच रही है. वही झाबुआ जिले के पेटलावद की ग्राम पंचायत काजबी के छोटे से गांव लालारुण्डी में एक अनोखी बारात निकाली गई. लालारुंडी गांव के लोग उस वक्त दंग रह गए जब एक दूल्हा बैलगाड़ी पर सवार होकर अपनी दुल्हन को लेने निकला. इस बारात में 2 बेलगाड़ी थी. पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ बैलगाड़ी पर निकले इस काफिला देखकर हर शख्स की नजर बारात पर टिक गई.
दरअसल, जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर गांव लालारुंडी के दशरथ निनामा के पुत्र ऋषभ निनामा की शादी ग्राम सुवरपाड़ा में तय हुई थी. दूल्हे ने अपनी शादी को यादगार बनाने के लिए कुछ अलग करने का विचार किया. इसलिए उसने वर्षो पुराने अंदाज में बैलगाड़ी पर अपनी बारात ले जाने का फैसला किया. उसने बैलगाड़ी को अपने और बारातियों के लिए चुना. जब बैलगाड़ी पर बारात निकाली तो हर शख्स की नजर बारात पर टिक गई.
ये भी पढ़े: MRP से अधिक दाम पर बिक रही शराब से नाराज हुआ शराबी, पेड़ पर चढ़ा, घंटों काटा बवाल
लोग भूलते जा रहे अपनी मूल संस्कृति: ऋषभ (दूल्हा)
इस तरह बारात ले जाने को लेकर ऋषभ ने कहा कि अक्सर देखने में आता है कि हमारे समाज में आधुनिकता की इस चकाचौंध दौड़ में शादियां बहुत महंगी होती जा रही है. लोग दिखावे के लिए दर्जनों महंगी महंगी गाड़ियां किराए से कर लेते है और डीजे के साथ बारात निकालते हैं. इस तरह जो लंबा खर्च शादी में होता है उसका बोझ परिवार वालों पर ही आता है. लोग अपनी मूल संस्कृति को भूलते जा रहे हैं. इस कारण डीजे के कानफोड़ू साउंड और तामझाम में हमारी संस्कृति विलुप्त होते जा रही है. आजकल यह एक फैशन बन गया है कि जिस भी युवक की शादी होती है. उसकी शादी में लंबा काफिला दिखना चाहिए, लेकिन मैंने मेरे परिवार पर बोझ न आए इसलिए सभी आधुनिकता की चकाचौंध को त्याग कर पुराने रीतिरिवाज से अपनी बारात निकालने का फैसला किया.
आदिवासी समाज की संस्कृति को संजोये रखने की कोशिश
बता दें कि दूल्हा खुद एक किसान है और उसने अपनी बारात अपने घर से निकाली और दुल्हन के दरवाजे तक अनोखे अंदाज में पहुंचा. इस काफिले को देखकर गांव के लोग हैरान हो गए. बैलगाड़ी किसान की पहचान होती है. इसीलिए इस तरह बेटे की बारात निकालने का प्लान बनाया गया. बारात लोक नृत्य मंडली ढोल मांदल, झाझ, मजीरा के साथ निकली. दिन में निकली इस बारात को देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई. आदिवासी समाज की संस्कृति को संजोये रखने के इस प्रयास की हर कोई सराहना कर रहा है.